Saturday 29 August 2009

-अनूठी है शादी की 'साटा-पल्टा' परंपरा

- वन गुर्जरों में अनिवार्य है दुल्हन के बदले दुल्हन का आदान-प्रदान - पल्टा न होने पर लड़के को शादी से पहले बनना पड़ता है घर जमाई - महिला के बदले पुरुष संगीत का होता है आयोजन, वाद्य यंत्र वर्जित - मेहमान न्योते के रूप में साथ लाते हैं दूध और मक्खन विकासनगर। सूचना प्रौद्योगिकी के युग में एक ओर जहां नेट पर आसानी से आनलाइन मैरिज हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर एक ऐसी बिरादरी भी है, जिसके रस्मोरिवाज खासतौर पर लड़के की शादी को जटिल बना देते हैं। उनमें दुल्हन लेने के बदले दुल्हन देने की प्रथा आज भी जीवित है। यदि देने के लिए दुल्हन न हो, तो दामाद को विवाह से पूर्व ही घर जमाई बना दिया जाता है, जिसे पांच से दस वर्ष तक लड़की के घर रहकर उनकी मवेशियों को चुगाने के साथ-साथ उनके लिए चारा-पत्ती का इंतजाम भी करना होता है। एक और रोचक तथ्य यह कि इस बिरादरी में विवाह समारोह के दौरान किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग वर्जित है और महिला गीत के बजाए पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है। बात वन गुर्जरों की हो रही है। इस बिरादरी में शादी के रस्मोरिवाज काफी रोचक हैं। वन गुर्जरों में छोटी सी उम्र (5 से 10 वर्ष) में ही लड़के की शादी तय हो जाती है, लेकिन उसमें पारम्परिक नियमों का पालन किया जाना जरूरी है। लड़के की शादी में दुल्हन के बदले दुल्हन का आदान-प्रदान किया जाता है। अर्थात, वर पक्ष दुल्हन लेने के बदले कन्या पक्ष को भी दुल्हन देते हैं, जिसे 'साटा-पल्टा' कहा जाता है। यदि किसी के पास देने के दुल्हन न हो तो फिर दामाद को लड़की के घर शादी से पहले ही घर जमाई बनाकर रखा जाता है। दोनों पक्षों के बीच तय हुए निर्धारित समय (5 से 15 वर्ष) तक लड़के को लड़की के घर रहकर उनके मवेशियों की देखरेख और उनके लिए चारा पत्ती के इंतजाम की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जिम्मेदारियों पर खरा उतरने पर ही बाद में उसे दुल्हन सौंपी जाती है। वन गुर्जर बिरादरी के शादी समारोह के रीतिरिवाज भी अनोखे हैं। शादी की तिथि निर्धारित होते ही बिरादरी का मुखिया पंचायत बुलाता है और सभी को शादी का न्योता देता है। गुर्जर अपनी भाषा में न्योता दिए जाने को 'गंढ' कहते हैं। शादी के दिन बारातियों को दूध और मक्खन साथ में लाना अनिवार्य है। न्योते के रूप में रुपये को अहमियत नहीं दी जाती है। समारोह में चावल, घी और बूरा की दावत चलती है। एक और खास बात यह है कि यहां शादी से एक दिन पहले दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में मेहंदी की रस्म मनाई जाती है। रस्म में महिला नहीं बल्कि पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है। पुरुष पूरी रात कान में अंगुली डालकर सूफियाना अंदाज में गाते हैं, जिसे 'बैंत' कहा जाता है। पूरे समारोह में किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है। --- 'हमारी वन गुर्जर बिरादरी में शादी के रस्मोरिवाज कठिन जरूर हैं, लेकिन उनके पालन से आपसी भाईचारा बढ़ता है और लड़का अथवा लड़की की शादी बोझा महसूस नहीं होती। मुझो गर्व है कि हमारी बिरादरी के लोग आज भी अपनी परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं'। - फिरोजद्दीन मुखिया/प्रधान पछवादून वन गुर्जर बिरादरी।

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