Sunday, 31 May 2009
जोब्स -Uttarakhand Public Service Commission posts of Lecturer in Government Inter Colleges/ Government Girls Inter Colleges in various subject(UKPSC)
Uttarakhand Public Service Commission (UKPSC)
Ayog Bhawan, Gurukul Kangri, Haridwar-249404 (Uttarakhand)
Applications on prescribed format OMR Forms are invited from Indian Citizens for following posts of Lecturer in Government Inter Colleges/ Government Girls Inter Colleges in various subjects :
Lecturer (Government Inter College - Girls) : 190 posts (SC-48, ST-17, OBC-38, UR-87), Pay Scale : Rs.6500-10500, Age : 21-35 years
Lecturer (Government Inter College) : 1214 posts (SC-344, ST-118, OBC-260, UR-492), Pay Scale : Rs.6500-10500, Age : 21-35 years
Relaxation as per rules.
Application Fee : 100/- (Rs.60/- for SC/ST of Uttarakhand, PH and Ex-SM candidates) in the form of Bank DD in favour of Secretary, Public Service Commission, Uttarakhand payable at Haridwar
How to Apply : Application to be filled and send on the OMR Application Forms which will be available in designated Post Offices of Uttarakhand on payment of Rs.110/- (Rs.70/- for SC/ST of Uttarakhand only) alongwith guidebook. Please keep a photocopy of filled in OMR application form with you and send completed application form to Secretary, Public Service Commission, Uttarakhand, Gurukul Kangri, Haridwar-249404 on or before 30/06/2009.
Kindly view http://gov.ua.nic.in/tenders/Tenders/Dept22-200952913245959.PDF for detailed information.
How to Apply
O.M.R. application forms with instruction can be purchased for Rs. 110/-
(Application fee – Rs. 100/- + Postal Charges Rs. 10/-) for general candidates, Other
backward caste candidates of Uttarakhand and Dependent of freedom fighter candidates
of Uttarakhand and Rs. 70/- (Application fee Rs. 60/- + Postal Charges Rs. 10/-) for
Scheduled caste candidates of Uttarakhand and Scheduled Tribe candidates of
Uttarakhand in cash through the post offices mentioned below from
June 01, 2009 to
June 30, 2009. Candidates must obtain instructions along with the O.M.R. application
form in order to fill it up.
Districtwise list of Post Offices where the O.M.R. application forms are available: -
1- Almora
– Almora- Main branch, Ranikhet –Main branch, Bhikiyasen – Sub
branch, Dwarahaat –Sub branch, Masi –Sub branch.
2- Bageshwar
– Bageshwar –Main branch, Baijnath –Sub branch, Kapkot- Sub
branch, Kanda –Sub branch.
3- Chamoli
– Gopeshwar –Main branch, Joshimath –Sub branch, Chamoli –Sub
branch, Karnprayag –Sub branch.
4- Champawat
– Champawat –Main branch, Lohaghat –Sub branch, Devidhura –
Sub branch, Tanakpur –Sub branch.
5- Dehradun –
Dehradun –Main branch, Mussorie –Sub branch, Rishikesh –Sub
branch, Vikasnagar –Sub branch, Premnagar –Sub branch, Rajpur –Sub branch,
Doiwala –Sub branch, Chakrata –Sub branch.
6- Haridwar
– Haridwar –Main branch, Roorkee –Main branch, Laksar –Sub
branch, B.H.E.L. –Sub branch.
7- Nainital
– Nainital –Main branch, Ramnagar –Sub branch, Haldwani –Main
branch, Okhalkanda –Sub branch.
8- Garhwal
– Pauri –Main branch, Kotdwar –Main branch, Lansdown –Main
branch, Srinagar –Sub branch, Dhoomakot –Sub branch.
5
9- Pithoragarh
– Pithoragarh –Main branch, Gangolihat –Sub branch, Berinag –
Sub branch, Didihat –Sub branch, Dharchula –Sub branch, Thal –Sub branch,
Munsyari –Sub branch.
10- Rudraprayag –
Rudraprayag –Main branch, Ukhimath –Sub branch.
