मैती आंदोलन की शुरुआत 1995 में उत्तराखंड के ग्वालदम क्षेत्र से हुई। विवाह के समय वर-वधू द्वारा पौधे रोपित किए जाते समय वर द्वारा गांव के मैती संगठन को कुछ दक्षिणा देता है. यह पैसा मैती संगठन की बालिकाएं जमाकर गांव की दूसरी गरीब बहनों की शिक्षा पर खर्च करती हैं. इस तरह मैती कोई समिति न होकर सामाजिक समरसता का आधार है. मैती आंदोलन भावनाओं से जुड़ा हुआ सके संस्थापक कल्याण सिंह रावत के मुताबिक इसकी प्रेरणा नेपाल में चल रहे नेपाल मैती आंदोलन से मिली. उनका कहना है कि अब यह आंदोलन कैलिफोर्निया, अमेरिका, थाइलैंड और इंग्लैंड में भी पहुंच चुकी है. श्री रावत बताते हैं कि सरकार लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके पौधरोपण करा रही है, लेकिन पौधे पनप नहीं पा रहे हैं. इसका एक मात्र कारण है कि पौधे लगाने वाले प्रोफेशनल लोग हैं. उनका पौधे के साथ कोई भावनात्मक लगाव नहीं होता. इसी से लगाने के बाद पौधा बचे या सूखे, इससे उनका कोई मतलब नहीं होता. उनके मुताबिक इसीलिए हम हर मौके पर पौधे लगाने की बात कहते हैं ताकि भावनाओं को स्थायित्व प्रदान किया जा सके. एक लड़की के लिए अपने मायके से बढ़कर सुख कहीं नहीं होता. मायके से जुड़ी हर चीज से उसका खास लगाव होता है. मैती आंदोलन से जुड़ी लड़कियां अपनी शादी के समय अपने पति के साथ एक पौधा लगाती हैं. उस पौधे को अपनी पुत्री की निशानी मानकर माता-पिता इसकी देखभाल करते हैं. मैती आंदोलन के जनक 19 अक्टूबर 1953 को चमोली के बैनोली गांव में जन्मे कल्याण सिंह रावत के नेतृत्व में इस आंदोलन के तहत अब तक लाखों पेड़ लगाए जा चुके हैं. ऐसे समय में जब कि तमाम एनजीओ पौधरोपण के नाम पर तमाम फर्जी संगठनों का गठन कर धरातल से दूर हो गए हैं वहीं कल्याण सिंह रावत कुछ ऐसे शख्सियतों में शुमार हैं जो binaa सरकारी सहायता के अपने स्वयं के संसाधनों से मैती जैसा ग्लोबल इन्वायरनमेंट मूवमेंट चला रहे हैं. मैती आंदोलन के तहत हर गांव में एक मैती संगठन का निर्माण किया गया है. श्री रावत बताते हैं कि जब तक किसी आंदोलन से लोगों का भावनात्मक लगाव नहीं होगा, मंशा चाहे जितनी नेक हो, सफल नहीं हो सकता. मैती एक भावनात्मक आंदोलन है. जो उत्तराखंड के कई गांवों के अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र जैसे देश के 18 राज्यों में चलाया जा रहा है. मैती आंदोलन के तहत कई पर्यावरण मेलों, लोकमाटी वृक्ष अभिषेक, देवभूमि क्षमा यात्रा सहित सौ से भी अधिक प्रोग्राम आयोजित किए जा चुके हैं. मैती जैसे पर्यावरणीय आंदोलन के लिए कई सम्मान और अवार्ड्स से नवाजे गए कल्याण सिंह रावत कहते हैं कि आज जिन लोगों को पर्यावरण का प तक नहीं पता वे लोग बड़े-बड़े अंग्रेजी नामों से एनजीओ खोलकर पर्यावरणविद् बन बैठे हैं. मैती केवल भावनात्मक पर्यावरण आंदोलन नहीं है बल्कि यह गांवों की सांस्कृतिक विरासत को बचाने की मुहिम भी है. . हमारा लक्ष्य सिर्फ पर्यावरण को बचाना है. इसके जरिए हम लोगों को एक-दूसरे की हेल्प करने के लिए भी अवेयर कर रहे हैं. हमें खुशी है कि इसमें लोगों का सहयोग मिल रहा है, यह पॉल्यूशन फ्री एन्वॉयरनमेंट के लिए अवेयर लोगों की पहल भी है.
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