Thursday, 7 May 2009
गढ़वाली नाटको की शुरुवात ...
गढ़वाली नाटको की शुरुवात ...
शुरू शरू में पहाडो में मनोरंजन के नाम पर अक्षर रामलीलाए ही हुआ करती थी | रात रात भर गाऊं में लोग जाग जाग कर रामलीलाए लीला का आनद लिया करते थे | या फिर जगराते जिसे हम जागर कहते है. या फिर पंडो निरत्या | हा नाटको के नाम पर कभी कभार धार्मिक नाटक जैसे राजा हरिशचंदर या भगत प्रह्लाद का मंचन अवशय देखने को मिलता था | तब ना तो गौ में बिजली हुआ करती थी | रामलीला भी गैस को जलाकर देखा जाती थी | गौ में तब ना तो टेलीविजन था ना ही कोई सनीमा हाल , बस रामलीला ही मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था |
पहला दौर
जहा तक पहला गढ़वाली नाटक के मंचन का सवाल है तो सन १९१३-१४ में शिमला में श्री भवानी दत्त थपलियाल "सती" के द्वार लिखित नाटक भगत प्रहलाद ही अब तक का पहला मंचित गढ़वाली नाटक माना जायेगा जबतक और कोई नाटक तत्यों को लेकर सामने नही आता आगे ....
उन्होने सन १९११ में "जय विजय नमक नाटक भी लिखा था ! १९३० में घनानंद बहुगुणा जी ने "समाज" लिखा !
सन १९३२ में विशम्बर दत्त उनियाल जी ने "बसंती" की रचना की ! " परिवर्तन को श्री इश्वरी दत्त ने १९३४ में लिखा ! सन १९३६ में प्रेम भूसन का "प्रेम सुमन " चाप गया था ! भगवत पंथारी जी ने "आधोपतन" लिखा !
दूसरा दौर
सन १९५० का दौर था ! भारत की राजधानी देहली में गढ़वली का एक तपका जो बाबु बनगया था उसमे यदपि बाबुपन की और भी बू आ जाने के बाद भी कुछ लोगो में गढ़वाली / गह्र्वाली बोली के प्रती उनके दिल के किसी कोने में एक जगह अभी भी बरकरार थी यदपि वो और उनके बचे अपने को गढ़वली या पहाडी बतलाने में संकोच महशूस करते थे या यू कहना श्रीयाकर होगा , की वो , हीन भावना से ग्रहस्त होने के कारण अपने को गढ़वली बताना नही चाहते थे ! क्यूँ की उस समय पहाडीयो में अपनी बोली/बाशा के प्रती हीन भवान का प्रभाऊ था फिर भी इस दौर में नाटक लिखे जाते रहे और मंचित भी होती रहे ! इस विधा पर विशेष कर लेखक वर्ग की रुची बनती चली गयी लेकिन दर्शककौ का अभाऊ बना रहा फिर भी गढ़वाली नाटक अपनी दुर्गम गति से चलता रहा ! नाटकको की मंथर गति पर अपनी पैनी नजार रखते हुए उसको संबल देने आ गए थे तब दो नाटकार , ललित मोहन थपलियाल और जीत सिंह नेगी जी.. ! इस दौर की विशषता यहे थी की स्त्री पात्रो के अभाऊ के कारण आदमी स्त्री का रोल अदा करते थे ! नाटक तब सरकारी कालोनी के बने काम्नेटी हाल में यदा कदा खले जाते रहे ! नाटको परती जागरूगता अपने अशर देखने लगी थी !
सन १९५० में जीत सिंह नेगीजी ने "भारी भूला " नाटक लिखा और मंचित भी किया ! इस नाटक की खासियत ये थी की इस में थपलियाल बहनों ने भाग लिया. लोकिन बार्तालाप हिन्दी में होने के कारन उनको पहिली नायका का खिताब नही मिल सका ! ये खिताब गया कुमारी लीला नेगी को जिन्होंने मेरे लिखे नाटक "औंसी की रात " में नायका की भूमिका निभायी थी ! मैंने भी देखा था यहाँ नाटक राजा बाज़ार के एक स्कूल में खेला गया था बही तब मोहन उप्रेतीजी से पहली बार मुलाक़ात हुई थी !
