Wednesday, 7 January 2009
महिलाएं बनेंगी गो-अर्क कारोबार की लीडर
7 jan अब उत्तराखंड में महिलाएं गो अर्क के माइक्रो कारोबार की लीडर बनेंगी। यह सूबे में सौ केंद्रों का उत्पादन नेटवर्क होगा। खास बात कि गरीबी उन्मूलन की दिशा में यह देश में अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है। इस पहल से हिमालयी क्षेत्र की सदियों से गुरबत की जंजीर में जकड़ीं हजारों महिलाओं को आर्थिक आजादी मिल सकेगी। पशु वैज्ञानिकों ने शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि देसी गाय के दूध ही नहीं, मूत्र व गोबर में भी कई औषधीय गुण हैं। गो मूत्र के अर्क से अनेक तरह की दवाई, औषधीय महत्व के शैंपू, साबुन, क्रीम तथा गोबर से फिनाइल आदि बन सकते हैं। इन उत्पादों का बाजार है और मांग के अनुपात में देसी गायों की संख्या कम होने से कच्चे माल के रूप में गो मूत्र या अर्क की आपूर्ति कम है, जबकि पर्वतीय जिलों में देसी गाय अधिक संख्या में उपलब्ध हैं। सूबे में फिलहाल प्रयोग के तौर पर छह गो अर्क शोधन संयंत्र सरकारी क्षेत्र में चलाए जा रहे हैं, जिनके परिणाम सफल रहे हैं। सरकार की योजना अब सौ नए संयंत्रों को निजी क्षेत्र में महिलाओं को सौंपने की है। पर्वतीय क्षेत्र में दूध के कारोबार में महिलाएं ही अधिक संख्या में जुड़ी हैं। गो मूत्र से बने अर्क की कीमत 25 रुपये प्रति लीटर तक मिलना तय है। महिला स्वयं सहायता समूहों की सोसाइटी बनाकर उन्हें संयंत्र सौंपे जाएंगे। इसके बाद सबको उत्पादन, संग्रह व आपूर्ति के संगठित प्रादेशिक कारोबारी नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जागरण को जानकारी दी कि गो मूत्र शोधन कर रोजाना 15 से 25 लीटर अर्क बनाने वाली छोटी क्षमता के संयंत्र की एक इकाई स्थापित करने पर करीब ढाई-तीन लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। योजना सूबे के सौ न्याय पंचायतों में सौ संयंत्र स्थापित करने की है। इसके लिए रकम का प्रबंध हो चुका है। कृषि निदेशालय और उत्तराखंड लाइव स्टाक डेवलपमेंट बोर्ड को स्थल व जिला दुग्ध संघों को चिह्नित कर प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया गया है।
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