Thursday, 21 May 2009
अब मुद्दा 'सत्ता की कुर्सी' का
उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर कांग्र्रेसियों की जीत के बाद उठा अहम सवाल
हरीश, सतपाल और बहुगुणा के बीच कड़ा मुकाबला
दस जनपथ तक पंहुच बनाने की कवायदें हुईं तेज
पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की राय भी निभाएगी अहम रोल
देवभूमि उत्तराखंड में इस बार लोकसभा की पांचों सीटें जीत कर कांग्र्रेस अपना परचम लहरा चुकी है। अब मुद्दा 'सत्ता की कुर्सी' का उठ रहा है। चुनाव में दूसरों को पटखनी देकर सीट कब्जा ली। अब कुर्सी के लिए अपनों से ही मुकाबला करना पड़ रहा है। माना यही जा रहा है कि दस जनपथ तक पहुंच बनाने में सफल होने वाले के हिस्से में ही मंत्री पद जाएगा।
दो माह की मशक्कत के बाद कांग्र्रेसी दिग्गजों ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को पटखनी देने में सफलता हासिल कर ली पर अब नई जंग अपनों से ही करनी पड़ रही है। दरअसल, मामला केंद्र सरकार में मंत्री पद का जो है। कांग्र्रेस के प्रदर्शन से यह तो साफ हो गया है कि इस बार देवभूमि की उपेक्षा पार्टी हाईकमान शायद ही कर पाए। पार्टी सूत्रों की मानें को सूबे के हिस्से में एक मंत्री पद आ सकता है।
अब पद एक है तो दावेदार चार। इनमें हरीश रावत, केसी सिंह बाबा, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा शामिल है। पांचवें सांसद प्रदीप टम्टा केंद्र की राजनीति के लिहाज से अभी पके नहीं है। बात दावेदारी की करें तो हरीश रावत का सियासी कद खासा बड़ा है। इस बार भी उन्होंने हरिद्वार सीट पर रिकार्ड मतों से कब्जा किया है। 1991 से पहले वे तीन बार सांसद रह चुके हैैं। पांच साल तक सेवादल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहने के दौरान केंद्रीय नेताओं से उनके संपर्क और भी गहरे रहे। बताया जा रहा है कि दिल्ली में उनके संपर्क दस जनपथ तक पैरवी में जुटे हैैं। केसी बाबा दो बार विधायक रह चुके हैैं और केसी पंत के बाद वे पहले सांसद हैैं, जो नैनीताल सीट से लगातार दूसरी बार जीते हैैं। यह बात उनके पक्ष में जाती है। टिहरी से जीते विजय बहुगुणा ने पहले तो उप चुनाव जीता और अब दूसरी बार सांसद बने हैं। स्व.हेमवती नंदन बहुगुणा का पुत्र होने का उन्हें लाभ मिल सकता है तो बहन यूपी कांग्र्रेस की अध्यक्षा रीता बहुगुणा उनके लिए दस जनपथ के चक्कर लगा रही हैैं।
सतपाल महाराज ने भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी पौड़ी संसदीय सीट जीती है। दस जनपथ के साथ उनके संपर्क किसी से छिपे नहीं हैैं। फिर 1996 में वे केंद्र सरकार में राज्य मंत्री रह भी चुके हैैं।
एक बात और, कुर्सी का यह खेल भले ही दिल्ली में खेला जा रहा है पर इसमें प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका भी अहम रहने वाली है। सूबे की सभी पांच सीटों पर पार्टी का परचम फहरा कर प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने दिल्ली दरबार में अपने नंबर बढ़ा लिए हैैं। ऐसे में सूबे के मामल में उनकी राय को भी अहमियत दिया जाना तय माना जा रहा है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चुनाव जीते दिग्गज इस समय भी एक जंग लड़ रहे हैैं। खास बात यह है कि इस बार यह जंग 'कुर्सी' के लिए है और मुकाबले में अपने ही हैैं। देखना होगा कि केंद्र की सत्ता का सुख किसे नसीब होता है।
इंसेट
पहली बार तो राज्य मंत्री ही
देहरादून: कांग्र्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पार्टी की परंपरा है कि सांसद को पहली बार राज्य मंत्री ही बनाया जाता है। गांधी परिवार की बात छोड़ दी जाए तो शायद ही कोई ऐसा इतिहास मिले जिसमें किसी को पहली बार ही कैबिनेट में शामिल किया गया हो। हां, नेता का कद अगर बड़ा है तो उसे राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बना दिया जाता है।
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