सन १९५८ में ललित मोहन थपलियाल जी ने एकांकी ने "दुर्जन की कछडी" साहित्य कला समाज के तत्वाधान में सरोजनी नगर के काम्नेटी हाल मे खेला गया ! लोगा का रुझान थोडा थोडा नाटक को के प्रती बनने लगा था ! ये नाटक भगत प्रह्लाद का रूपांतर था ! उसको बाद इसी संस्था ने एकीकरण अछिरयू को ताल खेला ! १९५९ ललित जी का "एकी करण' ! १९६६ मे किशोर घिडियाल जी क" दुनो जनम " , ललित जी का नाटक " घर जवाई " गिरधर कंकाल का "इन भी चलद" का मंचन हुआ ! ये सब एकाकी नाटक थे ! स्त्री पत्रों के अभाव मे इसे नाटक रचे गए जिनमे स्त्री पात्र ना हो ! जैसा मैंने कहा की अगर गलते से स्त्री पत्र रखा गया तो पुरूष ही उसे निभाता था ! हालत जस की तस बनी हुई थी ! फूल लेंथ नाटक का अभाव साथ मे सत्तर पत्रों की कमी ये सब एक समस्या बनी हुई थी इस का निवारण किया " पुष्पांजली रंगशाल " व उसके युवा रंह कर्मी पराशर गौर व साथीयेओ ने जब पहली बार मंच पर स्त्री पात्र के साथ साथ फूल लेंथ नाटक हुआ !
तीसरा दौर
सन १९६२ में " पुष्पांजली रंगशाल " का गठन किया गया जिसमे मै, दिनेश पहाडी, ब्र्माह्नंद कोटनाला शामिल थे मुझे नाटक का सौक लग चुका था ! हम सब बैठे ये निर्णय लिया गया की मै नाटक लिखू ! मैंने रात दिन करके अपना पहला नाटक 'औंसी की रात " लिख डाला उस में एक नही , दो नही , तीन स्त्री पात्र रख डाले अब समस्या कहदी होगी की कौन खेलेगा इधेर उधर हाथ मरे गए.. हेरोइन लीला नेगी को आप्रोच किया गया ! लीला आल इन्ड्या रेडियो से गढ़वाली में गाना गाते थी ,! माँ के रोल के लिए गौं से श्रीमती रामभगति जी को बुलाया गया ! रिहर्शल सुरु होई .. २ फरबरी १९६9 का DELHI me गढ़वाली नाटक काम्नाते हाल से उठकर थिएटर में आया.. आए आई एम् ऐ हाल में पहली बार लोग घरो से बाहर आकर हाल तक आए और टिकेट में नाटक देखा.. कहना होगा की "औंसी की रात" कई मायने में मील का पत्थर बनी ...
१.. पहली बार थिएटर में प्रस्तुती हुयी
२ पहली बार स्त्री पात्रो ने हिशा लिया
३ लोगोने टिकेट लाकर नाटक देखा
४ एक फुल लेंथ प्ले देखने को मिला
यह नाटक देहली के बिभिन संस्थोओ द्बारा 1o १२ बार खेला गया चंडीगढ़ में भी इसके शो हुए ! नायक की भूमिका मै ,नायका लीला नेगी ने की और माँ की भूमिका राम भागती की ! सन १९६३ मे दिनेश पहाडी द्बारा लिखा नाटक "जुन्ख्याली रात " का मचान किया ! मेरे द्वार कई कलाकारों को स्टेज मे आने का मौका मिला जिनमे प्यारीदेबी हरी सम्वाल, रमेश मंदोलिया ,दिनेश कोथियालर कुसुम बिष्ट आदि ! पुष्पांजली अपना काम क्र रही थी .. !
