Tuesday, 14 April 2009

जनशक्ति की मिसाल है चौंदकोट मोटर मार्गबिना सरकारी सहायता के बनाई थी पैंतीस मील सड़क

सतपुली। आज जहां हम अपने घर का आंगन ढह जाने के बाद उसका पुस्ता बनवाने के लिए सरकारी इमदाद का मुंह ताकते हैं। वहीं पचास के दशक में बिना किसी सरकारी और तकनीकी सहायता के पौड़ी जिले के चौंदकोट और राठवासियों का पैंतीस मील (पचास किमी) सड़क श्रमदान से बनाना सहकारिता और जनशक्ति की अनूठी मिसाल है।इन विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक मोटर मार्गों की परिकल्पना के लिए १९३५ से १९४५ तक पौड़ी के जिला परिषद अध्यक्ष रहे ग्राम रिंगवाड़ी के हरेंद्र रावत, लैंसडौन मुंसिफ कोर्ट के प्रथम अधिवक्ता ग्राम रिंगवाड़ी के ही मनवर सिंह, ग्राम गुराड के सीताराम सेमवाल, ग्राम ईड़ा मल्ला के दर्शन सिंह एवं ग्राम डीब के पंचम आर्य के प्रयासों से १५ अप्रैल १९५० को एकेश्वर मेले के दिन क्षेत्र की रिंगवाडस्यूं, गुराडस्यूं, मौंदाडस्यूं और जैंतोलस्यूं पट्टियों के ग्रामीणों की बैैठक में कोटद्वार पौड़ी मोटर मार्ग के जमरिया मलेठी से जणदा देवी तक इन चारों पट्टियों के अधिकांश गावों को जोड़ती ४० मील सड़क श्रमदान से बनाने का निर्णय हुआ। सड़क निर्माण शुरू होने से पूर्व समरेखण विवाद के चलते समिति दोफाड़ हो गई। तब जैंतोलस्यूं एवं रिंगवाडस्यूं पट्टियों के ग्रामीणों ने अपने क्षेत्र हेतु ज्वाल्पाधाम के निकट कनमोठलिया पुल से जणदा देवी तक १३ मील (२०) किमी एवं मौंदाडस्यूं व गुराडस्यूं के ग्रामीणों ने पूर्व प्रस्तावित समरेखण में कुछ बदलाव कर २२ मील (३५) किमी सड़कों का निर्माण शुरू किया। इन मोटर मार्गों के निर्माण में राठवासियों ने भी दोनों सड़कों के निर्माण में हिस्सा लिया। निर्माण ढाई वर्ष की अवधि में पूरा हो गया। सड़कों का समरेखण इतना सटीक था कि वर्ष १९६० में निर्माण विभाग लैंसडौन को हस्तांतरित होने के बाद इसमें नाममात्र का सुधार किया गया। चेकोस्लोवाकिया के प्रतिनिधिमंडल ने भी किया भा इसका निरीक्षण

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