Monday, 23 February 2009

गंगा अथारिटी के प्रारूप में बदलाव

देहरादून उत्तराखंड ने पतित पावनी गंगा के उद्धार के लिए बन रही योजना में जल, हाइड्रो पावर और विकास कार्यो को लेकर अपने हक-हकूकोंकी पैरवी केंद्र सरकार से की है। इसके लिए नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथारिटी की अधिसूचना के प्रस्तावित प्रारूप में कई संशोधन किए गए हैं। गंगा को प्रदूषणमुक्त बनाने और पर्यावरणीय नजरिए से उसके तटों के प्रबंधन को अथारिटी का गठन प्रस्तावित है। इसके लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना के प्रस्तावित प्रारूप पर राज्य की राय मांगी है। केंद्र सरकार की इस मुहिम को उत्तराखंड हाथोंहाथ तो ले रहा है, लेकिन अपने अधिकारों से समझौता करना उसे गवारा नहीं है। अथारिटी के गठन के मामले में इस नजरिए को साफ किया गया है। प्रस्तावित प्रारूप में कई संशोधन किए हैं। इसमें नीतिगत फैसले लेने और उसे लागू करने से पहले राज्य से मशविरा करने पर जोर है। अपर मुख्य सचिव और वन एवं ग्राम्य विकास आयुक्त एनएस नपलच्याल की अध्यक्षता में राज्य के सभी संबंधित महकमों की बैठक में अधिसूचना के कुछ अंशों में संशोधन प्रस्तावित किए गए। इस उच्चस्तरीय बैठक में बाकायदा सिंचाई, पेयजल, पर्यटन, ऊर्जा, शहरी विकास विभाग, वन विभाग व उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बुलाया गया था। इसमें ऊर्जा को छोड़कर अन्य सभी विभागों के प्रतिनिधि शामिल हुए। राज्य सरकार ने प्रारूप के संशोधित प्रस्ताव में कहा है कि गंगा के जल के उपयोग, हाइड्रो पावर और विकास कार्यो की उसकी जरूरत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अथारिटी का हेडक्वार्टर नई दिल्ली में स्थापित करने के प्रस्ताव में इसके क्षेत्रीय दफ्तर सदस्य राज्यों में बनाने पर जोर दिया गया है। प्रदूषण रोकने के लिए गंगा तटों पर नियमित निगरानी के साथ इससे जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने का सुझाव रखा गया है। राज्य की राय है कि इंटीग्रेटेड बेसिन मैनेजमेंट प्लान बनाने में संबंधित राज्य से मशविरा जरूर किया जाना चाहिए। अपर मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल के मुताबिक अथारिटी गठन में राज्य के अधिकारों में कमी नहीं होनी चाहिए। गंगा की साफ-सफाई व जल शुद्धता से लेकर तमाम कार्यो को उत्तराखंड समेत संबंधित राज्यों के सहयोग से ही अंजाम दिया जा सकता है। साथ ही राज्य विकास संबंधी अपनी जरूरतों को दरकिनार नहीं कर सकता। यह संशोधित प्रारूप केंद्र को भेजा जा रहा है।

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