सरोजिनी नगर मे सहित्य कला समाज नामक संस्था जो एकाकी नाटक करते थे उनोहने उसको बदल कर "जागर " " का नाम देकर सन १९७४ मे राजेंदर धस्माना जी का नाटक जंकजोड़ को प्रस्तुत किया और सन ७५ मे "अर्ध्ग्रमेश्वर" जो अपने समय का एक बहुत चेर्चित नाटक था !
गढ़वाली नाटक , कब कौन कहा किस ने लेखा कहा खले गए , कौन डिरेक्टर था संस्था कौन थी
इन नाटको की इस सूचना को किसी भी रूप में प्रिंट करना या छापने से पहले लेखक से अनुमति लेनी
जरूरी है
१. 1914
नाटक का नाम .. भगत प्रह्लाद
लेखक .. भवानी दत्त थपलियाल " सती"
स्थान ..शिमला .. संथा .. पत्ता नही डेट .. पत्ता नही
२ १९५०
नाटक का नाम .. भरी भूल
लेखक .. जीत सिंह नेगी
खेला गया .. देहरादून / देहली
डेट पत्ता नही.. स्थान पत्ता नही..
उपलब्धि .. विमला /कांता थपलियाल सिस्टर्स का स्टेज में आना !
३ १९५८
नाटक का नाम .. दुर्जन की कछडी
लेखक ,, ललित मोहन थपलियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
डारेक्टर .. ललित मोहन थपलियाल
दिनांक .. पत्ता नही
४ खडू लापत्ता
लेखक ,, ललित मोहन थपलियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
डारेक्टर .. ललित मोहन थपलियाल
दिनांक .. पत्ता नही
५ 1959
अछरयू को ताल
लेखक ,, ललित मोहन थपलियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
डारेक्टर .. ललित मोहन थपलियाल
दिनांक .. पत्ता नही
६ १९५९
एकीकारण
लेखक ,, ललित मोहन थपलियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
डारेक्टर .. ललित मोहन थपलियाल
दिनांक .. पत्ता नही
७ १९६६
दुनो जनम
लेखक ... किशोर घिदियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
दिनांक .. पत्ता नही डिरेक्टर का पत्ता नही
८ घर जवाई
लेखक ,, ललित मोहन थपलियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
डारेक्टर .. ललित मोहन थपलियाल
दिनांक .. पत्ता नही
९ एक जाओ अगने
लेखक ... किशोर घिदियाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
दिनांक .. पत्ता नही डिरेक्टर का पत्ता नही
१० एन भी चलदा
लेखक .. गिरधर कंकाल
स्थान ..सरोजिनी नगर कामनेटी हाल
दिनांक .. पत्ता नही डिरेक्टर का पत्ता नही
नोट ... ऐ सारे नाटक एंकाकी थे / इनमे स्त्री का पाट आदमी खेला करते थे
११. २ फरबरी १९६९
नाटक का नाम .. औंसी-की-रात
लेखक .. पाराशर गौड़
संथा .. पुष्पांजली रंगशाला
खेला गया .. आई आई ऍम आ हाल इंदरप्रस्था मार्ग में
निरदेसक . पाराशर गौर/कशेव ध्यानी
कलाकार .. लीला नेगी, मुधू धय्नी, समत राम बह्ग्ती, पाराशर गौर, रामप्रसाद ध्यानी. ब्रह्मानंद कोटनाला दिदेश पहाडी आदि
नोट.. पहला नाटक जो हाल में खेला गया टिकटलगाकर ! पहली बार स्त्री पात्रो ने स्टेज में भाग लिया देहली व अन्य सहरो में ८ -१० रिपीट शो होए .!
१२ सन १९७०
नाटक का नाम .. जुन्ख्याली रात
लेखक दिनेश पहाडी
संथा .. पुष्पांजली रंगशाला
खेला गया .. आई आई ऍम आ हाल इंदरप्रस्था मार्ग में
निरदेसक . कशेव ध्यानी
कलाकार .. लीला नेगी, मुधू धय्नी, समत राम बह्ग्ती, पाराशर गौर, रामप्रसाद ध्यानी. ब्रह्मानंद कोटनाला दिदेश पहाडी आदि !
