Tuesday, 11 August 2009

=वित्त आयोग से मांगा 'बाजार मूल्य'

उत्तराखंड से पूरे देश को मिल रही इको सिस्टम सर्विसेज -क्या हैं तर्क- राज्य के कुल क्षेत्रफल के 64.79 फीसदी में हैैं जंगल देशहित में व्यवसायिक हितों को किया दरकिनार चीड़ के पौधरोपण पर लगाया गया है प्रतिबंध , देहरादून: पूरे देश को इको सिस्टम सर्विसेज देने वाला उत्तराखंड अब इन सेवाओं की वास्तविक कीमत वसूलने की तैयारी कर में है। बारहवें वित्त आयोग ने इस सेवा के ऐवज में कीमत देने की शुरुआत की है पर यह बाजार मूल्य से कहीं कम है। अब उत्तराखंड की ओर से तेरहवें वित्त आयोग से बाजार मूल्य के आधार पर कीमत वसूलने की तैयारी है। सूबे के वन तथा नियोजन विभाग इसकी तैयारी में जुटे हैं। बारहवें वित्त आयोग ने 2005-2010 तक के लिए इको सिस्टम सर्विसेज देने वालों राज्यों को एक हजार करोड़ देने की व्यवस्था की थी। उत्तराखंड के हिस्से 35 करोड़ आए थे। अब इस मामले में अगला कदम मजबूती से उठाने की तैयारी है। राज्य के वनाच्छादित क्षेत्र को इको सिस्टम सर्विसेज से जोड़कर उसकी कुल वैल्यू निकाली जा रही है। इसी के आधार पर 13वें वित्त आयोग से धन की मांग की जाएगी। उत्तराखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल 53483 वर्ग किमी है। इसमें से 34650 वर्ग किमी. में जंगल है। यह इलाका कुल क्षेत्रफल का 64.79 प्रतिशत है। राज्य की आठ प्रतिशत भूमि ग्लेशियरों और बर्फ से ढकी हुई है। प्रस्ताव में इन तथ्यों के साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि उत्तराखंड ने अपने प्रयासों से इको सिस्टम सर्विसेज को और संपन्न बनाने में क्या प्रयास किए हैं। कार्बेट और राजाजी नेशनल पार्क पहाड़ों की तलहटी में अत्यधिक उत्पादक तराई-भाबर क्षेत्र में स्थित हैं। इन दोनों पार्कों में सात हजार वर्ग किमी ऐसे क्षेत्र में वनों को बनाए रखा गया है, यदि इस भूमि का उपयोग कृषि या अन्य व्यावसायिक कार्यों के लिए किया गया होता तो राज्य को इसका अत्यधिक आर्थिक लाभ मिलता। राज्य के दूसरे क्षेत्रों में भी हजारों वर्ग किमी क्षेत्र मानव उपयोग से अलग रख सिर्फ वनों का संरक्षण किया गया है। उत्तराखंड ने बायो डायवर्सिटी के मामले में संपन्न बांज के जंगलों में चीड़ के रोपण पर प्रतिबंध है, जबकि चीड़ व्यावसायिक रूप से लाभ देने वाली प्रजाति है। अंग्रेजों के समय में कई बांज के जंगलों में चीड़ का रोपण किया गया था। बंाज के जंगल चीड़ के मुकाबले इको सिस्टम सर्विसेज के लिए अधिक अनुकूल होते हैं। इससे भी राज्य को व्यावसायिक हानि उठानी पड़ रही है। राज्य में बांज के पेड़ों से चारकोल बनाने पर भी प्रतिबंध है, जबकि पहाड़ों में ईंधन की अत्यधिक समस्या है। प्रस्ताव में तर्क दिया जा रहा है कि सूबे ने अपने व्यावसायिक लाभों को दरकिनार कर बायोडायवर्सिटी संपन्न करने में अहम भूमिका निभाई है। लाभ राज्य को बाजार दरों पर इसका लाभ दिया जाए। यह बात तेरहवें वित्त आयोग के समक्ष उठाई जा रही है। साथ ही यह तर्क भी दिया जा रहा है कि पहाड़ों का विकास में पिछड़ जाना राज्य के इन्हीं प्रयासों का प्रतिफल है। ऐसे में पहाड़ों के विकास की जिम्मेदारी भी देश की है। अब देखना होगा कि सूबे की यह कवायद कितना रंग दिखाती है।

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