Sunday, 22 November 2009
बसंती देवी बनी उत्तरांचल ग्रामीण बैंक की ब्रांड एंबेस्डर
बसंती लोकगायकी की पहचान बनी ,तो उत्तरांचल ग्रामीण बैंक ने अपनी पहचान बनाने के लिए उनका सहारा लिया । बैंक की पहली महिला शाखा का न सिर्फ उनके हाथों उद्घाटन कराया गया ,बल्कि उन्हे अपना ब्रांड एबेंस्डर भी बनाया । बैंक के बाहर बसंती की पहाड़ के पारंपरिक गहनों से लकदक बसंती की बड़ी-बड़ी तस्वीर सभी को आकर्षित करती हैं उन्हें देवभूमि की तीजन कहा जा सकता है । सुर,ताल और लय के साथ उनका बहाव अद्भुत है । भले ही वे बड़े फलक पर चमकता सितारा न हों ,लेकिन वह उत्तराखंड लोकगायकी की पारंपरिक पहचान बन चुकी हैं।
उन्होंने गायन के ऐसे क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे डाली ,जिसमें महिला स्वर के लिए कभी पहाड़ में कोई जगह नही रही। उत्तराखंड में बसंती किसी परिचय की मोहताज नही हैं। पारंपरिक जागर शैली को नए आयाम देकर न सिर्फ उन्होंने एक मुकाम तक पहुंचाया है,बल्कि एक दूरस्थ गांव में जन्मी बसंती आज एक बैक की ब्रंड एबेंसडर हैं और उन्होन अपने आप को गौरा देवी ,बेछेन्द्रीपाल और हिमानी शिवपुरी जैसी शख्सियतों के समकक्ष खड़ा कर दिया है।
पारंपरिक गायक शैली का दूसरा नाम 56 वर्षीय बसंती बिष्ट का जन्म चमोली जिले के देवाल ब्लाक के ल्वाणी जैसे पिछड़े गांव में हुआ। यह क्षेत्र गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ता है , इसलिए बसंती को गढ़वाल और कुमाऊं दोनों भाषाओं का ज्ञान है और उन्होंने दोनों ही क्षेत्र की भाषा में पांरपरिक गीत बनाए और गाए हैं बसंती ने पहाड़ की दूसरी कलाओं की तरह जागर और गीत मांगल गान अपनी माता बिरमा देवी पिता आलम सिंह से सीखे । केवल पांचवी कक्षा तक पढी-लिखी बसंती का विवाह पंद्रह साल की उम्र में रणजीत सिंह बिष्ट के साथ हुआ। अस्सी के दशक में पहली बार पहाड़ से निकलकर पति के साथ जालंधर पहुंची । जालंधर में बसंती ने अपनी इस कला को सुर ,ताल ,और लय के साथ आगे बढ़ाने के लिए संगीत की शिक्षा ली,लेकिन पारिवारिक कारणों से संगीत की परीक्षा मे शामिल न हो सकी । इसके बाद उन्हे गांव लौटना पड़ा । नब्बे के दशक में उत्तराखंड आंदोलन उनके जीवन का महत्तवपूर्ण मोड़ था। वह कहती हैं कि आदोंलन के दौरान जनसभाओं ,रैली ,और नुक्कड़ सभाओं में उन्होंने लोगों को एक जुट करने के लिए कई गीत बनाए और गाना शुरु कर दिया । उनके सुर ,ताल और लय को प्रशंसा तो मिली ही तथा कुछ लोगों ने उन्हे आकाशवाणा की स्वर परीक्षा में शामिल होने की सलाह दी । वह कहती हैं कि वह 1996 में मैं स्वर परीक्षा में शामिल हुई और उसमें पास भी हुई आकाशवाणी से उन्हें पारंपरिक लोकगीत और जागर गाने का मौका मिला । इसके बाद गढवाल महासभा में 1998 में पहली बार गढ़वाल महोत्सव में जागर गाने का निमंत्रण दिया । उनकी जागर गायन की शैली से लोग इतने कायल हुए की दूसरे मंच पर भी उनकी मांग बढऩे लगी । इसके बाद तो बसंती ने पीछे मुड़ कर नही देखा ,और आज तो लोककलाओं पर आधारित कोई भी कार्यक्रम उनके बिना अधूरा ही माना जाता हैं । बसंती सिर्फ मंचों तक ही सिमटकर नही रह गई है ,वह गढवाल विश्वविद्यालय से लोककलाओं में डिप्लोमा लेने वाले छात्रों को लेक्चर भी देती हैं। हालांकि उनका कहना है कि जब उन्होंने मंच पर जागर गाना शुरु किया तो शुरु में उनका विरोध भी हुआ ।
बसंती जागर गायन की शैली को केवल पहाड़ और पहाड़ के लोगों के बीच ही नही रखना चाहती ।जागर को पहाड़ से नीचे उतारने के लिए उन्होंने प्रयोग भी शुरु कर दिए हैं । पहाड़ के देवी देवताओं के अलावा वह रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर भी जागर बनाने लगी हैं । वह कहती है कि पहाड़ के लोगों के बीच जब वह जागर गाती हैं तो पहले रामायण और महाभारत के प्रंसगों की कहानी हिन्दी मे सुनाती हैं । फिर उन्हे जागर की शैली में गाती हैं । (पहाड़ की इस संघर्षशील महिला के इस हौसले पर आपके क्या विचार हैं लिखे .....)
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great initiative
ReplyDeletebasanti ji aapke himaat or hausale ki daad deni padegi, wakay me aapne bahut sangharsh kiya or aaj wo mukaam bhi hasil kar liya...
ReplyDeletedhanya hain aap or aapki himmat..
पहाड की इस महिला को मेरा अभिनन्दन ।
ReplyDeleteसुनीता शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार
http://sunitakhatri.blogspot.com
http://swastikachunmun.blogspot.com
uttrakhand ki naari ,sab par bhari,
ReplyDeleteregards
Dinesh Bisht
Mumbai
Basanti devi jee ke bare me jaankar behad khushi huyee.
ReplyDeletekesharsingh bist
i proud of u Basanti Devi ji...............
ReplyDeleteWith Regards,
Pankaj negi
New Delhi