Wednesday, 1 April 2009

नेगी दा इन गीत तू लगा ...............

देर होली अबेर होली, होली जरूर सबेर होली . आप और हमको नेगी जी इस गीत से दिलासा दिलाते हैं, पर खुद नेगी जी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए अंधेर की हद तक इंतजार करना पड़ रहा है. अब नेगी जी तो पता नहीं सम्मान की कितनी फिक्र है, पर उनके सुणदरों को इस पल का बेहद इंतजार है. नेगी दा के एक ऐसे ही सुणदर संजीव कंडवाल भी इन लोगों में शामिल हैं. पेश है उनकी खैरी, नेगी दा इन गीत तू लगा ............... भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले नागरिक सम्मानों की घोषणा हुए अब अच्छा खास वक्त बीत गया है. इस पर भी काफी लिखा गया कि कश्मीर का एक शॉल व्यापारी, कारीगर के नाम पर किस तरह पद्म पुरस्कार ले उड़ा दिल्ली की लगड़ी हुकूमतों को जब तक अमर सिंह की जरूरत महसूस होगी, कोई एश्वर्या राय, बिग 'बी' या स्मॉल 'बी' बारी बारी से पुरस्कार झाटकते ही रहेंगे.खैर, इन पुरस्कारों की शुचिता बहाल करना हमारी चिंता में शामिल नहीं है, कम से कम यहां पर में 'बेमानी होते नागरिक सम्मान' जैसा लेख भी नहीं पेल रहा हूं. मैं तो इन पुरस्कारों में अपना हक तलाश रहा हूं, अपना यानि उत्तराखंड के मसलों का. मेरे से इत्तफाक रखते हों तो साथ में आएं और जो मेरी बात बंडल लगती हो तो मुझो कोसने के लिए आप स्वतंत्र हैं. ................. इस बार भी कुछ पहाड़ी जन इस लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन इस बार भी वह नाम नहीं था, जिसे मैं हर बार 25 जनवरी की शाम अपने न्यूजरूम में खबरें लिखते वक्त दिल्ली की न्यूजएजेंसी से आने वाली खबरों में तलाशता हूं. जाने क्यूं मुझो लगता है कि मेरी तरह हजारों और पर्वतजन इस नाम को अगले दिन न्यूज पेपर में तलाशते होंगे. पर ऐसा नहीं हो पाता, साल दर साल. इन पुरस्कारों का चयन करने वाले कला, साहित्य समाज के मूर्धन्य विद्वानों से मेरा सवाल है कि अब तक मेरे नरू भै (नरेंद्र सिंह नेगी) को कोई पद्म पुरस्कार क्यूं नहीं मिला. अगर छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए तीजनबाई की पांडवानी को सम्मानित किया जाना गौरव की बात है तो हमारे नेगी दा भी लाखों उत्तराखंडवासियों के आवाज हैं. पहाड़ के किस व्यथा को उन्होंने आवाज नहीं दी. सरकारें जलागम, जंगलात जैसी नकली योजनाओं के जरिए जंगल बचाने का सपना पालती हैं, तो नेगी जी ' ना काटा तों डाल्यंू ना काट' गाते हैं. बात फिर भी समझा ना आए तो 'जिदेरी घसेरी' को भी समझााते हैं. पर्यावरण के नाम पर लेक्चर बांटने वाले तो खूब सम्मानित हुए हैं, पर लोक बोली में जंगल बचाने का सीधा संदेश देना वाला अब तक हासिए पर क्यूं है. इसलिए मेरा सवाल बनता है कि जब राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल हाल में ज्यादातर लोक बोलियों की गूंज हो चुकी है तो फिर 'ठंडो रे ठंडो' क्यूं नहीं. ......... चलो यह बात तो दिल्ली के विद्वानों की हुई, पर अपनी देहरादून की सरकारें क्या कर रही हैं. आखिर पुरस्कारों की औपचारिक घोषणा से पहले एक बार राज्य सरकारों से भी नाम मांगे जाते हैं. फिर कैसे हर बार नेगी दा पीछे छूट जाते हैं, फिर कैसे इंकार किया जा सकता है कि पुरस्कार काम के लिए नहीं जुगाड़ के लिए दिए जाते हैं. हम नहीं कर रहे हैं कि नेगी दा को पद्म पुरस्कार मिल गया तो पुरस्कार के साथ चलने वाले सारे विवाद दूर हो जाएंगे, बावजूद इसके जब हर साल अज्ञात अल्पज्ञात और विवादित फिल्मी हस्तियों को सम्मानित होता देखता हूं तो नेगी दा की कमी मुझो कुछ ज्यादा ही खलती है.अपनी हुकूमतों से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है, समाज समूह का दवाब कर गया तो कहना मुश्किल है. आखिर इन्ही सरकारों की नजर में नेगी जी और एक काल गर्ल रैकेट चलाने वाला दलाल बराबरी पर खड़े हैं. याद है ना जिस साहित्य सांस्कृतिक परिषद में नेगी सदस्य रहे हैं, उसके एक सदस्य पर इसी तरह के आरोप लगे थे. ऐसे में 'सब्बी धाणी देहरादूण' पर कमेंट करने वाले नेगी को देहरादून के सत्ताधीश भला कैसे स्वीकार कर सकते हैं. बल्कि इन लोगों ने जब तब नेगी को नीचा दिखाने की कोशिश की है. 'नौछमी' ने किस तरह नेगी को अपने खर्च पर फॉरेन टूर पर जाने से रोकने की कोशिश की, मीडिया से जुड़े होने के कारण मै इस ड्रामे से बखूबी वाकिफ हूं. नौछमी तो पहाड़ी प्रतीकों के प्रतिनिधि विरोधी हैं, पर मौजूदा सरकार भी नेगी से भय खाती नजर आ रही है. और इस सरकार में पहाड़ी सरोकारों का दम भरने वाली यूकेडी भी शामिल है. इसलिए मुझे कुछ ज्यादा बुरा लग रहा है. खैर अब जो हुआ सो हुआ, हमें ठोस एक्शन प्लान के साथ काम करना होगा. हमारे अप्रवासी भाई बंद इस बारे में अच्छी पहल कर सकते हैं. अपनी सरकार के नुमाइंदों से हम इस बारे में सवाल कर सकते हैं. पहाड़ आधारित डॉटकाम पर ऑनलाइन पोल काफी नहीं होगा, हो सके ?तो कुद सार्वजनिक मंचों से इस बात को उठाई जाए. गहरी नींद में सौ रहे सत्ता के कुंभकरणों को जगाने के लिए मंडाण लगाया जाए. मांगल गाए जाए, दैणा हुंय्या दिल्ली की सरकार, दैणा हुंय्या देहरादूण की सरकार ... लेखक दैनिक जागरण ग्रुप मेरठ में सीनियर रिपोर्टर हैं. आपकी राय का इंतजार - mail me sanjeevkandwal@gmail.com http://www.pahar1.blogspot.com/ (uttarakhand first news blogs)

