Wednesday, 4 February 2009
तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें न रहें
बागेश्र्वर जिले के पापोली गांव में 20 मई 1962 में जन्मे गोविन्द सिंह पपोला
3 feb-, बिन्दुखत्ता अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद हमेशा कहा करते थे, शहीदों की चिताओं पर पड़ेंगे खाक के ढेले वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। उनका यह व्यंग्य गीत आज जहां तहां हकीकत बनता रहता है। ऐसा ही एक मामला बिंदुखत्ता में आम जन को मर्माहत करता रहता है। तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे ना रहे। कुछ कुछ ऐसा जज्बा रखकर मात्रभूमि के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले शहीद गोविन्द सिंह पपोला का परिवार नेताओं की वादाखिलाफी से आहत है। सैन्य परिवारों के प्रति हमदर्दी जताने का दंभ भरने वाले पूर्व सैनिक संगठन से भी शहीद के परिजन खफा हैं। बागेश्र्वर जिले के पापोली गांव में 20 मई 1962 में जन्मे गोविन्द सिंह पपोला है भाइयों में सबसे छोटे थे। लाड़प्यार से पले गोविन्द सिंह पपोला 12वीं पास कर सन् 1980 में रानीखेत से कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए। छह वर्ष कुमाऊं रेजिमेंट में रहने के बाद सेना की इंटलीजेंट ने उन्हें अपनी टुकड़ी में शामिल कर दिया। शहीद पपोला काफी जांबाज बहादुर व मिलनसार थे। उनके अधिकारी, साथी व उसने काफी प्यार करते थे सन् 2000 में उनकी कार्यशैली देख सेना ने उन्हें नायक सूबेदार से सूबेदार के पद पर प्रोन्नति दे दी। 18 जनवरी 2001 को सूबेदार की वर्दी पहनने पूना जाते वक्त जम्मू कश्मीर के अवंतिकासेक में आतंकवादियों के हमले में शहीद हो गये उनके इस बलिदान से न केवल बिन्दुखत्ता को बल्कि पूरे उत्तराखंड को गौरवान्वित किया। शहीद की शवयात्रा में उमड़ा जन सैलाब आज भी क्षेत्रवासियों के जेहन में है, जिसे भी पता चला सीधा दौड़ा चला आया। शहीद को अंतिम विदाई देने छात्रों पर खड़े होकर लोगों ने शहीद के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित किये, वहीं स्कूली बच्चों ने कतार बद्ध होकर श्रद्धासुमन अर्पित किये। सैन्य परिवार को इमदाद में यूपी सरकार ने दो लाख, केंद्र सरकार ने दिल्ली में दो कमरे का फ्लैट मुहैया कराया गया था। तत्कालीन विधायक तिलकराज बेहड़ द्वारा इन्डिया मार्का हैंडपंप लगाया गया एवं सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी लालकुआं से इन्दिरा नगर शहीद के गांव तक मोटर मार्ग बनाने की घोषणा की। मगर मोटर मार्ग पर सियासत हावी हो गयी। क्षेय लेने की होड़ में उक्त मार्ग में आज तक शहीद का नाम लिखा सिलापट नहीं लग पाया। शहीदों की याद में शहीद स्मारक बना उस पर जमकर राजनीति चली तथा शहीदों के नाम के साथ-साथ स्थानीय नेताओं के नाम भी अंकित हो गये हालाकि तीखे विरोध के बाद अब नाम हटा लिये गये हैं। चुनाव के दौरान सियासी दलों की शहीद परिवार की याद जरूर आती है लेकिन बाद में उन्हें कोई जानता ही नहीं स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस अथवा अन्य राष्ट्रीय पवरें पर भी शहीद परिवारों को किसी की भी याद नहीं आती है। सैन्य परिवारों की सुख सुविधाओं का ध्यान रखने का हवाला देकर पूर्व सैनिक संगठन तो जरूर बना है लेकिन यह संगठन भी सैनिक परिवारों के प्रति खरा नहीं उतरा है बकौल शहीद विधवा प्रेमा धपोला उनके आत्म सम्मान के नाम कई बार शुल्क जरूर लिया लेकिन किसी भी राष्ट्रीय पर्व पर पूर्व सैनिक संगठन द्वारा नाम नहीं भेजा जाता है। जो बेहद अफसोस जनक है। शहीद परिवार का दर्द है कि उन्हें मोहरा बना राजनीतिक स्वार्थ पूरे किये जाते हैं। शहीद की पत्नी प्रेमा पपोला ने बिन्दुखत्ता में शहीद द्वार बनाने की मांग की है। शहीद पपोला के एक पुत्री व एक पुत्र है पुत्री हेमा लाल बहादुर शास्त्री कालेज हल्दूचौड़ में प्रथम वर्ष की छात्रा है एवं पुत्र गोकुल क्वीन्स पब्लिक स्कूल हल्द्वानी में 10वीं का छात्र है।