Saturday, 22 August 2009
-यही हाल रहा तो बिखर जाएंगे मंदिर
-उत्तरकाशी में स्थित हैं सदियों पुराने कई मंदिर
-सरकारी संरक्षण व देखरेख के अभाव में टूट रहे हैं पुराने मंदिर
उत्तरकाशी: गंगा के पवित्र तट पर बसी शिवनगरी उत्तरकाशी में कभी चारों पहर भगवान के भजनों के साथ शंखनाद और मंदिरों की घंटियों की टंकार गूंजा करती थी। वक्त के साथ मंदिर ध्वस्त होते गए और आज यहां कुछ ही मंदिर शेष रह गए हैं। इनमें से अधिकांश मंदिर सदियों पुराने हैं, लेकिन सरकारी संरक्षण व देखरेख के अभाव में ये भी बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। आलम यह है कि कई मंदिर तो मरम्मत न होने के कारण ध्वस्त होने की कगार तक जा पहुंचे हैं। ऐसे में धर्मप्रेमियों को यह चिंता सताने लगी है कि अगर यही हाल रहा, तो आने वाले दिनों में ये पौराणिक मंदिर भी कहीं इतिहास बनकर न रह जाएं।
तपस्वी और साधुओं की पवित्र उत्तरकाशी नगरी को पुराणों में सौम्यकाशी का नाम दिया गया है। केदारखंड के अनुसार यह शिव की प्रिय नगरी है। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा मां दुर्गा व उसके अन्य रूपों के कई मंदिर स्थापित है। बाबा विश्वनाथ मंदिर में गणेश की 12वीं-13वीं सदी की प्रतिमाएं व शक्ति माता के विशाल त्रिशूल का शीर्ष नजर आते हैं। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ विध्वंस के बाद क्रोधित भैरव को शिव ने सौम्यकाशी में स्थापित होने का आदेश दिया और यहां भैरव आनंद रूप में निवास करते हैं। भैरव चौक पर परशुराम की दुलर्भ मूर्ति के दर्शन ही परम सौभाग्य देने वाले हैं। कंडार भैरव, दक्षिणेश्वर काली, नर्मदेश्वर, केदारनाथ, गोपेश्वर समेत अन्य शिवलिंगों के दर्शन भी मात्र उत्तरकाशी में ही हो सकते हैं।
पौराणिक उल्लेख के मुताबिक यहां कभी आठ सौ से अधिक मंदिर अस्तित्व में थे, लेकिन बाढ़, भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाओं में कई मंदिरों का अस्तित्व ही मिट गया। रैथल सूर्य मंदिर समूह की दुर्लभ मूतियां अब गायब हो चुकी हैं, जबकि गत चार वर्ष पहले एक टूटे हुए मंदिर ये प्रतिमाएं बिखरी हुई थी। इसी तरह भैरव चौक पर दत्तात्रेय मंदिर में कभी विशाल विष्णु मूर्ति और आंगन में चार कुत्तों और एक गाय की प्रतिमा कुछ वर्ष पहले चोरी कर ली गई। अब मंदिर जीर्णशीर्ण स्थिति में है। पुलिस ने चोरों की तलाश में नाकाम रहने के बाद अब फाइल ही बंद कर दी है। जड़भरत घाट पर कभी जड़भरत का विशाल मंदिर बहने के साथ ही इस मंदिर की मूर्तियां भी गायब हैं। इसी तरह जोशियाड़ा गंगा तट पर मां काली और भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं किन्तु यहां मंदिर के ऊपर छत ही न होने से मूर्तियां धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं।
इस बाबत, गंगोत्री के विधायक गोपाल रावत कहते हैं कि जीर्णशीर्ण मंदिरों के सरंक्षण को लेकर पर्यटन विभाग से मिलकर योजना तैयार की जाएगी और इससे पहले शहर के तमाम मंदिरों के पुजारियों के साथ वार्ता की जाएगी। उन्होंने कहा कि मंदिरों की सुरक्षा आम आदमी की भी जिम्मेदारी है और इसे लेकर नागरिकों को सामूहिक प्रयास करने चाहिए।
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संरक्षण के किए जा रहे प्रयास
उत्तरकाशी: मंदिर जीर्णोद्धार समिति ने कंडार देवता के मंदिर में सहयोग देकर एक उपलब्धि दर्ज की है और अब समिति अन्य मंदिरों के जीर्णोद्वार को लेकर भी प्रयासरत हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति लचर होने के कारण समिति के हाथ भी बंधे हैं। समिति के अध्यक्ष अजय प्रकाश बडोला कहना है कि मंदिरों के जीर्णोद्वार के लिए हर नागरिक से एक रुपए की मांग की जाती है और धनराशि जमा होते ही समिति शहर के एक मंदिर का जीर्णोद्वार ही कर सकती है। वहीं, साधु सूर्यदेव, सर्वेश्वरा नंद महाराज, स्वामी प्रमोद चैतन्य महाराज, आनंद प्रकाश आदि का कहना है कि प्रशासन को इसके लिए कदम उठाने चाहिए।
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kahtey hai mandir sanskriti ki dhrohar hotey hai apni virasat ko surakshjhit rakhnay hamaraya karthavey hai puranay prachin mandiro ka sanrakjhan bhut aavshayak hai, es desha mai sahi soch aur neeti ki avshakta hai.
ReplyDeleteSunita Sharma
Freelancer Journalist
Rishikesh