Sunday, 18 January 2009
उत्तराखंड में नकली और घटिया दवाओं का कारोबार
देहरादून, हरिद्वार स्थित एक दवा कंपनी में नकली दवाएं बनाने का मामला सामने आया है। गाजीपुर की एक मेडिकल शॉप से लिए गए इस कंपनी की दवा के सैंपल को यूपी की सरकारी लैब ने नकार दिया है। लैब की रिपोर्ट के मुताबिक इस दवा के निर्माण में मानकों को पूरा नहीं किया गया है। हालांकि लैब ने इस कंपनी के बारे में सूबे के ड्रग कंट्रोलर से जानकारी मांगी है, लेकिन सूबे का स्वास्थ्य विभाग अभी इस बारे में कुछ भी कहने से बच रहा है। उत्तराखंड में नकली और घटिया दवाओं का कारोबार फल फूल रहा है। सूबे में दवाओं की जांच के लिए कोई लैब न होने के कारण दवाओं की सैंपलिंग नहीं हो पाती। इसके चलते कुछ दवा कंपनियां लोगों को नकली दवाएं परोस रही हैं। ऐसा ही एक मामला हरिद्वार के मंगलौर स्थित मेसर्स जीएस फार्मास्युटिकल प्रा. लिमिटेड के बारे में सामने आया है। सूत्रों के अनुसार इस कंपनी के नाम से बनी दवा डाइक्लोजूम, जिसका बैच नंबर टी-5648 है की सैपंलिंग उत्तर प्रदेश के गाजीपुर क्षेत्र में ली गई। गाजीपुर क्षेत्र के अजंता मेडिकल स्टोर से इस दवा के सैंपल दो जून, 2008 को लिए गए थे। वहां के औषधि निरीक्षक ने इस दवा को जांच के लिए उत्तर प्रदेश की राजकीय प्रयोगशाला लखनऊ भेजा। लैब की रिपोर्ट के मुताबिक डाइक्लोजूम जिसमें डिक्लोफेनेक सोडियम व पैरासिटामोल का कंबिनेशन है, अधोमानक पाया गया है। लैब की मानें तो 50 मिलीग्राम की दवा में डिक्लोफेनिक सोडियम सिर्फ 21.96 मिलीग्राम ही है। जो आधे से भी कम है। यह दवा सब स्टैंडर्ड की साबित होती है। दर्दनिवारक और बुखार में ली जाने वाली इस दवा से मरीजों को कोई फायदा नहीं होगा। दवा की एक्सपायरी भी फरवरी 2009 में है। इस बाबत औषधि निरीक्षक गाजीपुर ने औषधि नियंत्रक उत्तराखंड को पत्र लिखकर अवगत कराया और फर्म के संविधान संबंधित कई जानकारी उपलब्ध कराने की मांग की। पत्र में कहा गया है कि यह दवा मंगलौर स्थित मेसर्स जीएस फार्मास्युटिकल प्रा. लिमिटेड से खरीदी गयी है, जिसका इनवाइस नंबर भी उपलब्ध है। इसके अलावा पत्र में उत्तराखंड औषधि विभाग द्वारा जांच में सहयोग नहीं करने का आरोप भी लगाया है। औषधि निरीक्षक गाजीपुर ने पत्र में लिखा है कि मामले के पकड़ में आने पर उन्होंने उत्तराखंड के ड्रग कंट्रोलर को फोन पर जानकारी दे कर फर्म का संविधान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, लेकिन उनसे कहा गया कि उत्तराखंड में लिपिकीय वर्ग की हड़ताल के कारण फर्म का संविधान उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और हरिद्वार के औषधि निरीक्षक भी अवकाश पर हैं। इस संबंध में जब औषधि नियंत्रक डीडी उप्रेती से पूछा तो उन्होंने दवा की सैंपलिंग की जानकारी से इनकार किया। उन्होंने इस नाम की दवा कंपनी के होने पर भी संदेह व्यक्त किया और कहा वे जांच कराएंगे कि हरिद्वार जिले में इस नाम की कोई कंपनी है। इस संबंध में अपर निदेशक प्रशासन व ड्रग डा. एचसी भट्ट से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वे मामले की जांच कराएंगे और यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि यह कंपनी हरिद्वार में है या नहीं। कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात उन्होंने कही।
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