Saturday, 11 April 2009

स्थायी राजधानी: कोई नहीं चाहता खुले पिटारा

देहरादून। सूबे की स्थायी राजधानी के मुद्दे पर महज वोटों की सियासत करने वाले राजनीतिक दलों की जान इस समय सांसत में है। जुबां से भले ही एक दूसरे की घेराबंदी की जा रही है पर दिल से कोई नहीं चाहता कि दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का पिटारा इस चुनावी मौसम में खुले। इसके खुलते ही हर किसी को अपने पत्ते ओपन करने होंगे और शायद ही कोई ऐसा दल बचे, जिसके हिस्से में वोटों की फसल आए। स्थायी राजधानी के मुद्दे पर सभी दल सियासत कर रहे हैं पर कोई नहीं चाहता कि इसका हल निकले। इसकी एकमात्र वजह वोटों का खेल है। पहले बात सत्तारूढ़ भाजपा की। अगर रिपोर्ट बाहर आती है तो भाजपा को अपना नजरिया एकदम से स्पष्ट करना होगा।जनता को बताना होगा कि स्थायी राजधानी मसले पर क्या फैसला है। भाजपा को सूबे की सभी पांच सीटों पर चुनाव लड़ना है। पहाड़ पर राजधानी की वकालत करने पर उसे मैदानी इलाकों में वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर मैदान की बात की तो पहाड़ी क्षेत्र के वोटरों की नाराजगी का खतरा है। यहीं कारण है कि सत्तारूढ़ भाजपा दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का पिटारा इस समय खोलना ही नहीं चाहती है और ऐवज में जुर्माना व मुआवजा तक देने को तैयार है। कमोवेश यही स्थिति कांग्रेस की भी है। कांग्रेस ने पांच साल तक आयोग का कार्यकाल लगातार बढ़ा कर इस मुद्दे से अपना दामन बचाए रखा। इस समय भाजपा पर हमलावर हो रही कांग्रेस भी दीक्षित आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होते ही बचाव की मुद्रा में दिखाई देगी। यहां भी पहाड़ बनाम मैदान का संकट वोटों का खेल बिगाड़ने वाला साबित होगा। अंदरखाने कांग्रेस भी नहीं चाहती कि पिटारे में यह बारूद किसी को दिखाई दे। क्षेत्रीय दल उक्रांद इस समय तो बात गैरसैंण में राजधानी की कर रहा है पर हरिद्वार और नैनीताल संसदीय सीट पर चुनाव लड़ रहे इस दल के प्रत्याशियों की हालत इस मुद्दे पर अभी से नासाज है। अभी तो यह कहा जा सकता है कि रिपोर्ट खुलने पर ही नजरिया स्पष्ट किया जाएगा। पिटारा खुल गया तो हालात संभालना मुश्किल होगा। समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी की भी ऐसी ही परेशानी में हैं। अगर देहरादून में ही राजधानी की बात करते हैं तो पहाड़ पर साइकिल और हाथी चढ़ाने का मंसूबा कहीं धरा ही न रह जाए।जाहिर है कि स्थायी राजधानी के मसले पर सभी दल महज वोटों की सियासत कर रहे हैं। राजधानी कहां बने इस पर किसी के पास वैज्ञानिक तथ्य नहीं हैं। राजधानी के अपने मानक हैं और बगैर वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरे किसी भी स्थान को स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त घोषित भी नहीं किया जा सकता है। ऐसे में बस वोटों के नफा-नुकसान का आंकलन करके कोरी बयानबाजी करना ही इन दलों का लक्ष्य रह गया है। अब ऐसे में भला कोई दल क्यों चाहेगा कि उसे यह साफ तौर पर बताना पड़े कि स्थायी राजधानी के लिए कौन सा स्थान उपयुक्त है।

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