Wednesday, 27 May 2009
इस खली में भी है ,
देहरादून उम्र-दो वर्ष रोजाना खर्च-70-100 रुपये खानपान-सिर्फ ड्राइ फ्रूट और दूध सालाना कमाई- 70 हजार से 1.5 लाख रुपये काम- फाइटिंग यह परिचय रेसलिंग के किसी पहलवान का नहीं, बल्कि एक छोटे से जीव का है, जिसे डेढ़ वर्ष पूर्व उसका मालिक 6,000 रुपये में खरीदकर लाया था। आज कुश्ती के क्षेत्र में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में उसकी तूती बोलती है। इस जीव की पूरी कहानी पढ़कर आप हैरत में पड़ जाएंगे। बात चकराता रोड देहरादून निवासी कमलू (काल्पनिक नाम) के मुर्गे की हो रही है। डेढ़ वर्ष पहले उसने असील प्रजाति के दो मुर्गे 12,000 रुपये में खरीदे थे। इन मुर्गो को कुश्ती के लिए तैयार किया गया। इनमें से एक मुर्गा होनहार निकला और अपने उस्ताद के इशारे पर कुश्ती की कलाबाजियां सीखने लगा। दरअसल, राजा-महाराजाओं के जमाने में मुर्गो की लड़ाई उनके शौक में शुमार हुआ करती थी। आज भी मुर्गो की कुश्ती होती है, लेकिन शौक के लिए नहीं, बल्कि पैसों की शर्त लगाने के लिए। कानून की दृष्टि से जुआ की श्रेणी में आने वाला यह खेल (जिसे पाली कहा जाता है) उत्तराखंड में प्रतिबंधित है, लेकिन उत्तर प्रदेश के कई स्थानों (मेरठ, शाहजहांपुर, सहारनपुर) में चोरी छिपे खेला जाता है। कमलू का मुर्गा भी पाली में शिरकत करने कई बार यूपी जा चुका है। पाली में उसकी कलाबाजियां अन्य राज्यों (खासकर आंध्र प्रदेश, केरल और यूपी) से आए कई मुर्गो को धूल चटा चुकी हैं। एक पाली में लगने वाले रुपये हजार से लाखों तक हो सकते हैं। फिलवक्त इस मुर्गे की कमाई प्रतिवर्ष एक लाख के आसपास है। रेसलिंग के किसी पहलवान की तरह पाले गए इस मुर्गे के नाज-नखरे भी बड़े हैं। सर्दियों में वह सुबह-शाम ड्राइ फ्रूट की गोलियां और रात को दूध पीता है, लेकिन गर्मियों में इसके अतिरिक्त उसे आंवला, मुरब्बा, सौंफ और बड़ी इलायची भी दी जाती है। कमलू रोजाना सुबह शाम सरसों के तेल से उसकी मालिश करता है। अब मुर्गे का वजन 6.7 किलोग्राम हो चुका है। अगले माह जून में पाली खेलने उसे छुटमलपुर यूपी जाना है, लिहाजा उसे कड़ी ट्रेनिंग दी जा रही है। कमलू को विश्वास है कि आने वाले दिनों में उसका मुर्गा पाली का दि ग्रेट खली बन जाएगा।
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