11- Tehri Garhwal –
New Tehri – Main branch, Narendranagar – Sub branch,
Ghansali –Sub branch,
12- Udham Singh Nagar –
Rudrapur – Main branch, Pantnagar – Sub branch,
Kashipur –Sub branch, Khatima –Sub branch.
13- Uttarkashi –
Uttarkashi – Main branch, Barkot – Sub branch, Purola- Sub
branch.
Saturday, 30 May 2009
और कभी यह खेत उगलते थे सोना
-मनेरी भाली फेज टू योजना की भेंट चढ़ गए खेत
-परियोजना समाप्ति के बाद नहीं मिल रहा काश्तकारों को काम
उत्तरकाशी: मनेरी भाली फेज-टू बिजली उत्पादन की दृष्टि से राज्य व देश के लिए भले ही महत्वपूर्ण हो, लेकिन इस परियोजना ने धनारी पट्टी के हजारों किसानों को कभी न खत्म होने वाला दर्द दिया है। इस क्षेत्र के काश्तकारों की कभी सोना उगलने वाली 37.38 हेक्टेयर भूमि आज रेगिस्तान में तब्दील हो चुकी है।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 35 किमी की दूरी पर स्थित मनेरी भाली परियोजना धनारी पट्टी के काश्तकारों के लिए अभिशाप से कम नहीं है। धनपति गाड़ के किनारे हिटाणु, ढुंगी, सिंगुणी, व पुजार गांव के करीब आठ हजार कृषक परिवार कभी इसी जमीन पर निर्भर थे। यहां राजमा, आलू, प्याज, धान और गेहूं की लहलहाती फसलों ने इन परिवारों को कभी भूखा नहीं रहने दिया। परियोजना का निर्माण कार्य शुरू होते ही ग्रामीणों के बुरे दिन शुरू हो गए। परियोजना का निर्माण कार्य वर्ष 2001 में शुरू हुआ। धनपति गाड़ से धरासू पावर हाउस की सुरंग का रास्ता धनपति गाड़ पर खोदा गया। इस रास्ते सुरंग में इस्तेमाल के बाद बचे बालू, सीमेंट और कंकरीट को बहाया जाने लगा। इसके अलावा गांव के खेतों से सुरंग तक सड़क का भी निर्माण किया गया। इससे किसानों की खेती की जमीन पूरी तरह चौपट हो गई। काश्तकारों ने आवाज उठाई तो वर्ष 2003, 2004, 2006 व 2007 की नष्ट हुई फसल का काश्तकारों को जमीन व फसल का कुल 87,23,927 रुपये प्रतिकर मिला। ग्रामीणों को तब तत्कालीन सिंचाई मंत्री शूरवीर सजवाण ने आश्वासन दिया कि उनके खेतों में फसल न उगने तक उन्हें प्रतिकर दिया जाता रहेगा, पर परियोजना का निर्माण पूरा होते ही किसानों को फसलों का प्रतिकर देना बंद कर दिया है। अब काश्तकार खेती के अभाव में मजदूरी करने को विवश हैं। ग्रामीणों के पास जो शेष कृषि योग्य भूमि बची है, वहां भी सिंचाई की सुविधा नहीं है।
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संघर्ष की तैयारी में ग्रामीण
उत्तरकाशी : खेती की जमीन नष्ट होने से परेशान धनारी के ग्रामीण अब संघर्ष की तैयारी में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व में शासन ने कई बार उन्हें आश्वासन दिए कि उनकी जमीन को पुन: दुरुस्त कर उन्हें लौटायी जाएगी। इसके अलावा सिंचाई नहरों को ठीक कर खेती को सिंचाई योग्य पानी भी मुहैया होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हिटाणु गांव के काश्तकार अब्बल सिंह, ओम प्रकाश, उमा शंकर, हरि शंकर व सिगुणी के कुंदन सिंह, किशन सिंह समेत अन्य का कहना है कि वह अपने अधिकार के लिए सड़क पर उतरेंगे।
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अनुपयोगी जमीन का होगा सर्वे
