Saturday, 29 August 2009

मौका मिलते ही खंडूड़ी ने हाईकमान से किया अपना दर्द बयां

=हमसे का भूल हुई, जो ये सजा..... मौका मिलते ही खंडूड़ी ने हाईकमान से किया अपना दर्द बयां पूछा सवाल: 24 विधायकों का समर्थन होने के बाद भी क्यों छीना ताज पार्टी से नाराज नेताओं की कतार में जुड़ा निवर्तमान सीएम का नाम देहरादून -अपनों के हमलों से भारतीय जनता पार्टी इस दिनों खासी आहत है। इसे अपनी बात कहने के लिए निवर्तमान मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने माकूल मौका समझाा। उन्होंनेएक पत्र लिखा और न केवल अपने दिल का दर्द बयां कर डाला, बल्कि हाईकमान को उसकी खामियां गिनाकर खुद को पार्टी से नाराज नेताओं की जमात में शामिल भी कर लिया। उन्होंने हाईकमान से यह भी पूछा लिया कि 'आखिर उनका ताज क्यों छीना गया'। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण शौरी ने पार्टी हाईकमान की खामियां गिनाईं तो उसमें उत्तराखंड में भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री पद से हटाने के फैसले को भी गलत करार दिया। इसके बाद तो जैसे श्री खंडूड़ी को मानो मौका मिल गया। करीब दो माह से मौन बैठे खंडूडी ने पार्टी हाईकमान को एक पत्र लिख डाला। सूत्रों ने बताया कि इसमें उन्होंने खुलासा किया है कि किस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को उनकी तमाम खामियों के बाद भी हाईकमान की ओर से बढ़ावा दिया जाता रहा। नतीजा यह रहा कि उन्हें सीएम के रूप में काम करने का माहौल ही नहीं मिल सका। खंडूड़ी ने पत्र में दावा किया है कि उन्हें 24 विधायकों का समर्थन हासिल भी था। इसके बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया। उन्होंने हाईकमान ने साफ लफ्जों में पूछा कि 'आखिर उनका कसूर क्या था'। यह पत्र लिखने के साथ ही श्री खंडूड़ी भी भाजपा के उन नेताओं की कतार में शामिल हो गए हैैं, जो हाईकमान से किसी न किसी वजह से नाराज चल रहे हैैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि श्री खंडूड़ी भी सीएम पद से हटने के बाद अंदरखाने नाराज चल रहे हैैं। अब हाईकमान अपनों के ही हमलों से हलकान है तो उन्होंने इसे अपनी बात कहने का माकूल मौका समझा लिया। आज पत्र का खुलासा होने के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने इस प्रकरण को लेकर कुछ स्पष्ट करने से पहले तो इंकार कर दिया। फिर इशारों इशारों में पार्टी थिंक टैैंक को आगाह किया कि भाजपा के मौजूदा हालात पार्टी के भविष्य व देश हित में नही है। उन्होंने कहा कि फौज से रिटायर होने के बाद पार्टी की नीतियों से प्रभावित होकर ही वे भाजपा में आए थे। अगर देशभक्ति, सेवाभाव और अनुशासन में कमी आती है तो इससे उन जैसे कार्यकर्ताओं में मायूसी लाजिमी है। --------- दिनभर चढ़ा रहा सूबे की सियासी पारा उठा सवाल: आखिर क्या निकलेगा खंडूड़ी के पत्र का नतीजा देहरादून, जागरण ब्यूरो सूबे के निवर्तमान मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के पत्र को लेकर सियासी पारा खूब चढ़ा। पत्र के मजमून को लेकर यह बात भी हवा में तैरती रहा कि आखिर इससे नतीजा क्या निकलने वाला। एक सवाल यह भी उठाया गया कि लोकसभा चुनाव में खुद ही हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने वाले श्री खंडूड़ी ने आखिर यह पत्र लिखा क्यों। लोकसभा चुनाव में सूबे की सभी पांच सीटों पर हार के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली थी। इसके बाद सियासी हालात ने इस कदर पलटा खाया कि श्री खंडूड़ी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तक देना पड़ा। बाद में डा. रमेश पोखरियाल निशंक की बतौर मुख्यमंत्री चयन कराने में भी श्री खंडूड़ी का अहम रोल रहा। उस समय भी यही माना गया कि एक तरफ श्री खंडूड़ी की हार हुई तो दूसरी तरफ सियासी जीत भी उन्हीं के हिस्से में आई। अब दो माह बाद उनका हाईकमान से ताज छीनने के बारे में सवाल पूछना किसी की समझा में नहीं आ रहा है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि उन्हें इससे कोई 'राजनीतिक फायदा' तो होने वाला नहीं है। हां, इस पत्र के जरिए वे हाईकमान से नाराज नेताओं की जमात में शामिल जरूर हो गए हैैं। लोग यह भी नहीं समझा पा रहे हैं कि हार के बाद ही नैतिक आधार पर हाईकमान के 'पत्र' लिखने वाले श्री खंडूड़ी को अब निर्णय में खोट क्यों नजर आ रहा है। --- ' मैैं इस पत्र के मामले में कोई कमेंट नहीं करना चाहता। जो कुछ कहना है, पार्टी की मर्यादा में रहकर ही कहूंगा। इस बारे में पार्टी ने भी कोई बात नहीं की है।' भुवन चंद्र खंडूड़ी, निवर्तमान मुख्यमंत्री 'मुझो इस पत्र के बारे में मीडिया से ही जानकारी मिली है। वैसे भी विधायक, मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री सीधे तौर पर हाईकमान से जुड़े रहते हैैं। प्रदेश भाजपा इस बारे में कुछ नहीं कर सकती।' बची सिंह रावत, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष 'पत्र तो सभी लिखते हैैं। इसमें गलत क्या है। यह भी ठीक है कि हार या जीत की जिम्मेदारी सामूहिक होती है। इस बारे में वक्त पर ही बात होनी चाहिए थी।' भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद

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