Tuesday, 21 April 2009

कई मैदानों पर एक ही 'खेल'

कई मैदानों पर एक ही 'खेल'चुनाव में उतरे खेल संघों से जुड़े कांग्रेस, भाजपा, बसपा व यूकेडी के नेता

, देहरादून राजनीतिक दलों के नेता केवल चुनाव ही नहीं, कई मैदानों पर खेल रहे हैैं। कोई तीरंदाजी को आगे बढ़ा रहा है तो कोई हाकी की बागडोर संभाले है। राफ्टिंग, निशानेबाजी, फुटबाल, वेट लिफ्टिंग व बाडी बिल्डिंग समेत अनेक एसोसिएशनों के फलक पर नेता चमक बिखेर रहे हैैं। क्रिकेट पर कब्जे को लेकर नेताओं में होड़ है। यह खेल ही ऐसा है, जिसमें नाम, काम व दाम का जलवा है। अब चुनाव का मौसम है तो ऐसे में खेल संघों की प्रतिबद्धता भी किसी न किसी पाले में झाुक गई है। राजनीति का खेल हो या खेल की राजनीति, दोनों में ही सियासी दलों से जुड़े नेता व कार्यकर्ता अपनी क्षमता का लोहा मनवा रहे हैैं। खूबसूरती देखिए कि खिलाड़ी राजनीतिक दलों में शामिल होकर जनता की सेवा को बेताब हैैं तो नेता मैदान कब्जाने को बेचैन हैं। अब मल्टीपल टेस्ट का दौर है और ऐसे में देश की सियासत और खेलों को लेकर जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे आठ वर्ष की आयु का यह छोटा प्रदेश तेजी से भाग रहा है। राज्य में विभिन्न खेलों की 34 एसोसिएशन पंजीकृत हैैं। अधिकतर में राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं की संख्या ठीकठाक है। सांसद, विधायक, मंत्री व पूर्व मंत्री इन संघों की शान बने हैैं। भाजपा, कांग्रेस, बसपा व उक्रांद के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं का संघों में खासा निर्णायक दखल है। अधिकतर एसोसिएशन ऐसी हैैं, जहां नेता व अफसर ऊंचे तथा खेल की बारीकी जानने वाले निचले पायदान पर हैैं। नेताओं की मुहिम को आगे बढ़ाने में उनका सहयोग बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस, सेना के सेवानिवृत्त अफसर व खेल की राजनीति के धुरंधर कर रहे हैैं। कुल मिलाकर खेल संघों का जो चित्र उभर रहा है, उसमें नेताओं व अफसरों की जुगलबंदी ही अधिक है। खिलाड़ी तो तभी याद आते हैैं, जब खेल से संबंधित तकनीकी पेच को हल करना हो। अब बात क्रिकेट की। क्रिकेट को लेकर वजूद में आए संघों के बीच उत्तराखंड पालिटिकल लीग (यूपीएल) जारी है। तीनों संघ इस बात को लेकर एक दूसरे पर बाउंसर फेंक रहे हैैं कि वे ही क्रिकेट की राजनीति समझाते हैैं। क्रिकेट, राजनीति व ग्लैमर का रिश्ता ही ऐसा बन गया है कि नेता किसी भी हालत में उस पर कब्जा करना चाहते हैैं। क्रिकेट के लिए राज्य में कुछ हुआ हो या नहीं पर राजनीति खूब हुई। भाजपा और कांग्रेस के नेता इस खेल में महारथी की भूमिका में है, जबकि खिलाड़ी उनके सारथी बने हैैं। आठ वर्ष में क्रिकेट को बीसीसीआई से नहीं जोड़ पाए। क्रिकेट भले ही हार रहा हो पर नेता जीत का जश्न मनाने में जुटे हैैं। अब खेल संघों की सेवा के बदले मेवा हासिल करने का मौका आ गया है। विभिन्न खेल संघों से जुड़े केसी सिंह बाबा(कांग्रेस), जसपाल राणा(भाजपा), नारायण पाल(बसपा) व शैलेश गुलेरी(उक्रांद) चुनाव मैदान में हैैं। जाहिर है कि खेल संघों से जुड़े लोगों उनके इर्द-गिर्द भी हैैं। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। इनमें से कई स्टार प्रचारक भी हैैं। राजनीतिक दलों का प्रभाव ही है कि खेल संघों का झाुकाव भी किसी ने किसी ओर बन गया है। ऐसे में खेल की राजनीति धीरे-धीरे परवान चढ़ती जा रही है।

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