उत्तरकाशी: उप जिलाधिकारी डुण्डा एचएस सेमवाल ने बताया कि परियोजना से प्रभावित हुई खेती का ग्रामीणों को प्रतिकर दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि परियोजना से जो जमीन प्रभावित हुई है उसके सर्वे के बाद शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी। उप जिलाधिकारी ने कहा कि शासन को जमीन अनुपयोगी होने की रिपोर्ट के बाद ही काश्तकारों को जमीन का मुआवजा मिल सकता है।
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जमीन के बदले रोजगार का ख्वाब भी निकला झाूठा
उत्तरकाशी : मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना का निर्माण शुरू होने से पहले काश्तकारों को सरकार ने जमीन के बदले रोजगार का ख्वाब दिखाया था। योजना समाप्त होने के साथ ही ग्रामीणों का यह ख्वाब भी टूट गया है। परियोजना निर्माण तक ग्रामीणों को ठेकेदारों के अधीन काम मिला, जो परियोजना समाप्ति के साथ ही छिन गया है।
आईएएस बनना चाहती है दृष्टिहीन सुप्रिया
-एनआईवीएच के आदर्श विद्यालय की छात्रा ने सीबीएसई परीक्षा में प्राप्त किए 86.4 प्रतिशत अंक
-शत प्रतिशत रहा परिणाम, 14 में से 13 प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण
देहरादून, कुदरत ने भले ही उनके साथ नाइंसाफी की हो, लेकिन अपने जज्बे, परिश्रम और फौलादी इरादों से उन्होंने इस अभिशाप को भी बौना कर दिया। बात हो रही देहरादून के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ विजुअली हैंडीकैप्ड (एनआईवीएच) के दृष्टिहीन छात्र-छात्राओं की, जिन्होंने सीबीएसई में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इनमें सुप्रिया (86.4), विनीता नेगी (85.2) व पीयूष गुप्ता(80.4) ने स्कूल का नाम रोशन किया। टॉपर सुप्रिया आईएएस अधिकारी बन देश की सेवा करना चाहती है।
सीबीएसई 12 वीं में शानदार प्रदर्शन के बाद एनआईवीएच स्थित आदर्श विद्यालय के दसवीं कक्षा के छात्रों ने भी परचम फहराया। परीक्षा में शामिल हुए 14 छात्रों में से 13 ने प्रथम श्रेणी व एक ने द्वितीय श्रेणी के साथ सफलता प्राप्त की। स्कूल की टॉपर रहीं गया, बिहार की सुप्रिया मध्यम वर्गीय परिवार से हैैं। सुप्रिया ने 86.4 प्रतिशत अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की। सुप्रिया आईएएस अधिकारी बन देश की सेवा करना चाहती हैैं। उनका कहना है कि इरादा मजबूत हो तो लक्ष्य मिल ही जाता है। अपनी सफलता के लिए वह शिक्षकों, माता-पिता व दोस्तों को श्रेय देती हैैं। दूसरे स्थान पर रहीं ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड की विनिता नेगी (85.2) व हिमाचल प्रदेश के रहने वाले पीयूष गुप्ता भी मध्यम वर्गीय परिवार से ही हैैं। विनिता अपनी सफलता के लिए माता-पिता व शिक्षकों श्रेय देते हैैं।
स्कूल के प्रधानाचार्य कमलबीर सिंह जग्गी ने बताया कि स्कूल के सभी छात्र-छात्राओं ने आशातीत प्रदर्शन किया है। बारहवीं व दसवीं दोनों में स्कूल का परिणाम शत प्रतिशत रहा है। इसके पीछे छात्रों की लगन और शिक्षकों की मेहनत ही मुख्य वजह है। उन्होंने कहा कि स्कूल के छात्रों ने साबित कर दिया कि भगवान ने उन्हें आखें भले ही न दी हों पर हौसला व जज्बा किसी से कम नहीं है। उन्होंने छात्र-छात्राओं व अभिभावकों को बधाई प्रेषित की।
Friday, 29 May 2009
-कुदरत का तोहफा ही नहीं सहेज पा रहा उत्तराखंड
-उत्तराखंड से गुम हो गई आर्किड की 28 प्रजातियां
राजाजी नेशनल पार्क से सालम मिसर जैसा आर्किड भी नदारद
