Saturday, 25 April 2009

क्या लाशों का पानी पीते रहेंगे हम

हल्द्वानी: दावे, वादे और आरोप-प्रत्यारोप के इस चुनावी संग्राम में वे मुद्दे गायब दिख रहे हैं, जिन से हल्द्वानी की तीन लाख की आबादी कई साल से जूझ रही है। गौला नदी किनारे जलने वाले शवों से प्रदूषित होने वाला पानी शहर की तीन लाख आबादी पीती है। यह पानी कब बड़े हादसे को जन्म दे दे, यह बात प्रशासनिक तंत्र भी जानता है और जनता के नुमाइंदे भी। लेकिन चुनाव में इसका जिक्र किसी की जुबां पर नहीं है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार हल्द्वानी की जनसंख्या भले ही डेढ़ लाख के करीब हो। मगर अब यह संख्या दोगुनी हो चुकी है। गेट वे ऑफ कुमाऊं कहलाने के साथ-साथ हल्द्वानी उन सभी पर्यटन स्थलों को जाने का द्वार है, जहां देशी ही नहीं विदेशी भी हर माह आते-जाते हैं। लेकिन इसी द्वार में निवास करने वाली जनता की अपनी कई ऐसी व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं। यह समस्या है पानी की, जो पहाड़ से शुद्ध जल के रूप में आता है लेकिन हल्द्वानी के लोगों तक पहुंचते-पहुंचते पूरी तरह प्रदूषित हो जाता है। रानीबाग में गोला नदी किनारे चित्रशिला घाट है, जहां शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। लेकिन शव जलने के बाद राख धीरे-धीरे पानी के साथ बहकर शहर की ओर बह जाती है। नदी में शवों की अधजली लकडि़यां जहां-तहां देखी जा सकती हैं। हालांकि यह पानी काठगोदाम में लगे वर्षो पुराने फिल्टरेशन प्लांट में शुद्ध होकर आबादी तक पहुंचता है, लेकिन इस प्रक्रिया में भी इतने छेद हैं कि पानी पूरी तरह शुद्ध हो ही जाता है दावे के साथ फिर भी नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा शहर में वर्षो पुरानी बिछी सीवर लाइनें और पेयजल पाइप लाइनें भी इतनी जर्जर हैं कि फिल्टरेशन प्लांट के शुद्धता के दावे को मान भी लिया जाये तो यही सीवर लाइनें जहां-तहां पेयजल पाइप लाइनों को प्रदूषित कर रही हैं। कुल मिलाकर यहां की आबादी के लिए यह पानी किसी न किसी रूप में मीठे जहर से कम नहीं है। समाधान के रूप में समय-समय पर यहां की जनता ने विद्युत शवदाह गृह बनाने अथवा दाह संस्कार का स्थान सर्वसम्मिति से हटा देने की मांग उठाई। इस दिशा में पालिका प्रशासन तो जल संस्थान अथवा जलनिगम ने कागजी खानापूरी की भी। लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में यह प्रक्रिया कागजों से बाहर आज तक नहीं निकल पायी है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर की बड़ी आबादी हर समय पेट की बीमारियों से ग्रस्त रहती है। ऐसे में सियासी दलों के एजेंडे में यह समस्या हो अथवा न हो, लेकिन जनता की जुबां पर यह समस्या जरूर है।

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