Wednesday, 4 February 2009

अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है स्मृति वन

3 feb-रामनगर इसे वन विभाग की उदासीनता समझे या बजट का अभाव। राजीव गांधी स्मृति वन आज भी अपनी उपेक्षा का दर्द बया करता नजर आ रहा है। बताते चले कि कोसी बेराज से सटे लगभग पन्द्रह एकड़ वन भूमि को 1993 में वन विभाग ने इसे सिटी फारेस्ट का नाम दिया था। 1994 में इसे राजीव गांधी स्मृति वन के नाम से पुकारा जाने लगा है। तब नैनीताल की तत्कालीन जिलाधिकारी आराधना जौहरी ने यहां बरगद का वृक्ष लगाकर स्मृति वन की नींव डालते हुए नागरिकों से अपील की थी कि वह अपने प्रियजनों की याद में वृक्ष लगाए। वनप्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी रूपक डे के कार्यकाल के दौरान यह स्मृति वन खूब फला- फूला। छब्बीस जनवरी हो या पन्द्रह अगस्त हर राष्ट्रीय पर्व पर विभिन्न स्कूलों के बच्चे इस क्षेत्र में अपने प्रियजनों, पूर्वजों की याद को सहेजते हुए इस वन क्षेत्र में वृक्ष लगाते रहे। उस समय यह क्षेत्र इतना खुशाल था कि वन विभाग ने यहां कक्षों का निर्माण करने के अलावा कच्ची सड़के भी विकसित की थी। स्मृति वन के नाम से विख्यात हो चला यह वन क्षेत्र नगर वासियों की धरोहर बन चुका था। कभी स्थानीय नागरिकों एवं वनकर्मियों से गुलजार रहने वाला स्मृति वन आज उजाड़ बन कर अपनी बर्बादी की कहानी खुद कहता नजर आ रहा है। आज तस्वीर बिल्कुल उलट है। किसी भी वनकर्मी के न रहने से यहां शराबियों, आपराधिक तत्वों एवं लकड़ी तस्करों का जमघट रहने लगा है। कई संगीन अपराध भी गाहे-बगाहे इस क्षेत्र में घटित होने से स्थानीय नागरिकों ने इस क्षेत्र में जाना ही छोड़ दिया है। अपवाद के नाम पर केवल मार्निग क्लब के कुछ सदस्य अपने प्रियजनों की याद में लगाए गए पेड़ो को संरक्षित करते दिखाई देते है। रोजमर्रा की भागमभाग जिन्दगी से कुछ पल सुकून के इस स्मृति में बिताने के इच्छुक लोग इसकी दयनीय स्थिति को देखकर काफी निराश है। मार्निग क्लब के सदस्य डा. विपिन मेहरोत्रा, सर्वेश अग्रवाल कहते है कि अब तो इस स्मृति वन के ऊपर पुल का निर्माण होना है। यदि वन विभाग चाहे तो इसे बेहतर पर्यटन स्थल बनाकर राजस्व प्राप्ति कर सकता है। बेजान हो चले इस स्मृति वन की दशा कब सुधरेगी इसकी प्रतीक्षा स्थानीय नागरिकों को है