Sunday, 15 February 2009

पहाड़ में अमर हैं कई प्रेम गाथाएं

पंवाड़ा औऱ लोक गीतों में खासी जगह मिली है प्रदेश की प्रेम कथाओँ को प्रेम दीवानों के लिए मिजॉ गालिब ने यूं ही नही फरमाया-बात अपने पहाड़ की करे तो प्यार करने वालों की गाथाएं यहां भी बिखरी पड़ी हैं । जनमानस में अमर हैं फिर चाहे वो जीतू-बगड्वाल-भरणा का प्रेम-प्रंसग हो ,राजुली-मालुशाही,सरुली-गढसुम्याल या फिर रामी-रामी का पति प्रेम आज भी मिसाल है। हर तरफ वेलेंटाइन वीक के बहाने नौजवानों पर प्यार का खुमार चढा़ है । प्यार ,तो त्याग ,समपॅण ,प्रेरणा, और दूसरे के लिए सवॅस्व न्यौछावर कर देने की भावना है प्यार । यही नजीर आज भी पेश कर रही हैं लोक मानस में रची-बसी अमर प्रेम गाथांए ।इन गाथाओं में न गुलाब की कलियों का योगदान था,न चाकलेट -टैडी और न आई लव.... जैसे शब्दों का फिर भी यह गाथांए आज तक पहाड़ो मे गूज रही हैं जिंदगी कू सुख पाई प्यारी तेरी आंख्यूं मां...... जैसे लोक प्रेमगीत गाथाओं को सुर देने वाले गायक प्रीतम भरतवाण कहते हैं कि पहाड़ की खास लोक गायन शैली पंवाड़ा प्रेम-प्रसंगों को सजियों से लोगों के बीच रखती आई है ।माछी-पाणि सी ज्यू तेरु-मेरु हो, बिना तेरा नी रयैजू- नी रयैंदू त्वै बिना........,जैसे लोकप्रिय नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं वेलेंटाइन डे सरीखा एक दिनी प्यार तो सिफॅ उनके लिए है ,जो जिंदगी से थके हारे हैं । वनॉ ,प्यार के लिए किसी खास दिन की जरुरत नही होती। पहाड़ को लोक गाथाओं में रचे-बसे प्रेम प्रसंग, देश -दुनिया की प्रसिद्द प्रेम गाथाओं की तरह गूंज रहे हैं और यही साबित करते हैं। मुहब्बत की कुछ चचित प्रेम - गाथाएं राजुली-मालुशाही-महज पांच दिन की उम्र में मालूशाही की राजुली से मंगनी हो गई थी राजुली उस वक्त मां के गभॅ में थी बाद में राजुली को जबरन कोई और ले गया । उसे वापस पाने के लिए मालुशाही को जोगी बनकर तंत्र विधा सीखनी पड़ी और तंत्र के सहारे उसे पा सका । गढ़- कुमाऊं के मध्य यह गाथा बहुत प्रसिद्द है। जीतू-बगड्वाल-भरणा-भरणा के लिए खैट पवॅत पर बांसुरी बजा रहे जीतु पर आछऱइयां मोहित हो गई औऱ उसका हरण कर लिया । टिहरी जिले की यह प्रेम कथा पूरे उत्तराखंड मे प्रसिद्द हैं। सरुली-गढसुम्याल- सात भड़ भाइयों की बहन सरुली रौतेला वंश के सुम्याल की बांसुरी पर मोहित हो जाती है । इन दोनो का प्रेम प्रसंग कुमाऊं क्षेत्र मे काफी प्रसिद्द है। रामी-रामी का पति प्रेम आज भी मिसाल है। १२ वषॅ तक पति के लौटने का इंतजार करते हुए उसने अपने यौवन का त्याग किया । पति ने जोगी बनकर परीक्षा ली,तो रामी का प्रेम पूवॅवत पाया । वयोवृद लोकगायक जीत सिह नेगी पति-पत्नी प्रेम की इस अनूठी गाथा को १९५६ में गीत- नाटिका के रुप में ढालकर औऱ लोकप्रियता दिलाई।

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