Monday, 6 April 2009
सूबे के वन बरसाएंगे धन
देहरादून उत्तराखंड को जल्द ही अपने विस्तृत वन क्षेत्र का आर्थिक फायदा मिल सकेगा। केंद्र सरकार ने उन राज्यों को आर्थिक मदद देने की योजना बनाई है, जिन्होंने अपना वनावरण राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने में कामयाबी हासिल की है। इस योजना के तहत अगले वित्तीय वर्ष यानी 2009-10 से वित्तीय मदद मिलने की उम्मीद है। योजना आयोग के फार्मूले के हिसाब से उत्तराखंड सभी राज्यों को मिलने वाले धन का सबसे ज्यादा हिस्सा पाने वाले राज्यों में से एक रहेगा। पिछले हफ्ते यानी 23 मार्च को देहरादून में भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई)में आयोजित बैठक में योजना आयोग की सदस्या इंद्राणी चंद्रशेखर ने यह आश्वासन दिया है। बैठक में आईसीएफआरई के महानिदेशक जगदीश किशवान, एफआरआई के निदेशक डा. एसएस नेगी, विस्तार प्रभाग व शताब्दी वन विज्ञान केंद्र के निदेशक ओमकार सिंह, उत्तराखंड वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डा. आरवीएस रावत, हिमाचल, अरुणाचल, असोम, छत्तीसगढ़, समेत उन राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जहां वन क्षेत्र राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। मालूम हो कि अब तक देश में कोई ऐसी व्यवस्था नहींहै, जिसके तहत वन संरक्षण की दिशा में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को किसी तरह से आर्थिक लाभ दिए जा सके। केंद्र सरकार देश में कुल वन क्षेत्र कम से कम 33 फीसदी करना चाहती है। उत्तराखंड के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. आरवीएस रावत ने बताया कि भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग की वन स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के पास देश के कुल वन क्षेत्र का 1.6 प्रतिशत वन हैं। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 45.70 प्रतिशत वनावरण है। इनमें 7.48 प्रतिशत अत्यंत सघन वन, 26.92 फीसदी सामान्य सघन वन, 11.30 प्रतिशत खुले वन हैं। प्रदेश के 19 फीसदी क्षेत्र में बर्फ, हिमनद या तेज ढाल हैं जहां वृक्ष उगाना संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में उत्तराखंड कुल आवंटित धन का तीन से चार प्रतिशत तक धन पा सकेगा। एफआरआई के निदेशक डॉ. एसएस नेगी ने बताया कि यह धन, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिए मिलेगा। एक बार वित्तीय मदद शुरू हो जाने पर वह लगातार आठ वर्ष तक जारी रहेगी।
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