Saturday, 1 August 2009
-अस्तित्व बचाने को जूझा रहा सतीमठ
-कण्वाश्रम के नजदीक माता सती ने योग विद्या से सतीमठ में छोड़ा था शरीर
-मठ को यूपा माई ने बनाया कैंसर पीडि़तों के लिए तीर्थ
कोटद्वार(गढ़वाल): महर्षि कण्व की तपस्थली 'कण्वाश्रम' जहां स्वयं में ऐतिहासिक स्थली है, वहीं इसके नजदीक ही स्थित 'सतीमठ' भी पौराणिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इसी सतीमठ में माता सती ने योग विद्या से शरीर छोड़ा था। इतना ही नहीं, यहीं पर महर्षि श्वेतकेतु ने 'वृहद अरण्यक उपनिषद' की रचना की व दाराशिकोह ने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया था। इन सब पौराणिक, ऐतिहासिक महत्व होने के बावजूद सतीमठ उपेक्षा का शिकार है। सरकारी बेरुखी और पर्यटन विभाग की अनदेखी के चलते मठ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
देश के नामदेय प्रतापी राजा भरत की जन्मस्थली 'कण्वाश्रम' के निकट ही स्थित 'सतीमठ' का जिक्र भी महाकवि के ग्रंथ 'कुमार संभवम्' में मिलता है- 'अथावमानेन पितु: प्रयुक्ता दक्षस्य कन्या भवपूर्व पत्नी, सती सती योगविसृष्टादेहा तां जन्मने शैलवधूं प्रपेदे' में स्पष्ट है कि शिव की पहली पत्नी व प्रजापति दक्ष की पुत्री परम साध्वी सती ने पिता से अपमानित होने के बाद सतीमठ में ही योग से अपनी देह त्याग दी थी। पार्वती के रूप में उन्होंने दूसरा जन्म लिया। मान्यता है कि शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने यहीं पर शिव की घोर उपासना की थी।
महर्षि श्वेतकेतु ने 'वृहद अरण्यक उपनिषद' की रचना भी इसी सतीमठ में की थी। यही नहीं, विवाह परंपरा का शुभारंभ भी सतीमठ से ही माना जाता है। यहां पर ऋषि याज्ञवल्क्य के निर्देश पर महर्षि श्वेतकेतु ने पूर्ण विधि-विधान के साथ वरवर्णिनी से विवाह रचाया था। पं.राज जगन्नाथ की पुस्तक 'रस गंगाधर' में इसका उल्लेख है। मुगलशासक औरंगजेब के भाई दाराशिकोह ने भी यहां उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया था। बाद में दाराशिकोह को तलाशते हुए यहां पहुंचे औरंगजेब ने मठ को तहस-नहस कर दिया।
वैदिक शोध संस्थान के संस्थापक डा.लक्ष्मीचंद शास्त्री ने बताया कि सतीमठ के आसपास आज भी बौद्धकालीन शिलापट व मां शक्ति की मूर्तियां मिलती हैं। उन्होंने बताया कि मठ परिसर में खड़े विशाल वट वृक्ष के बारे में मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे सती, पार्वती सहित कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी।
पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण यह सतीमठ आज कैंसर पीडि़तों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। महायोगी स्वामी ऋषि जी महाराज ने सतीमठ को पुन: बसाया। इसमें उनका साथ महान योगिनी यूपा माई ने दिया। यूपा माई ने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा में अर्पित कर दिया। उनके भक्तों का मानना है कि वे जड़ी-बूटियों से कैंसर जैसे असाध्य रोग का उपचार करती थीं। माई के इस हुनर ने आश्रम को देश-विदेश में ख्याति दिलाई। यही कारण है कि सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग व असम के एक पूर्व राज्यपाल समेत कई दिग्गज राजनेता कैंसर से पीडि़त अपने परिजनों को लेकर यहां पहुंचे थे। कैंसर पीडि़त कई लोगों को सतीमठ की राह दिखाने वाले सूरत (गुजरात) के व्यवसायी भोला भाई का कहना है कि माई के हाथों में जादू था। उनका कहना है कि जिस कैंसर पीडि़त ने आश्रम में कदम रखा, वह भलाचंगा होकर ही वापस लौटा। पांच जून 2007 को माई ने देह त्याग दी, लेकिन उनकी शिष्या कमला माई अब भी कैंसर पीडि़तों का उपचार कर इस मठ की महत्ता को जीवित रखे हुए हैं।
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वन अधिनियम बने रोड़ा
कोटद्वार: लैंसडौन वन प्रभाग की कोटद्वार रेंज के अंतर्गत आरक्षित वनक्षेत्र में स्थित इस मठ के विकास में वन अधिनियम सबसे बड़ा रोड़ा बने हैं। आलम यह है कि जिस मठ को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया जाना था, वन अधिनियमों के चलते उस मठ में विद्युत सुविधा तक नहीं है। वन विभाग ने कुछ वर्ष पूर्व मालिनी नदी के तट पर बसे इस मठ में विद्युत कनेक्शन काट दिया। मठ की संचालिका कमला माई ने बताया कि सात मार्च 2003 को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सतीमठ की लीज 30 वर्षों के लिए बढ़ाई, लेकिन विभाग यहां निर्माण नहीं कराने देता। उधर, प्रभागीय वनाधिकारी निशांत वर्मा ने बताया कि लीज की स्थिति स्पष्ट होने के बाद ही अग्रिम कार्यवाही की जा सकती है।
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