Sunday, 18 January 2009

ऐसे तो नही बचेगी हमरी संस्कृतिकर्मियों

18 jan09-देहरादून, : उत्तराखंड की संस्कृति से देश-दुनिया को परिचित कराने के सरकार भले ही लाख दावे करे, लेकिन हकीकत यह है कि संस्कृतिकर्मियों की सुध लेने वाला तक कोई नहीं है। अमृतसर में हुए राष्ट्रीय युवा महोत्सव से भाग लेकर लौटे कलाकारों की उपेक्षा तो इसी हकीकत को आईना दिखा रही है। आरोप है कि जिस अफसर के नेतृत्व में राज्य के कलाकारों का दल अमृतसर गया, उसने उन्हें कार्यक्रमों के प्रस्तुतिकरण के समय तक से अवगत नहीं कराया। हद तो तब हो गई, जब वापसी में इन कलाकारों को देहरादून के परेड ग्राउंड में छोड़ दिया गया। राष्ट्रीय युवा महोत्सव में भाग लेकर लौटे कलाकारों के 55-सदस्यीय दल ने शनिवार को आपबीती सुनाई। उन्होंने बताया कि राज्य के कलाकारों ने महोत्सव में विभिन्न एकांकी स्पद्र्धाओं में भाग लिया। उनका आरोप है कि युवा कल्याण विभाग ने जिस अधिकारी की अगुआई में दल को भेजा, उसने वहां पर महोत्सव से संबंधित दिशा-निर्देशों के बारे में बताने की जरूरत तक नहीं समझी। और तो और महोत्सव में प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रम के लिए निर्धारित समय तक की जानकारी उन्हें नहीं दी गई। दल में शामिल देहरादून समेत चमोली, चंपावत, नैनीताल आदि जिलों से आए कलाकारों जगदीश आर्य, रामसिंह फत्र्याल, नरेंद्र सिंह, मोहित बिष्ट, दीपक सिंह, किशोर कुमार, सतीश चंद्र, प्रेम हिंदवाल, प्रकाश भोटियाल, पवन शाह, पुष्कर हिंदवाल, लक्ष्मण पल्लव आदि ने बताया कि अमृतसर ही नहीं, वापसी में भी उनकी उपेक्षा का क्रम जारी रहा। कुछ कलाकारों ने तो बस में देहरादून तक खड़े-खड़े सफर किया। हैरत की बात तो यह है कि शनिवार की सुबह इस दल को परेड ग्राउंड में छोड़कर उक्त अधिकारी द्वारा अपने गंतव्यों के लिए जाने को कह दिया गया। कलाकारों ने बताया कि विरोध जताने पर उन्हें एक धर्मशाला के हॉल में भेड़-बकरियों की तरह ठूंसा गया। यह भी आरोप लगाया कि काफी अनुनय-विनय के बाद उन्हें 11 से 16 जनवरी तक के मानदेय के रूप में सिर्फ 250 रुपये दिए गए। यही नहीं, पहले तो खाने-नाश्ते के लिए भी मना कर दिया गया और विरोध जताने पर मात्र 80 रुपये प्रति कलाकार थमाए गए।

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