Tuesday, 4 August 2009
जनमत पर अर्जिता बंसल को तवज्जो
, देहरादून दीक्षित आयोग ने गैरसैंण में राजधानी के पक्ष में खड़े उत्तराखंड के जनमत के मुकाबले अर्जिता बंसल को ला खड़ा किया है। दूसरे चरण की रिपोर्ट में आयोग ने तुलनात्मक आमना-सामना कर अर्जिता के जनमत सर्वे की सुपरमेसी तो स्थापित की, लेकिन सर्वे का आधार बताने से गुरेज किया। आयोग के अध्यक्ष वीरेंद्र दीक्षित ने चौथे चरण की रिपोर्ट में पूरे राज्य से आए जनमत का विस्तृत विवरण दिया है। रिपोर्ट में उन्होंने माना है कि कौशिक समिति ने सिर्फ जनमत के आधार पर गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया। सदन में जब राजधानी आयोग ने तीसरे चरण की रिपोर्ट रखी तो, उसमें बार-बार बगैर संदर्भ के अर्जिता बंसल की ओर से किए गए जनमत सर्वे का उल्लेख हुआ। इससे यह अंदेशा जताया जा रहा है कि स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के अध्ययनकर्ताओं को जनमत में गैरसैंण का एकाधिकार नहीं सुहाया। इसलिए अर्जिता बंसल को उसके मुकाबले तवज्जो दी गई। दूसरे चरण की रिपोर्ट के पृष्ठ 20 व 21 में राज्य में हुए जनमत सर्वे से अर्जिता के सर्वे का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। उत्तराखंड के जनमत सर्वे को एक वृत्ताकार चार्ट में दिया गया, जिसमें गैरसैंण के पक्ष में 45 प्रतिशत लोगों का मत बताया गया है। अगले पृष्ठ में अर्जिता बंसल के जनमत सर्वे का चार्ट प्रदर्शित किया गया है। इसके मुताबिक देहरादून के पक्ष में 46 प्रतिशत और गैरसैंण के पक्ष में सिर्फ 10 प्रतिशत लोग हैं। अर्जिता बंसल की अप्रकाशित थिसिस से इसे लिए जाने की बात रिपोर्ट में कही गई है। अर्जिता ने यह जनमत सर्वे कैसे किया, लोगों के विचार आमंत्रित किए अथवा घर-घर जाकर बातचीत की गई, इसे छिपाने की कोशिश की गई है। संदेहास्पद यह भी है कि दूसरे चरण के तुलनात्मक विवरण में उत्तराखंड के जनमत में 251 लोगों के भाग लेने की बात कही गई है, जबकि चौथे चरण की रिपोर्ट में आयोग के अध्यक्ष ने 268 लोगों के भाग लेने की बात कही है। उत्तराखंड के जनमत वाले चार्ट में पांच लोग कुमाऊं-गढ़वाल के मध्य स्थल पर राजधानी की पैरवी करते हैं, दो लोग चौखुटिया, एक नागचूलाखाल और तीन लोग गैरसैंण या किसी अन्य स्थान की पैरवी करते हैं। ऐसे ग्यारह लोगों को गैरसैंण के साथ नहीं जोड़ा गया है। जबकि अर्जिता के जनमत के अनुसार 40 प्रतिशत लोग देहरादून और छह प्रतिशत लोग ऋषिकेश के पक्ष में हैं, लेकिन इसे जोड़कर देहरादून के पक्ष में 46 प्रतिशत जनमत बताया गया है। आंकड़ों के इस हेरफेर से रिपोर्ट तैयार करने वालों की मंशा पर शक उठना लाजिमी है।
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