Monday, 27 April 2009
जूता संस्कृति ... " बहस "
जूते चप्पलो में
हो गई बहस
छिड गई लड़ाई
लगे करने दोनों
अपनी अपनी बडाई !
चप्पले बोली ........यदपि, देखने में हम
कोमल , नाजुक , कमजोर है
ध्यान रहे ...
हमारे किस्से जगत मशहूर है !
आम आदमी से लेकर
मंत्री संत्री , नेता हमें
अपने साथ रखने पर
मजबूर है !
नेता जी ... नेताजी तो, .. हमें
बड़े प्यार से दुलारते है पुचकारते है
और बड़े सामान के साथ
हमें पार्लियामेंट तक ले जाते है
येसा नहीं ........
हम भी आडे वक़्त उनके काम आते है !
टेलीबिजन , अखबारों में
आये दिन हमारी तस्बीरे छपती है
जब जब हम
पार्लियामेन्ट में एक दुसरे पर बरसती है !
वे जूते से बोली ..
है तुम्हरा, येसा कोई किस्सा ?
जो , संसद में लिया हो तुमने
कभी हिस्सा ??????
जूत्ता बोला ...
बस ... तुम में यही तो कमी है
बात को पेट में पचा नहीं पाती हो
युही खामखा ,,,
चपड चपड़ करती रहती हो !
सुनो
चाहिए हम रबड़ के हो
या हो, चाँद के
सारे मुरीद है हमारे
यंहा से वंहा तक के !
जब जब मै चलता हूँ
या चलूँगा .....
अच्हे आछो के मुँह
बंद हो जायेग
इसीलिए तो सब कहते है
यार, चांदी का मारो तो
सब काम हो जायेगे !
पटवारी से लेकर
ब्यापारी तक ,
सिपाही से लेकर
मंत्री तक
सब हमारे कर्ज़दार है
तभी तो, लोग कहते है
जूत्ता ... बड़ा दुमदार है
रही हिस्से किस्से की बात
तमाशा देखना और देखोगे
आज के बाद संसद में
तुम नहीं , हम ही हम चलेगे !
ये किस्सा
तो अपने देश में द्खोगे ही
संसार में भी नाम कमाउगा
देख लेना
दुनिया के अखबारों के
फ्रंट पेज पर अपनी तस्स्बीर छपाउगा !
देखा नहीं , इराक में क्या हुआ
बुश पर कौन चला ? .... मै
चिदम्बर, अडवानी और अब
मनमोहन पर भी कौन चला मै ?
पराशर गौर-कनाड़ा से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment