Saturday, 22 August 2009
-राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' को नए रंग में पिरोया कोटद्वार के सुधीर ने
-शास्त्रीय व पाश्चात्य 22 परंपरागत वाद्य यंत्रों का फ्यूजन किया तैयार
कोटद्वार
यह जरूरी नहीं कि हुनर विरासत में मिले, लेकिन सीखने की ललक, जिज्ञासा व कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो हुनर खुद ब खुद आ जाता है। साधक की साधना तब ही सफल होती है, जब उसमें लगन, धैर्य व कड़े परिश्रम जैसे गुणों का समावेश हो। इन दिनों 22 वाद्य यंत्र लयबद्ध तरीके से एक साथ बजा कर ऐसे ही हुनर का प्रदर्शन कर रहे हैं युवा लोक कलाकार सुधीर बहुगुणा।
संस्कार कला केंद्र के माध्यम से लोक कला व वाद्य यंत्रों की बारीकियां सिखाने वाले सुधीर ने तबला को छोड़ किसी वाद्य यंत्र को बजाने का प्रशिक्षण नहीं लिया। वाद्य यंत्रों के प्रति जिज्ञासा ने उन्हें लोक कला के क्षेत्र में उतरने को प्रेरित किया। तबला वादन का प्रशिक्षण लिया, लेकिन अन्य वाद्य यंत्रों पर उनके हाथ खुद ब खुद हरकत करने लगे। विलुप्ति की कगार पर खड़े कई वाद्य यंत्रों का उन्होंने संकलन किया और लगन व कड़ी मेहनत से उनमें उन्हें बजाने का हुनर भी आ गया।
वह इस क्षेत्र में नए-नए प्रयोग भी करते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने भारतीय शास्त्रीय व पाश्चात्य 22 परंपरागत (एकोस्ट्रिक) वाद्य यंत्रों का एक फ्यूजन तैयार किया है। इसमें सिर्फ आर्गन ही ऐसा वाद्य यंत्र है, जो इलेक्ट्रॉनिक है। चार मिनट बत्तीस सेकेंड के अभिनव प्रयोग में सुधीर ने राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्...' का संगीत लयबद्ध किया है। इसके अंत में उन्होंने बहुत ही खूबसूरती के साथ राष्ट्रगान के चंद शब्दों '...जय जय जय जय हे' को भी शामिल कर लिया। विलंबित कहरवा ताल (आठ मात्रा) की इस प्रस्तुति में खास बात यह कि वह अकेले ही 22 वाद्ययंत्रों को बिना रुके एक के बाद एक लयबद्ध तरीके से बजाते हैं। इन वाद्य यंत्रों में आर्गन, ड्रम सेट, तबला, डुग्गियां, कांगो, कटोरियां, नाद, घंटे समेत कई साइड इंस्ट्रूमेंट शामिल हैं।
अभी उन्होंने इस अभिनव प्रयोग का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया है। उनका कहना है कि गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार के सभी विद्यालयों व सार्वजनिक स्थानों के बाद वह अपनी कला का प्रदर्शन सचिवालय व विधानसभा परिसर में भी करेंगे।
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