उत्तराखंड में सैकड़ों प्रकार के दुर्लभ पुष्प और औषधीय पेड़-पौधे पाए जाते हैं। इन्हें देखने के लिए देश-विदेशों से लोग यहां आते हैं लेकिन लगता है कि कुदरत के इन तोहफों पर बदलते समय की नजर लग गई है। ग्लोबल वार्मिंग, बदलते वातावरण और प्राकृतिक आवास के विघटन की वजह से उत्तराखंड के कुदरती तोहफे में से एक आर्किड खोने की कगार पर है।
शाही खुशबू वाला फूल कहलाने वाले आर्किड विशेष प्रकार का पौधा होता है जो पारिस्थतिकी तंंत्र में अहम भूमिका निभाता है। इस पौधे को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इस फूल दुनिया में 18 हजार प्रजातियां पाई जाती हैैं जिनमें से एक हजार प्रजातियों के साथ भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। आर्किड उत्तराखंड में आर्किड की 200 प्रजातियां पाई जाती हैैं। उत्तराखंड आर्किड विविधता की दृष्टि से देश में सातवें स्थान पर है लेकिन भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों के हालिया सर्वेक्षण चौंकाने वाले हैं। इनके अनुसार उत्तराखंड में इनमें से 28 प्रजातियां लुप्तप्राय हो चुकी हैैं। वैसे 13 आर्किड प्रजातियां पहले से ही आईयूसीएन की रेड डाटा लिस्ट में हैैं। डब्लूआईआई के आर्किडोलॉजिस्ट डॉ. जीएस रावत का कहना है कि जंगलों में सभी प्रजातियो को ढूंढने के दौरान उन्हें केवल 49 प्रजातियां ही मिलीं। यहां तक की राजाजी नेशनल पार्क में पाया जाने वाला सालम मिसर जैसा आर्किड भी अब दिखाई नहीं देता। आर्किड उत्तराखंड में गोरी घाटी में बहुतायत में पाया जाता है इसके अलावा सनदेव, नैनीताल, हिंडोलाखाल, मंडल, नागटिब्बा और असी गंगा घाटी आर्किड बहुल क्षेत्र हैैं। उनका कहना है कि उत्तराखंड में 12 आर्किड प्रजातियों का व्यापार होता है। आर्किड को लेकर डब्लूआईआई में एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार भी हुई थी जिसमें डॉ.जीएस रावत और डॉ. जेएस जलाल ने उत्तराखंड में आर्किड की स्थिति पर प्रकाश डाला था। डॉ. रावत का कहना है कि सरकार को प्रदेश में आर्किड के संरक्षण के लिए आर्किड संरक्षण क्षेत्रों का निर्माण करना चाहिए ताकि अस्तित्व के लिए संघर्ष करती इस दुर्लभ कुदरती नेमत को बचाया जा सके। बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक डॉ. एचजे चौधरी का कहना है कि वैज्ञानिक संस्था होने के नाते वह प्रदेश में आर्किड के व्यवसायिक उत्पादन में सहयोग के लिए तैयार हैैं लेकिन संकटग्रस्ट प्रजाति होने की वजह से व्यवसायिक उत्पादन के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी।
कैंसर समेत अनेक रोगों
की दवा है आर्किड
आर्किड का इस्तेमाल फूलों के व्यापार में ही नहीं स्थानीय चिकित्सा पद्धतियों में भी होता है। आर्किड का इस्तेमाल चीनी चिकित्सा पद्धतियों में ज्यादा होता है। इसकी एक प्रजाति से बनने वाली शिन्हू दवा, अपच, दस्त, बुखार को दूर करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में असरदार होती है। चीनी लोग इसे पेट व फेफड़ों के कैंसर के इलाज में भी इस्तेमाल करते हैैं। आर्किड से हाइपरटेंशन, सिरदर्द, आधाशीशी आदि विभिन्न रोगों का इलाज भी किया जाता है।
Thursday, 28 May 2009
-...कख छन वो हमारा पठाला कूढा
आधुनिकता की दौड़ में पहाड़ की भवन निर्माण कला विलुप्ति की कगार पर
पठाल के बजाय अब गांवों में भी बन रहे ईंट-सीमेंट के मकान
