Tuesday, 5 May 2009

-राज्य ने बढ़ाए कदम

उत्तराखंड ने प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्तर पर स्कूलों में सुख-सुविधाएं जुटाने में पड़ोसी राज्य हिमाचल की तुलना में बढ़त बना ली है, यह अच्छा कदम कहा जा सकता है। दोनों ही राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों में काफी हद तक समानता है। हिमाचल को राज्य बने हुए दशकों गुजर चुके हैं। गांवों तक जन सुविधाओं का नेटवर्क फैलाने में हिमाचल ने काफी काम किया है। इस वजह से कई मामलों में उत्तराखंड में अक्सर हिमाचल पैटर्न अपनाने की पैरवी की जाती है। कुछ साल पहले तक कक्षा एक से आठवीं तक स्कूलों में छात्र-छात्राओं के लिए सुविधाएं जुटाना नए राज्य के लिए चुनौती समझाी जाती रही। लेकिन सर्व शिक्षा अभियान के तहत निर्माण कार्यों की गति में सुधार के नतीजे सार्थक नजर आ रहे हैं। अलबत्ता, दूरदराज के स्कूलों में शिक्षकों की गैर हाजिरी राज्य के लिए चिंता का सबब है। शिक्षकों की स्कूलों में उपस्थिति, एकल शिक्षकों की संख्या में कमी और छात्रसंख्या के अनुपात में शिक्षकों की संख्या के मामले में हिमाचल ने उत्तराखंड को पीछे छोड़ दिया है। उत्तराखंड राज्य का गठन जिन कारणों से हुआ है, उनमें दूरस्थ व दुर्गम क्षेत्रों के विकास व उत्थान पर समुचित ध्यान देने की मांग भी थी। राज्य बनने के बाद अभी तक ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षकों को पहुंचाने में सरकारों को कामयाबी नहीं मिली है। तुष्टिकरण के रूप में स्कूल तो खोले गए, लेकिन उनमें शिक्षकों की व्यवस्था को लेकर चुप्पी साधी गई है। रिक्त पदों पर नई नियुक्तियों के बावजूद शिक्षकों को ऐसे स्कूलों में तैनात करने में राज्य के हाथ कामयाबी नहीं मिली है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता का सहज ही आकलन किया जा सकता है। विशिष्ट बीटीसी के रूप में काफी तादाद में शिक्षकों की नियुक्ति के बावजूद दुर्गम क्षेत्रों में स्कूल खाली पड़े हैं या एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। वेतन व अन्य काम के सिलसिले में शिक्षक के अन्यत्र जाने पर स्कूलों में ताले लटकते नजर आते हैं। वहीं, सुविधाजनक क्षेत्रों के स्कूलों में जरूरत से ज्यादा संख्या में शिक्षक कार्यरत हैं। इन हालातों पर नियंत्रण के लिए सरकार नीति तय करने की मशक्कत तो करती है, लेकिन अमलीजामा के नाम पर सिर्फ सिफर ही हाथ लग रहा है। देखना यह है कि स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति बढ़ाने में भी हिमाचल से उत्तराखंड बेहतर प्रदर्शन कर पाता है या नहीं।

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