Friday, 7 August 2009
श्रद्धा की मिसाल है देवीधुरा का पत्थर युद्ध बग्वाल
लोहाघाट। देवीधुरा में रक्षाबंधन के दिन प्रति वर्ष होने वाला पत्थर युद्ध बग्वाल कई धार्मिक मान्यताओं व पौराणिक गाथाओं को संजोये हुए है।
मान्यता के अनुसार चम्याल खाम, लमगडिय़ा खाम, गहड़वाल खाम व वालिग खाम के लोगों में से प्रति वर्ष एक व्यक्ति की बलि दी जाती थी। इस प्रकार जब चम्याल खाम की वृद्धा के एक मात्र पौत्र की बारी आई तो वंश नाश के डर से उसने शक्ति पिंड के पास जाकर मां बाराही को मनाने के लिए तपस्या की। मां बाराही ने तपस्या से प्रसन्न होकर वृद्धा से नर बलि का विकल्प ढूंढऩे को कहा। वृद्धा चारों खामों के मुखियाओं के पास गयी। उसने खामों के मुखियों के सामने देवी मां की कही बातों को दोहराया। चारों खामों के लोगों ने आपस में मिलकर एक उपाय खोजा जिसमें तय किया गया कि चारों खामों के लोग आपस में दो दलों में विभक्त होकर एक दूसरे पर पत्थरों की मार कर एक व्यक्ति के बराबर रक्त बहाकर मां को प्रसन्न करेंगे। तब से यहां बग्वाल का सिलसिला चला आ रहा है। पत्थर युद्ध तब तक जारी रहता है जब तक कि एक व्यक्ति के बराबर रक्त न बह जाय। परम्परा के तहत बग्वाल शुरू करने व समाप्त करने का आदेश मंदिर के पुजारी द्वारा दिया जाता है।
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