Saturday, 2 May 2009

भविष्य की उम्मीद पर उक्रांद की राजनीति

, हल्द्वानी: उत्तराखंड की राजनीति में उत्तराखंड क्रांति दल की उम्मीद शायद भविष्य पर टिकी रह गयी। लंबे समय से आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाने के बाद पार्टी ने महासमर में छलांग लगायी तो नौसिखिया तैराकों की तरह गोता लगाते हुए नजर आए। भले ही पार्टी के चंद नेता कुशल राजनीतिज्ञ की श्रेणी में स्वयं को शुमार मानते हों लेकिन क्षेत्रीय पार्टी के मुकाम हासिल कराने में नाकाम साबित हुए हैं। राज्य की सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली उक्रांद ने लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर प्रत्याशी घोषित किये हैं। जनसभाओं व घर-घर जनसंपर्क के जरिए चुनावी वैतरणी पार लगाने की जुगत में हैं। लेकिन राज्य हितों को प्राथमिकता देने का वादा करने वाली पार्टी ने भाजपा से समर्थन वापस नहीं लिया है। चुनावी मैदान में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस व भाजपा के अलावा बसपा व सपा से भी दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है। नौ बिन्दुओं के साथ सर्शत समर्थन में भागीदार उक्रांद के सिपहसालारों की निगाहें भविष्य पर ही टिकी रह गयी हैं। यहां तक की अलग-अलग बयान देकर विवाद की स्थिति पैदा करने वाले शीर्ष नेता भी राष्ट्रीय दलों की आलोचना करने के साथ ही वोट हासिल करना चाहते हैं। सत्तारुढ़ पार्टी से समर्थन के साथ बगावती तेवर के बारे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. नारायण सिंह जंतवाल का कहना है कि पूर्ण समर्थन वापस का मामला तो पार्टी की बैठक में तय किया जाएगा। फिलहाल चुनाव हैं, मैदान में हैं तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता रहेगा। इसके अलावा पार्टी के कई अहम मुद्दों पर चर्चा या निर्णय के बारे में अन्य वरिष्ठ नेता भी इसके लिए अगली बैठक की बात करते हैं। आश्चर्य यह है कि पार्टी के कितने ही निर्णय अगली बैठक के इंतजार में दफन हो जाते हैं। जानकारों का कहना है कि उक्रांद के प्रति जनता की हमदर्दी जरुर है, लेकिन नेता इस मुद्दे को भी सही ढंग से ही भुनाने में सफल होते नहीं दिख रहे हैं। पार्टी के शीर्ष नेता इसी पर खुश हैं कि निकाय चुनावों में उन्होंने जिन्हें प्रत्याशी घोषित किया था, आज वे भी प्रचार के लिए खड़े दिखायी पड़ रहे हैं।

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