Tuesday, 27 January 2009

हिमालय बचाओ अभियान में शामिल लोगों का है सम्मान

26 jan- नई टिहरी: पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पदम विभूषण से सम्मानित प्रख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने इसे हिमालय बचाओ अभियान का सम्मान बताया। 9 जनवरी 1927 को मरोड़ा गांव टिहरी में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा सिरांई में हुई। 13 वर्ष की छोटी उम्र में टिहरी जनक्रांति के अमर नायक श्रीदेव सुमन से प्रेरित होकर वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1972 से 1981 तक जनपद चमोली के रैंणी गांव में जंगलों को बचाने के लिए चले चिपको के आंदोलन में वह अग्रणी रहे। एशिया के सबसे बड़े टिहरी बांध के खिलाफ उन्होंने आंदोलन का उन्होंने नेतृत्व किया और बांध से होने वाले पर्यावरणीय खतरों को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर रखा। यही नहीं, उन्होंने बांध के खिलाफ 72 दिन का उपवास भी रखा। 1981 में तत्कालीन सरकार ने उन्हें पदमश्री देने की घोषणा की थी लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। उनका तर्क था कि पहाड़ पर जब तक हरे पेड़ों का कटान होगा तब तक किसी पुरस्कार के कोई मायने नहीं है। इसके बाद सरकार ने पहाड़ पर एक हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर हरे पेड़ों के कटान पर प्रतिबंध लगाया। पदम विभूषण सम्मान मिलने पर अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए 82 वर्षीय पर्यावरणविद् श्री बहुगुणा ने कहा कि यह उस विचार का सम्मान है जिसके लिए वह लड़ रहे हैं। हिमालय बचाओ आंदोलन को सरकार ने मान्यता दी है।