Sunday, 18 January 2009

टिकट की दरकार, आर्शीवाद दो हे नारायण

नैनीताल संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट की दावेदारी करने वाले नेताओं को लग रहा है कि अगर बुजुर्गवार का आर्शीवाद मिल गया तो टिकट और फिर बाद में लोकसभा की राह आसान हो जाएगी। यही कारण है कि दावेदार इन दिनों नारायण परिक्रमा कर रहे हैं। अब नारायण है कि न हां कर रहे हैं और न ही ना। 1991 की राम लहर और बाद में 1998 के लोकसभा चुनाव की बात छोड़ दें तो नैनीताल संसदीय सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नारायण दत्त तिवारी का ही दबदबा रहा। जब चाहा खुद जीत गए और वक्त की मांग हुई तो इस्तीफा देकर अपने किसी शिष्य को लोकसभा का रास्ता दिखा दिया। अब आम चुनाव ही बेला नजदीक है सो नेताओं की तैयारियां चल रही हैं। इस सीट से दावेदारी करने वाले नेताओं को यह पता है कि एनडी इस समय भले ही सक्रिय राजनीति से दूर हैं टिकट उन्हीं की सहमति से मिल सकता है। पिछले कोई रोज से चर्चा हो रही है कि एनडी एक बार फिर से सक्रिय राजनीति में लौट सकते हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस को सत्ता में वापसी की बंधी है। ऐसे में लगभग तय जीत वाली सीट एक सीट को कांग्रेस क्यों खोना चाहेगी। कांग्रेस अगर एनडी को ही मैदान में उतारने का मन बनाती है तो टिकट को लेकर किसी और के नाम पर शायद चर्चा भी नहीं होगी। यही कारण है कि नैनीताल सीट से कांग्रेसी टिकट के दावेदार इन दिनों नारायण परिक्रमा करने राजभवन हैदराबाद जा रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि दावेदार एनडी से पहले तो यही आग्रह कर रहे हैं कि वे खुद चुनावी मैदान में आए। कुछ उत्तर न मिलने पर दावेदार अपनी जीत के आंकड़े समझा रहे हैं। दावेदारी करने वालों की सोच है कि बुजुर्गवार का आर्शीवाद मिलने के बाद ही दिल्ली दरबार में भी हाजिरी लगाई जाए। खाली हाथ दिल्ली की दौड़ लगाकर हाथ का टिकट हासिल करने और लोकसभा में जाने की बात ही बेमानी है। अगर यह साफ हो जाए कि एनडी खुद ही मैदान में आएंगे तो उस लिहाज से तैयारी की जाए। खास बात यह है कि एनडी सुन तो सबकी रहे हैं पर टिकट या चुनाव लड़ने के बारे में हां या ना कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। राजभवन में आने वाले दावेदारों को वे अपने अंदाज में बातचीत कर वापस भेज रहे हैं। बात भी ठीक है, संवैधानिक पद पर रहते राजनीति की बात भी नहीं की जानी चाहिए।

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