Monday, 3 August 2009

='च्यूर' से दूर होगी घी-मक्खन की कमी

-'च्यूर' का पेड़ सदियों से देवभूमि के लोगों को देता आ रहा है मक्खन, घी -उद्यान विभाग उत्तराखंड ने तैयार कराई 'बटर ट्री' की दस हजार से ज्यादा पौध -रोपण में सूबे के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, चमोली जिलों में रहेगा फोकस -व्यावसायिक दृष्टिकोण न होने से जरूरत पूरी करने तक सिमटा रहा उत्पादन -न्यूट्रिशियन वैल्यू गाय-भैंस के दूध से मिलने वाले मक्खन व घी के बराबर देहरादून कोशिशें फलीभूत हुईं तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड में मक्खन और घी की कमी नहीं रहेगी, बल्कि इसका निर्यात भी होगा। ऐसा संभव हो सकेगा 'च्यूर' नामक पेड़ से, जिसके फल सदियों से देवभूमिवासियों को मक्खन, घी देते आ रहे हैं। इसकी न्यूट्रिशियन वैल्यू भी वही है, जो गाय-भैंस के दूध से मिलने वाले मक्खन और घी की है, मगर व्यावसायिक दृष्टिकोण के अभाव में यह सूबे के कुछेक इलाकों तक ही सिमटा हुआ है। अब उद्यान महकमे ने 'बटर ट्री' के नाम से जाने वाले च्यूर के महत्व को समझाा है और इसकी पौधरोपण के लिए दस हजार पौध तैयार कराई है। हालांकि इसका रोपण राज्य में सभी जगह होगा, लेकिन मुख्य फोकस उन जनपदों पर रहेगा जहां पहले से ही इसकी उपलब्धता है। 'च्यूर' यानी 'डिप्लोनेमा ब्यूटेरेशिया' एवं 'एसेन्ड्रा ब्यूटेरेशिया' के पेड़ 2000 से 5000 फीट तक की ऊंचाई पर पाये जाते हैं। इसे फुलावार, गोफल आदि नामों से भी जाना जाता है। यह महुआ प्रजाति के पेड़ों से मिलता-जुलता है। उत्तराखंड के अलावा सिक्किम, भूटान, नेपाल में भी च्यूर के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। उत्तराखंड की बात करें तो यहां च्यूर के 50-60 हजार पेड़ हैं। इनमें से करीब 80 फीसदी से फल व बीज प्राप्त किए जा सकते हैं। दूध की तरह मीठे और स्वादिष्ट होने के कारण इसके फलों को चाव से खाया जाता है। मक्खन प्रदान करने वाले बीजों के कारण इसे 'बटर ट्री' भी कहा जाता है। च्यूर के बीजों से मिलने वाले मक्खन से चमोली के अलावा पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चंपावत व नैनीताल जिलों में सदियों से घी बनाया जाता है। मगर, यह लोगों की सिर्फ अपनी जरूरतभर तक ही सीमित रहा है। व्यावसायिक नजरिया न होने से यह ग्रामीणों की आय का जरिया नहीं बन पाया। अब उद्यान विभाग ने 'च्यूर' के महत्व को समझाा है और व्यावसायिक उत्पादन के मद्देनजर इसका पौधरोपण कराने का निर्णय लिया है। उद्यान निदेशक डा.बीपी नौटियाल के अनुसार च्यूर के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए तो यह राज्य की आर्थिकी को बदल सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए विभाग ने बलवाकोट (पिथौरागढ़) में इस बार 'बटर ट्री' की दस हजार से ज्यादा पौध तैयार कराई है। पौध का राज्य के सभी हिस्सों में रोपण किया जाएगा, मगर फोकस अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, चमोली जिलों में रहेगा। इन जनपदों की परिस्थितियां च्यूर के लिए उपयुक्त होने के साथ ही वहां इसके पेड़ भी काफी हैं। उद्यान निदेशक ने बताया कि च्यूर से मिलने वाले मक्खन व घी की न्यूट्रिशियन वैल्यू भी उतनी ही है जो गाय-भैंस के दूध से मिलने वाले मक्खन, घी की होती है। उन्होंने जानकारी दी कि च्यूर के पौध की डिमांड अधिक होने पर इसकी कमी वन विभाग से पौध लेकर दूर की जाएगी।

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