Sunday, 30 August 2009
इतिहास की दास्तान कहती 'वेपन गैलरी'
-गुरुकुल विवि के संग्रहालय में मौजूद हैं मुगल व ब्रिटिशकाल के हथियार
-तेज धार खंजरों से लेकर दूसरे विश्वयुद्ध तक की मशीनगन संग्रह में शामिल
गुरुकुल विवि के पुरातत्व संग्रहालय में मौजूद हथियार मुगल एवं ब्रिटिशकाल के दौरान हुए रक्तपात के मूक गवाह हैं। तेज धार वाले खंजरों से लेकर बारूद उगलने वाली तोपों से सजी संग्रहालय की यह गैलरी इतिहास में झाांकने का सबसे जीवंत झारोखा बन पड़ी है। यह वेपन गैलरी हिंसक इंसानी संघर्ष के साथ ही हथियारों के विकास की दास्तान भी बयां करती है।
संग्रहालय की वेपन गैलरी में सजे हथियारों में सबसे पहले प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इस्तेमाल की गई तोप अपनी ओर ध्यान खींचती है। इससे संबंधित जानकारी के मुताबिक 1940 में इस तोप ने मद्रास के तट की ओर जर्मन युद्धपोत एमडन से ब्रिटिश सेना पर आग बरसाई थी। इस तोप का पुराना संस्करण भी संग्रहालय में मौजूद है, जिसे1914 में जर्मन सेना ने प्रथम विश्वयुद्ध में इस्तेमाल किया था। वेपन गैलरी में सर्वाधिक संख्या बंदूकों की है, जिनका भारत में अंग्रेजों व पुर्तगालियों के साथ ही आगमन शुरू हो गया था। इनमें 18 वीं सदी में अस्तित्व में आई और पूरी तरह से लकड़ी की बनी बंदूकें भी हैं। काफी लंबे आकार की इस बंदूक के अंदर बारूद भरकर फायर किया जाता था। 19 वीं सदी तक इन बंदूकों में लोहे की नाल का प्रयोग किया जाने लगा जो पहले से कहीं अधिक सुरक्षित व मारक थी। बंदूक की ही प्रेरणा से 19 वीं सदी के अंत तक स्टेनगन और एयर राइफल का जन्म हुआ। इसके बाद 1940 यानी द्वितीय विश्वयुद्ध तक मशीनगन व लाइट मशीनगन भी आकार ले चुकी थी। संग्रहालय सहायक डा. दीपक घोष के मुताबिक 18 वीं और 19 वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में इन हथियारों का सबसे बड़ा योगदान रहा। इससे उन्होंने अपने हर प्रतिकार का दमन किया। भारत में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली विभिन्न रियासतों के विरोध को आग उगलने वाले इन्हीं हथियारों ने शांत किया था। मुगल काल की लड़ाईयों में इस्तेमाल किए जाने वाले खंजर, बघनखा, गुप्ती, बरछी व तलवारें भी वेपन गैलरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। वहीं 1815 में उत्तराखंड में गोरखाओं व ब्रिटिश सेनाओं के संघर्ष में लड़ाकों के हाथों से छिटकी खुंखरियां भी संग्रहालय तक पहुंची हैं। संग्रहालय के निदेशक डा.प्रभात कुमार बताते हैं कि वेपन गैलरी को सरकारी एजेंसियों द्वारा ही रक्षा मंत्रालय की मदद से हथियार उपलब्ध कराए गये। इन 125 हथियारों में मुगल व ब्रिटिश काल के सर्वाधिक हथियार हैं। उन्होंने बताया कि इन हथियारों में उच्च गुणवत्ता का लोहा प्रयोग किया गया है।
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