Friday, 17 April 2009

हर नौवां फौजी अफसर उत्तराखंडी

बीरू भड़ों कू देश बावन गढ़ू कू देश उत्तराखंड में गौरव के साथ गाया जाने वाला यह गढ़वाली गीत प्राचीनकाल में यहां के पराक्रम, शौर्य और वीरता का बखान करता है, लेकिन अभी भी यहां के युवाओं में वीरता और साहस बरकरार है। इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां के युवाओं में देश सेवा के लिए सेना में जाने का जबरदस्त क्रेज है। चाहे अधिकारी हो अथवा जवान आईएमए से निकलने वाला हर नौंवा अधिकारी उत्तराखंडी है। आईएमए के चार वर्ष के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। सेना में भले ही युवा अधिकारियों की कमी महसूस की जा रही हो, लेकिन उत्तराखंड के युवाओं में सेना में शामिल होना एक जुनून रहा है। उत्तराखंड की माटी में पला-पढ़ा युवा वीरों के संस्कार लिए सेना में जाने के लिए लालायित रहा है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी यहां के युवाओं ने सेना को ही अपना धर्म व कर्म माना है। आजादी की जंग से लेकर कारगिल लड़ाई तक, उत्तराखंडी युवाओं ने वीरता दिखाकर इतिहास रचे हैं। राष्ट्र की रक्षा के लिए यहां के कई वीरों ने सर्वोच्च बलिदान देकर सूबे का नाम रोशन किया है। यह परंपरा आज भी बरकरार है। अब भारतीय सेना में यहां की युवतियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। हाल ही में आए आंकड़ों से पता चला कि भारतीय सेना का हर पांचवां जवान उत्तराखंड से है। इस बात ने प्रदेश का सीना गर्व से तन गया। आईएमए के बीते कुछ वर्षो के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि यहां के युवा सिर्फ लड़ने-भिड़ने की ही नहीं, बल्कि नेतृत्व करने की भी गजब की क्षमता रखते हैं। आईएमए में वर्ष, 2005 के बाद तकरीबन चार हजार पांच सौ कैडेट पास आउट हुए हैं। इनमें 489 उत्तराखंड से हैं। यानी हर नौंवा कैडेट उत्तराखंड से है। हालांकि पास आउट होने वाले सर्वाधिक कैडेट उत्तर प्रदेश के हैं, लेकिन जनसंख्या के हिसाब से उत्तराखंड का प्रतिशत नंबर वन पर है। ये आंकड़े तो सिर्फ बीते चार वर्षो के हैं। इससे पहले भी उत्तराखंड के युवाओं का प्रतिशत काफी अधिक रहा है।चार वर्षो की पीओपी की स्थिति वर्ष कुल कैडेट यूके के जून 2005 583 59 दिसंबर 2005 517 63 जून 2006 594 73 दिसंबर 2006 537 49 जून 2007 649 56 दिसंबर 2007 601 70 जून 2008 608 63 दिसंबर 2008 468 56

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