Monday, 19 January 2009

ग्लोबल वार्मिग: तो बुग्यालों में लहलहाएंगी फसलें

देहरादून ग्लोबल वार्मिग के भयंकर परिणाम तो सभी गिनाते हैं, मगर ऊंचे पहाड़ों को ग्लोबल वार्मिग का फायदा भी हो सकता है। बढ़े तापमान की वजह से पहाड़ों के बुग्यालों जैसे वे क्षेत्र भी गेहूं और अन्य फसलों के उगने लायक बन सकते हैं जहां ठंड की वजह से अभी फसलें पैदा नहीं होती हैं। इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी)की रिपोर्ट के मुताबिक 1750 के बाद से दुनिया तेजी से गर्म हो रही है। आज वैज्ञानिकों के पास 1000 ईसवी से लेकर अब तक के तापमान के आंकड़ें मौजूद हैं। बीसवीं सदी में 90 का दशक सबसे ज्यादा गर्म दशक रहा है। इस सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान एक से 6.3 डिग्री सेंटीग्रेट तक बढ़ सकता है। देश के जाने माने परिस्थितिकी विशेषज्ञ व गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह के मुताबिक ग्लेशियरों का लगातार सिकुड़ना जलवायु परिवर्तन का एक संकेत है। पृथ्वी के इतिहास के मुताबिक आज से करीब 20,000 साल पहले वर्तमान में मौजूद ग्लेशियर बने थे। उनका कहना है कि अहमदाबाद के इसरो स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के साथ मिलकर 1960 से 2004 तक के सर्वे ऑफ इंडिया के मानचित्रों और सैटेलाइट डाटा की मदद से व नंदादेवी ग्लेशियर क्षेत्र के अध्ययन से भी पता चला था कि हिमरेखा और वृक्षरेखा लगातार ऊपर की ओर बढ़ रही है। नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञानी प्रो. पीके झा के भी अपने अध्ययन में पाया कि हिमालय के ठंडे इलाकों में गर्मी बढ़ने से वहां वो वनस्पतियां उगने लगी हैं जो ठंड की वजह से पहले वहां नहीं होती थी। ऊंची चोटियों में मिट्टी न होने की वजह से वहां तो वनस्पतियां नहीं उग सकतीं मगर बुग्याल जैसे विशाल ढलवा मैदानों में भरपूर मिट्टी है। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों का तापमान बढ़ने से भले ही वहां कि जैव विविधता खत्म हो जाए और कई दुर्लभ पौधे विलुप्त हो जाएं मगर ये इलाके खेती के लायक अरविंद शेखर,

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