१३ सन १९७०
नाटक का नाम .. कन्या दान
लेखक .. सुदामा प्रसाद प्रेमी
संस्था .. पर्वतीय युवक संघ
निर्दशक .. पाराशर गौड़
प्रस्तुत .. आई आई ऍम ऐ हाल इंदर प्रष्टा मार्ग
कलाकार ..कुमारी राजी , विजय थपलियाल शारदा नेगी आदि
सन २५ दसंबर १९७१
नाटक का नाम .. चोली
लेखक .. पाराशर गौड़
निर्दासक ..पाराशर गौड़
संथा .. पर्वतीय युवक मंच
जगह खेला गया .. आल इंडिया मेडिकल अस्सो . हाल आई आई टी ओ में !
कलाकार .. पाराशर गौर .. रमेश मंदों लिया दिएंश कोठियाल सतेंदर परंदियाल कुमारी राजी .. रामप्रसाद धय्नी शारदा नेगी आदि !
१४ सन १९७१
नाटक का नाम ... गवाई( एंकाकी )
लेखक .. पाराशर गौड़
निर्दासक ..पाराशर गौड़
संस्था .. गुजुदु विकाश परिषद्.
जगह .. पंचकुया रोड काम्नती हाल
कलाकार .. पाराशर गौड़, रामप्रकाश रुडोला सुरेश भट आदि !
१५ सन १९७१
नाटक का नाम .. चटी की एक रात ( रूपान्तर )
लेखक .. प्रेम लाल भट
निरादेसक .. विशवा मोहन बडोला
संस्ता .. हिमालय कला संगाम
जगह .. सरदार पटेल सभागार
कलाकार .. पाराशर गौड़.. वुवनेश्वर ज्याल आदि
१६ सन १९७२
नाटक का नाम .. खबेश
लेखक .. मदन डोभाल;
निरदेसक ... होश्यार सिंह रावत
संस्था .. गडवाल परगतिशील मंडल
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग.
कल्लाकर .. पाराशर गौड़..चिंतामणि बर्थवाल.. सरोज गोसाई कुक्रती धामी जी .
आगे .....................
17 सन १९७५
नाटक का नाम .. जक जोड़
लेखक .. राजेंदर धस्माना
निरदेसक मोहन डंडरियाल
संस्था .. जागर
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग.
18 सन १९७५
नाटक का नाम .. टिचरी
लेखक .. चिंतामणि बर्थवाल
निरदेसक ..होश्यार सिंह रावत
संस्था .. गडवाल परगतिशील मंडल
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग.
कलाकार .. पराशर गौड़ ,जगदेश दौन्दियाल होशियार सिंह रावत आदि
19 सन १९७६
नाटक का नाम .. अर्ध ग्रामेश्वर
लेखक .. राजेंदर धस्माना
निरदेसक .. मोहन डंडरियाल
संस्था .. जागर
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग
कलाकार .. पराशर गौर रीना नैथानी, एम् बौंठियाल पंचम सिंह चनदर सिंह रही गिरधर कंकाल आदि
20 सन १९७६
नाटक का नाम .. तिम्ला का तिम्ला खतया ....
लेखक .. पराशर गौर
निरदेसक .. मोहन डंडरियाल
संस्था .. आंचलिक रंगमंच
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग
कलाकार .. पराशर गौर सुशीला चंदोला राजेश्वरी पस्बोला रामप्रसाद ध्यानी रामप्यारी नेगी आदि
21 सन १९७६
नाटक का नाम .. तिम्ला का तिम्ला खतया ....
