Sunday, 18 January 2009

रहम मांगती अभिशप्त जिन्दगी

18 jan- हल्द्वानी: पहले पति का साया उठा। अब शरीर के मुख्य अंगों ने ही दगा दे दिया। निजी विद्यालय में अध्यापन से दो वक्त की रोजी-रोटी और बच्चों के स्कूल का खर्च निकल जाता था लेकिन सात महीने से बिस्तर में लेटे और महंगा इलाज के कारण अब जीवन गुजर-बसर मुश्किल हो गया है। कुंवरपुर गौलापार निवासी महेन्द्र सिंह जीना का 2002 में स्वर्गवास हो गया था। इससे परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट गया। पत्‍‌नी पंकजा जीना ने गौलापार में ही निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्य शुरू किया। इसी खर्च से उसके एक बेटा व एक बेटी की गुजर-बसर होती थी। लेकिन जुलाई 2008 में चिकित्सकों ने पंकजा के दोनों गुर्दे खराब बता दिये। तब से डायलिसिस करते-करते वह परेशान हो गयी है। किराये के कमरे में निवास कर रहा परिवार कर्ज में आ गया है। दोनों बच्चे असहाय हैं। पंकजा की हालत अत्यंत दयनीय हो जा रही है। इस समय वह एसटीएच के सी वार्ड के 12 नंबर बेड में भर्ती है। बीपीएल कार्डधारी परिवार को मदद की दरकार है। 15 वर्षीय उसकी बेटी पूजा ने डा. सुशीला तिवारी स्मारक वन चिकित्सालय ट्रस्ट के सचिव मोनिष मलिक से नि:शुल्क उपचार किये जाने की गुहार लगायी है। उसका कहना है कि आये दिन डायलेसिस करनी होती हे इसके चलते ओ पॉजिटिव ब्लड की आवश्यकता भी होती है।

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