Monday, 2 February 2009
कुमाऊं की माटी में जैविक संतुलन गड़बड़ाया
2feb-बाजपुर: दिन-रात हाड़तोड़ मेहनत कर खेतों में सोना उगाने में जुटे किसानों के लिए बुरी खबर है। कुमाऊं की मिट्टी में जैविक संतुलन गड़बड़ा गया है। इसमें पोटाश अधिक है, जबकि फास्फोरस कम। इससे फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। बेहतर खेती के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की मात्रा संतुलित होना जरूरी है। इसके लिए कृषि विज्ञानियों ने शोध कर मानक निर्धारित कर रखे हैं। इनका संतुलन बिगड़ने का सीधा असर फसल की बढ़वार पर बढ़ता है, किन्हीं परिस्थितियों में फसल बढ़ती ही नहीं है तो किन्हीं परिस्थितियों में वह अचानक झुलस जाती है। कुमाऊं के विभिन्न जिलों में मृदा परीक्षण की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। संयुक्त कृषि निदेशक कार्यालय में मौजूद रिपोर्ट के अनुसार किसी भी जिले में मिट्टी का जैविक संतुलन सही नहीं है। उधमसिंह नगर में नाइट्रोजन व फास्फोरस कम है, जबकि पोटाश की मात्रा ठीक है। अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिलों में नाइट्रोजन व पोटाश मानक के अनुरूप हैं, जबकि फास्फोरस कम। चंपावत जिला अपवाद है, जहां तीनों की मात्रा मानकों के अनुरूप है। नैनीताल जिले की कृषि भूमि में नाइट्रोजन ठीक मात्रा में है, जबकि फास्फोरस कम व पोटाश अधिक है। बागेश्वर जिले में नाइट्रोजन ठीक है और फास्फोरस कम, जबकि पोटाश का मात्रा अधिक मिली है। कुमाऊं में औसतन नाइट्रोजन ठीक है, जबकि फास्फोरस कम व पोटाश अधिक है। मानक के तहत मंडल में औसतन नाइट्रोजन 3.03 प्रतिशत, फास्फोरस 2.37 व पोटाश 3.34 प्रतिशत होनी चाहिए। उपजाऊ माने जानी वाली तराई की भूमि की खराब रिपोर्ट कृषि विज्ञानियों के लिए चिंता का सबब बन गयी है।