लेखक .. पराशर गौर
निरदेसक .. मोहन डंडरियाल
संस्था .. आंचलिक रंगमंच
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग
कलाकार .. पराशर गौर सुशीला चंदोला राजेश्वरी पस्बोला रामप्रसाद ध्यानी रामप्यारी नेगी आदि
22 सन १९७८
नाटक का नाम .. अदालत
लेखक .. स्वरुप ड़ौडियाल
निरदेसक .. पराशर गौड़
संस्था .. बारास्युं पारवारिक सम्मति
जगह .. फिन आर्ट्स थिएटर रफी मार्ग
कलाकार .. पराशर गौड़ सशी कान्त आदि
23 सन १९७८
नाटक का नाम .. बड़ी ब्वारी
लेखक .. प्रेम लाल भट्ट
निरदेसक .. विनोद रावत
संस्था .. गद प्रवासी संगम
जगह .. सरदार पटेल भवन
कलाकार .. पत्ता नहीं
२४ सन १९७९
नाटक का नाम .. नाटक बध कारा ( हिंदी रूपान्तर )
रूपान्तर..कार मदन डोभाल
निरदेसक .. मोहन डंडरियाल
संस्था .. आंचलिक रंग मंच
जगह .. फ़ाइन आर्ट्स थिएटर
कलाकार पराशर गौर , पंचम नेगी, ग्रीधर नौटियाल, राम प्रसाद नौटियाल आदि
२५ सन १९७९
नाटक का नाम .. प्रहलाद ( रूपान्तर )
लेखक .. भवानिदत्त सती
रूपान्तर..कार राजेद्नेर धस्माना
निरदेसक .. मित्रा नन्द कुकरेती
संस्था .. जागर
जगह .. फ़ाइन आर्ट्स थिएटर
कलाकार पंचम नेगी, ग्रीधर नौटियाल, राम प्रसाद नौटियाल आदि
२५ सन १९७९
नाटक का नाम .. अमुसी की रात कुमाउनी में ( गड्वाली नाटक औंसी की रात का रूपान्तर )
लेखक .. पराशर गौड़
रूपान्तर..कार कान्हा पन्त
निरदेसक .. कान्हा पन्त
संस्था .. पर्वतीय संगम कला केंदर
जगह .. सरदार पटेल सभागार
कलाकार काना पन्त भारती शर्मा आदि
आगे .....................
२६ सन १९७९
नाटक का नाम .. अमुसी की रात कुमाउनी में ( गड्वाली नाटक औंसी की रात का रूपान्तर )
लेखक .. पराशर गौड़
रूपान्तर..कार कान्हा पन्त
निरदेसक .. कान्हा पन्त
संस्था .. पर्वतीय संगम कला केंदर
जगह .. सरदार पटेल सभागार
कलाकार काना पन्त भारती शर्मा आदि !
२६ सन १९८१
नाटक का नाम .. मौस्याण बोई
लेखक .. घनस्याम शर्मा
निरदेसक .. शारदा नेगी
संस्था .. कंचन रंगमंच
जगह .. फ़ाइन आर्ट्स थिएटर
कलाकार पत्ता नहीं !
२७ सन 1981
नाटक का नाम . नथुली
लेखक .. प्रेम लाल भट्ट
निरदेसक .. होशियार सिंह रावत
संस्था .. उदंकार
जगह .. सरदार पटेल सभागार
कलाकार पराशर गौर, जगदीश ढौंडियाल आदि
२८ सन 1982
नाटक का नाम . मंगुतु बौल्या
लेखक .. स्वरुप डौडियाल
निर्देशक .. होशियार सिंह रावत
संस्था .. उदंकार
जगह .. सरदार पटेल सभागार
abhi aur bhee hai .....
by parashargaur
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Good, Quality research, Thanks
ReplyDeleteSanjay TEWARI, Ontario
if u have any rol so please reply to me
ReplyDeletesee my profile in orkut and u see my photographs also
vikram singh
9910543276
Already available here:
ReplyDeletehttp://www.merapahad.com/forum/books-and-literature-!/colorblue)(colorblue)(color)(color)(b)-(/msg32070/#msg32070
mai rawat jee ka lekhne ka arth nahi samjhaa
ReplyDeleteki o kya kahanaa chaa rahi hai .Kripya sapst lekhe yaa bataaye?
parashar gaur
maaf kijiye Vikaram singh je ke baat kar rahaa hun .Jane anjaane me Rwar likhdiya.
ReplyDeleteparashar
apki ya baat ekdum sahi cha ki garhwali ku pailo natak Bhawani Dutt Thapliyal ji na hi likhi va manchit kari chhayo. Wo hamara dadaji chhaya.
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