Wednesday, 7 January 2009

अपने ही कर रहे हैं पाक दामन तो तार-तार

7 jan राज्य स्थापना के बाद उत्तराखंड की पुलिस को नाम दिया गया था-मित्र पुलिस। सोच थी कि आम जनता से पुलिस मित्रवत् व्यवहार करेगी। देवभूमि की पुलिस से यहां के सीधे-सच्चे लोगों को बड़ी आकांक्षाएं थीं, लेकिन जिस हिसाब से राज्य की पुलिस बेकसूर लोगों का अनावश्यक उत्पीड़न कर रही है, उससे लगता है इन आकांक्षाओं पर तुषारापात हो रहा है। पुलिस की दिन-ब-दिन खराब होती छवि से लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं कि पुलिस उत्पीड़न का शिकार होने वाले आम लोग आखिर किससे और कैसे शिकायत करें। जब खाकी वर्दीधारी ही लूट पर उतारू हों तो लुटेरों पर इल्जाम लगाने किसके पास जाएं। सत्यापन के नाम पर छात्र के कमरे में गए और बाद में उसे और उसकी मित्र को ब्लैकमेल करने वाले सिपाहियों की करतूत ने एक बार फिर से पुलिस का चेहरा बेनकाब कर दिया है। पिछले दिनों चलाए गए अभियानों के दौरान लगातार प्रचार करती रही कि किसी भी तरह की संदिग्ध घटना के बारे में तुरंत पुलिस को सूचना दें। कोई आपको तंग करे तो तुरंत शिकायत करें, लेकिन जब घर आने वाले सिपाही की गतिविधियां ही संदिग्ध हों, तब क्या करे। अजनबी के दरवाजे पर आने पर कोई भी दस बातें पूछे बगैर उसे भीतर नहीं घुसने देता, जबकि खाकी वर्दी को देखकर इस तरह का संदेह नहीं किया जाता। पुलिस महानिरीक्षक अपराध एवं कानून व्यवस्था एमए गणपति ने उक्त दोनों सिपाहियों के खिलाफ कानूनी व विभागीय कार्रवाई की बात कही है। इसके अलावा वे सत्यापन अभियान के दौरान पुलिसकर्मी द्वारा किसी भी प्रकार का उत्पीड़न किए जाने की शिकायत सीधे एसएसपी, पुलिस मुख्यालय या उत्तराखंड पुलिस की वेबसाइट पर करने की बात भी कहते हैं, लेकिन सवाल यह है कि जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, ऐसे में शिकायत करने की हिम्मत आखिर कौन कर पाएगा।

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