Thursday, 16 April 2009
...और जाख देवता नाचे जलते अंगारों पर
गुप्तकाशी।ढोल-दमाऊं की गर्जना, रणसिंघे की गगनभेदी हुंकार के साथ जाख देवता (पश्वा) ने जैसे ही दो दिन से दहकते अग्निकुंड में कूद मारी, तो पूरा क्षेत्र जाख देवता के जयकारों से गंूज उठा।केदारघाटी के प्रसिद्ध पौराणिक जाख मेले को देखने हजारों की सं2या में जाखधार में श्रद्धालुओं की भीड़ मौजूद थी। जाख मेले को यंू तो प्राचीन भोजपत्रों और ताम्रपत्रों पर अंकित लिपि के अनुसार संवत ११११ से मनाए जाने की बात स्थानीय जनता मानती है। मंगलवार यानी बैसाख संक्राति के दिन मंदिर परिसर में विशाल अग्नि कुंड की रचना की गई। इसमें पूजा के पश्चात अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। इस मौके पर चार प्रहर की पूजा भी की गई। बुधवार को जाख देवता के पश्वा (जिस व्य1ित पर देवता का आवेश आता है) मदन सिंह ने नारायणकोटी से गाजे-बाजे के साथ कोठेड़ा-देवशाल होते हुए अपराक्ष दो बजे जाखधार में प्रवेश किया। ठीक ढाई बजे विधि विधानपूर्वक जाख देवता ने अग्निकुंड के धधकते अंगारों में प्रवेश करते हुए नृत्य किया। इस आलौकिक क्षण को देखने मेले के मु2य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट, विशिष्ट अतिथि पूर्व 4लाक प्रमुख ममता नौटियाल, जिपंस केशव तिवाड़ी और सीडीओ एमएस कुटियाल आदि मौजूद थे। मेले के समापन के पश्चात यज्ञकुंड की भस्म प्रसाद के रुप में अपने साथ ले गए।
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