Friday, 3 April 2009

आस्था का केंद्र है मां कोट भ्रामरी मंदिर

Apr 03, गरुड़ (बागेश्वर)। कत्यूर घाटी के बीचों बीच स्थित मां कोट भ्रामरी मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्व का प्रमुख क्षेत्र है। मां नंदा सुनंदा के इस धार्मिक केंद्र में शुक्रवार को चैत्राष्टमी का विशाल मेला लगता है तथा श्रद्धालुओं द्वारा विशेष पूजा अर्चना की जाती है। समझा जाता है कि 2500 वर्ष ईसा पूर्व से लेकर वर्ष 700 तक यहां पर कत्यूरियां का शासन रहा। इस बीच काशगर, खोतान में दर्रो से भारत की सीमा में होने वाले लकुलीश, खस, कुषाण आदि वंशवलियों के साथ यहां प्रविष्ट हुए। इसी कत्यूरी राजाओं ने महत्वपूर्ण स्थानों में किले व गढ़ी की स्थापना की जिसमें कत्यूर घाटी में भी एक किला यहां स्थापित है। यहीं पर स्थित है मां भगवती मंदिर जिसमें मां नंदा की मूर्ति स्थापित है जो कि श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में मां नंदा की मूर्ति किसने स्थापित की यह इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। परंतु जन श्रुतियों के अनुसार कत्यूरी राजाओं की कुल देवी भ्रामरी व चंद वंशावलियों की प्रतिस्थापित नंदा देवी की पूजा अर्चना इस मंदिर में की जाती है। मंदिर में भ्रामरी रूप में देवी की पूजा अर्चना मूर्ति के रूप में नहीं बल्कि मूल शक्ति के अनुसार की जाती है। जबकि नंदा के रूप में इस स्थल पर मूर्ति पूजन, डोला स्थापना व विसर्जन का प्राविधान है। बुजुर्गो के अनुसार कोट के मंदिर में तोपाकार लोहे के टुकड़े यहां पर पड़े मिले। मंदिरों की देखरेख के लिए तत्कालीन राजाओं द्वारा यहां पर पुजारी व महंत नियुक्त किए गए थे जिनके वंशज आज भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते है। यहां पर चैत्राष्टमी व भादो मास की अष्टमी में मेला लगता है जिसमें दूर दराज से श्रद्धालु मां की विशेष पूजा अर्चना करते हुए मन्नतें मांगते है तथा मन्नतें पूरी होने पर पुन: यहां पर पूजा अर्चना के लिए आते है।

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