7 comments:

  1. ji sanjeev kandwal ji hum aapaki baaton se bilkul sehmat cha.or yu ju aapal likhyun ch bilkul thik likhyun ch.yi baat ma hum aap dagad cha ji

    good keep it up.we all are with you sanjeev ji.

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  2. It is better to impress our won folks rather than running after Govt. Create such an awareness as far as wide that Govt becomes obliged to recongnise the hidden talent.

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  3. sanjeev ji,
    aapal thik lyakha. Negi da giter hi ni chhan balki pahar ki boli chhan, lok ku dard, ahsas , vichar , ansu, hansi ,bachon ki kilkari ,bhai beno ki khud, kisanu ku parishram, sur bhi na jane kya kya chhan. kui bhi padm puruskar kankwe veen unchai thein nap sakad. jab ek kalakar lok ma in rachi basi jand ta bada bada puruskar bhi bemani hwe jandin. lekin phir bhi yun puruskaron hamar kartavya purti jaroor hoonda. Negi da thein Padm Puruskar jarur milnu chainu cha..

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  4. hanuman singh bangari from lawari ruderpryag garhwal12 September 2009 at 19:45

    bahi jab hum india ma cha tab jyda ruchi nahi che per jab hum india se bahar aaaye tab pta chla ki nrender singh negi ji ki aawaj utrakhand ka culture majboot banaye invoirment per or poltics per kya cominet mari bilkul sahi 100n10%right hum aapa saath hai muje asi side batao jis me pure garhwali song hon plz bes regards to you mr n s negi dida

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  5. hanuman singh bangari ruderpryag garhwal12 September 2009 at 19:55

    bahi ek baat or suno
    paka pahari do hi aadmi lagte hai
    ek utrakhand ke purv c.m bhagat da
    2-nrender singh da
    (kan ladik bigri maru)
    wah bahi kya gana hai rona aata hai jab bhi suno abhi kuch dino pehle me india gya tha
    kuch batno se apne parents se jagrha ho gya me seaprate ho gya tha apne bache srinagar shift kar diya tha me dubai aa gya tha jab dubai me mane apne uncle ke gar per ye gana fir suna tab mari aankh khuli fir mane apne parants ko phone kiya eslye negi bahi sukirya bahut bahut aapka bahi hanuman singh

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  6. bheji aap ne jo likha wo katu satya ch aapn th hamri dil ki bat bolyal meri ni hajaro uttrakhandiyon ki ju matr bhumi se prem kardi.
    --harish khankriyal Anjwal Faridabad

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  7. hello sir bahut hi badiya blog hai aapka... maine bhi apna blog shuru kiya hai... pahadi gaano ke to har koi diwane hain... bas sun kar kahi kho jate hain... esa hi song maine suna to use badi muskil se dhunda... to socha or ko bhi dikhaun....

    http://bababerojgaar.blogspot.in/2015/09/songs-oh-suwa-pyari-suwa-video.html

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