Saturday, 31 January 2009

खैर व शीशम पर भी चलेगी आरी

31 jan-, हल्द्वानी एक तरफ सरकार पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रख जहां पौधारोपण पर जोर दे रही है तो काटी गये पेड़ों की भरपाई की तरफ वन विभाग का ध्यान नहीं है। इस साल तराई के जंगलों में 50 हजार घनमीटर लकड़ी काटने की तैयारी है। हालांकि वन विभाग इस कटान को लक्ष्य बता रहा है, लेकिन इसकी भरपाई का इंतजाम क्या होगा? इस ओर फिलहाल किसी का ध्यान ही नहीं है। संबंधित वन विकास निगमों ने चिन्हित पेड़ों का कटान शुरु कर दिया है। क्योंकि अग्निकाल के दौरान पेड़ों के कटान के बाधित होने का डर बना रहता है लेकिन इस बार तराई केंद्रीय वन विकास निगम को नैनीताल मार्ग के चौड़ीकरण के लिए सड़क किनारे के पेड भी काटने पड़ रहे हैं। जिससे सितंबर तक कटान का लक्ष्य हासिल हासिल करने में देरी हो सकती है। वन विभाग का कार्ययोजना वर्ष अक्टूबर से सितंबर तक रहता है। इस अवधि में वन विकास निगमों को वन विभाग की तरफ से चिन्हित पेड़ों को काटने का लक्ष्य पूरा करना पड़ता है। इस वर्ष तराई केंद्रीय वन प्रभाग के तीनों निगम मिलकर पचास हजार घन मीटर लकड़ी काटने जा रहे हैं। जिसमें यूकेलिप्टिस की सर्वाधिक 38 हजार घन मीटर लकड़ी व 7 हजार 8 सौ घन मीटर लकड़ी काटी जायेगी। जबकि खैर की 19 हजार ,शीशम की 13 हजार, सागौन की 2 सौ घन लकड़ी काटी जायेगी। इसके अलावा 300 घन मीटर विविध प्रजातियों की लकडि़या काटी जायेंगी। इस संदर्भ में तराई केंद्रीय वन प्रभाग के संभागीय वनाधिकारी डॉ. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि एक निश्चित अवधि के बाद पेड़ों का कटान न किया जाये तो लकड़ी की क्वालिटी खराब हो जाती है। चूंकि यूकेलिप्टिस व पोपलर के पेड़ शीघ्र विकसित होते हैं। जिससे इनको जल्दी काट दिया जाता है।