Wednesday, 27 May 2009

उपेक्षा, फिर भी खुल रहे संभावनाओं के द्वार

,देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी गीत-संगीत का क्षेत्र आर्थिकी का मजबूत जरिया बनता जा रहा है। शासन स्तर से लगातार हो रही उपेक्षा के बावजूद ऐसा लोक कलाकारों के स्व प्रयासों से ही संभव हो पाया है। इसी का नतीजा है कि वर्तमान में बीस-बाइस हजार उत्तराखंडी युवा गीत-संगीत के क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप में रोजगार हासिल कर रहे हैं। राज्य गठन के बाद उम्मीद जगी थी कि सरकार लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास करेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। फिर भी निजी प्रयासों से गीत-संगीत के क्षेत्र में संभावनाओं के द्वार खुलते चले गए। गायन से लेकर ऑडियो-वीडियो निर्माण तक के क्षेत्र में युवाओं का दखल बढ़ा और स्थिति यह है कि वर्तमान में बीस से बाइस हजार उत्तराखंडी इस क्षेत्र में भविष्य संवारने को प्रयासरत हैं। हालांकि, उत्तराखंड में गीत-संगीत का क्षेत्र अभी तक इंडस्ट्री का आकार नहीं ले पाया है, फिर भी इसमें नए लोगों का तेजी से प्रवेश हो रहा है। पिछले साढ़े आठ सालों में ऑडियो-वीडियो निर्माण को लेकर जिस तरह मारामारी मची है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। हां, यह जरूर है कि भेड़चाल के कारण कई लोग ज्यादा दिन नहीं टिक पाए, लेकिन स्तरीय गीत-संगीत की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ रही है। देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ती राज्य के लोकगायकों की डिमांड इसका प्रमाण है। उत्तराखंड फिल्म आर्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं संगीतकार राजेंद्र चौहान का कहना है कि राज्य गठन के बाद प्रदेश सरकार ने न तो लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किए और न लोक कलाकारों की ही सुध ली। नाम लेने को संस्कृति विभाग जरूर गठित है, लेकिन उसे भी संस्कृति से कोई सरोकार नहीं। वर्तमान में जो कुछ नजर आ रहा है, वह कलाकारों के अपने प्रयासों से ही संभव हुआ है। सरकारों की उपेक्षा के बावजूद गीत-संगीत के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ना भविष्य की उम्मीदें जगाता है। फिर भी यह ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए कि मर्यादाओं का उल्लंघन न हो। कला के संरक्षण को यदि शासन स्तर पर भी पहल हो तो उत्तराखंडी गीत-संगीत देश-दुनिया में पहचान बना सकता है। -नरेंद्र सिंह नेगी, सुप्रसिद्ध लोकगायक यदि सरकार पहल करे तो गीत-संगीत के क्षेत्र में संभावनाओं की कमी नहीं है। अब तक जिन भी लोगों ने इस क्षेत्र में पहचान बनाई है, उसमें सरकार का कोई योगदान नहीं है। संरक्षण तो दूर, सरकार कलाकारों को प्रोत्साहित करने तक का प्रयास नहीं करती। इसके बावजूद कलाकारों के स्वप्रयासों से यह क्षेत्र तेजी से तरक्की कर रहा है। -मंगलेश डंगवाल, लोकगायक राज्य बनने के बावजूद ऑडियो-वीडियो सीडी का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। दिल्ली से काफी लोग इस क्षेत्र में आए हैं। चर्चित गायकों की एलबम की मार्केट में भारी डिमांड है। -आलोक पांडे, सीडी व्यवसायी, देहरादून आंचलिक फिल्मों व लोकगीतों के ऑडियो-वीडियो एलबमों की मार्केट में डिमांड है। प्रवासी ही नहीं स्थानीय लोग भी इनकी खरीद करते हैं। हालांकि, नकली सीडी के कारोबार ने ओरिजनल सीडी कारोबार को प्रभावित किया है।- मनोज कुमार, सीडी व्यवसायी,

No comments:

Post a Comment