Monday, 2 February 2009
बिल्डरों की गिरफ्त में कुमाऊं की वादियां
2 feb-, भीमताल मंदी के बावजूद पहाड़ी क्षेत्रों में भू-माफियाओं द्वारा जमीन खरीद-फरोख्त का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। बाहरी पूंजीपतियों के साथ-साथ स्थानीय बिल्डरों के हौसले बुलंद हैं। ग्रामीणों से कृषि योग्य भूमि औने-पौने दामों पर खरीदकर अट्टालिकाएं खड़ी की जा रही हैं। प्राकृतिक खूबसूरती से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले पहाड़ की विशिष्टता नष्ट हो रही है बावजूद इसके शासन प्रशासन चुप है। पर्वतीय क्षेत्रों की सुरम्य वादियों को नष्ट करने में भू-माफियाओं के साथ स्थानीय बिल्डर किसानों से कृषि योग्य भूमि को सस्ते दामों में खरीदकर पूंजीपतियों के हाथों बेच रहे हैं। मुक्तेश्वर मार्ग में भवाली के बाद श्यामखेत, गागर, रामगढ़, नथुवाखान, कसियालेख, बना, भटेलिया, सरगाखेत, मुक्तेश्र्वर, धानाचूली, पहाड़पानी, मोतियापाथर समेत कई क्षेत्रों में कृषि भूमि जमीन की युद्ध स्तर पर खरीद फरोख्त हो रही है। लोगों से 20 से 50 हजार रुपये नाली में जमीन खरीदी जा रही हैं। स्थानीय बिल्डर ग्रामीणों से सस्ती दरों में जमीनें खरीद कर बाहरी पूंजीपतियों को लाखों में बेच रहे हैं। हरे भरे वृक्षों को जड़ से ही उखाड़कर सबूत तक मिटा दिये जा रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि पूंजीपति अब गांवों के बीच में भी जमीन खरीदने लगे हैं। क्षेत्र के प्रबुद्धजनों की मानें तो जिस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध स्तर पर जमीनें खरीदी व बेची जा रही हैं, उससे आने वाले समय में गम्भीर परिणाम सामने आयेंगे। ग्रामीण बुजुर्ग इसे आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छे संकेत नहीं बताते हैं। कृषि योग्य भूमि में अट्टालिकाएं खड़ी होने से खेती करने का रकबा दिनोंदिन घटता जा रहा है। पहाड़ी इलाकों में नासूर बनती जा रही जमीनों की खरीद फरोख्त से स्थिति दिनोंदिन बदतर होती जा रही है। कभी शांत रहने वाले ग्रामीण अंचलों में आपराधिक घटनाएं भी पनपने लगी हैं। आने वाले समय में हालात और खतरनाक होंगे इस बात से लोग जरा भी इंकार नहीं करते।