Monday, 17 August 2009
दूसरे विश्व युद्ध के जाबांज फौजी को नहीं मिला सम्मान
अपना वायदा भी नहीं निभा सकी सरकार
-वीर चक्र विजेता चन्द्री चंद को नहीं मिल सकी 20 बीघा जमीन
चित्र परिचय: 14 टीकेपी 23-वीर चक्र विजेता स्व. चन्द्री चंद
, टनकपुर: आजाद भारत की उम्र शनिवार को 63 साल हो जाएगी। इसकी आजादी में योगदान करने वालों का नाम बेशक इतिहास के सुनहरे पन्नों पर दर्ज है। मगर इन सबके बीच कुछ ऐसे भी हंै, जिन्हे जंग-ए-आजादी में शिरकत करने के बावजूद भी तवज्जो नहीं दी गई। आजादी दिलाने वाले सेनानियों व उनके परिजनों के उत्थान के लिए सरकार के दावे तो बढ़ चढ़कर होते रहे हैं, लेकिन यहां कुछ जगह जमीनी हकीकत एकदम अलग है। यहां हम एक ऐसे ही सच को उजागर कर रहे हैं।
वीर चक्र विजेता फौजी चन्द्री चन्द। दूसरे विश्व युद्ध में शिरकत करने से लेकर उन्होंने आजादी के बाद पाक द्वारा 1948 में किए गए पहले कबीलाई हमले तक में असाधारण शौर्य दिखाया। उनकी दिलेरी को भारत सरकार ने वीरचक्र से सम्मानित कर मान्यता भी दी। मगर काफी कुछ ऐसा भी है, जो उन्हें देने का वायदा किया गया पर दिया नहीं गया।
सरकार ने दिवंगत चन्द को 1978 में चकरपुर में 20 बीघा जमीन दान देने का ऐलान किया था। इसके एवज में उन्हें बाकायदा जमीन का पट्टा भी दिया गया, पर इस जमीन पर दबंगों द्वारा किए गए कब्जे को सरकार नहीं हटा सकी। वर्ष 2007 में दिवंगत होने से पूर्व तक श्री चन्द ने ईनाम में मिली जमीन को हासिल करने के लिए पटवारी से लेकर राष्ट्रपति तक फरियाद की। हर बार आश्वासन भी मिला, लेकिन जमीन पर हक उन्हें कभी नहीं मिल सका।
मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के उखड़ी सेरी गांव में 13 अक्टूबर 1920 को जन्मे वीर चक्र विजेता चन्द्री चंद का परिवार नगर से सटे गांव आमबाग में जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहा है। मात्र 18 वर्ष की उम्र में चन्द्री चंद 13 अक्टूबर 1938 को पहली कुमांऊ राइफल्स (इन्फैन्ट्री यूनिट) में भर्ती हुए। महज तीन वर्ष बाद ही उन्हें दूसरे विश्व युद्ध में भाग लेने का मौका मिला। 25 जुलाई 1941 को ईरान स्थित विश्व के सबसे बड़े तेल भंडार अबादान शहर पर कब्जा करने में उनकी अहम भूमिका रही। 14 मार्च 1948 को सूबेदार चंद के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेड़ते हुए झाांगर भूमि पर तिरंगा फहराया।
दुश्मनों की ओर से हुई जवाबी बमबारी में एक बम श्री चंद के बंकर के पास गिरा। जिससे वे मलबे में दब गये। मगर इस पर भी उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा और आखिर तक डटे रहे। जान की बाजी लगाकर दुश्मनों से लोहा लेने के लिए उन्हें पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने वीर चक्र उपाधि से नवाजा।
भारत सरकार ने उनकी बहादुरी के लिए सत्तर के दशक में उन्हें ऊधम सिंह नगर जिले के तहसील खटीमा के गांव बिलहरी चकरपुर में 20 बीघा जमीन इनाम में देने की घोषणा की, लेकिन ये घोषणा आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
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