आधुनिक परिवेश का रंग जैसे-जैसे पहाड़ों पर चढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे पहाड़ की पहाडिय़त भी खोती नजर आ रही है। समय के साथ पहाड़ बदल रहा है और साथ ही बदल रहे हैं पहाड़ के बाशिंदों के रहन-सहन के तौर तरीके भी। शहरी दिखने और बनने की चाह में पहाड़ अपनी जिन विशिष्टताओं को पीछे छोड़ता जा रहा है, उन्हीं में एक हैं 'पठाल' के मकान। कभी पहाड़ की पहचान पठालों से बने ढलवानुमा छत वाले मकान अब गुजरे जमाने की बात रह गए हैं। हालांकि, विभिन्न वैज्ञानिक शोधों में यह साबित हुआ है कि भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में यह मकान सुरक्षित रहते हैं। इसके बावजूद दूरस्थ गांवों तक में लोग पठाल के पुराने मकानों को तोड़कर ईंट-सीमेंट के पक्के मकान बनवाने लगे हैं।
पठाल यानी एक खास किस्म का पत्थर, जिसे पहाड़ में मकानों के निर्माण में प्रयोग किया जाता था। एक समय था जब गांव में किसी व्यक्ति का मकान बनना हो, तो तमाम ग्रामीण एकजुट होकर पठाल तैयार करने में जुट जाते थे। भवन निर्माण कला के पारंगत शिल्पकार नदी के गोल पत्थरों को चौकोर काटकर उसमें उड़द की दाल अथवा चिकनी मिट्टी, चूना व पिरुल (चीड़ की पत्तियां) के मिश्रण से चिनाई करते थे। चिनाई में लकड़ी की खपच्चियां प्रयोग में लाई जाती थी। मकान बनने में भले ही लंबा समय लगता था, लेकिन इनकी मजबूती वर्तमान में बनने वाले ईंट-सीमेंट से बनने वाले मकानों से कहीं अधिक होती थी। खास बात यह कि इन मकानों पर भूकंप के दृष्टिकोण से भी अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है। नब्बे के दशक में उत्तरकाशी में भूकंप से हुई तबाही का जायजा लेने पहुंचे अमेरिकी वैज्ञानिक लारी बेकर ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की थी। इसके मुताबिक भूकंप ने ईंट, सीमेंट से बने मकानों को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन पठालों के मकान सुरक्षित खड़े थे। अलबत्ता, उन मकानों में अधिक जनहानि हुई, जिनकी छतें तो पठालों की थी, लेकिन दीवारें गोल पत्थरों से बना दी गई थीं।
दुर्भाग्य की बात यह है कि किसी जमाने में पहाड़ की पहचान रहे पठाल के मकान अब गुम होते जा हैं। आधुनिक दिखने की अंधाधुंध दौड़ में अब ग्रामीण भी पठाल के मकानों को दोयम दृष्टि से देखने लगे हैं। गांवों में अब मकान पठालों की बजाय शहरों से ईंट-सीमेंट ढोकर बनाए जा रहे हैं। वयोवृद्ध शिक्षाविद पीडी देवरानी व वरिष्ठ पत्रकार कमल जोशी बताते हैं कि पुराने समय में भवन गांव के आसपास मौजूद संसाधनों से ही तैयार होते थे। अब लोगों के पास समयाभाव भी हो गया है, इसके चलते पहाड़ की भवन निर्माण कला दम तोड़ती जा रही है। उनका कहना है कि सरकार को परंपरागत भवन निर्माण कला में पारंगत शिल्पकारों के संरक्षण-संवद्र्धन के लिए प्रयास करने चाहिए।
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पौड़ी के खिर्सू में खुला एफआरआई का सेंटर
पौड़ी जनपद के ग्रामीण भी अब वानिकी में रोजगारपरक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे। पर्यटन गांव खिर्सू में वानिकी अनुसंधान संस्थान एफआरआई का केंद्र खुल गया है। इससे न सिर्फ ग्रामीणों में वन संरक्षण के प्रति जागरुकता लाई जा सकेगी, बल्कि विभागीय पहलों से भी जोड़ा जा सकेगा। इस दौरान वन अनुसंधान संबंधी कार्यशाला के जरिए स्थानीय लोगों को विभिन्न योजनाओं की जानकारी भी दी गई। मंगलवार को मंडल मुख्यालय से करीब 25 किमी की दूरी पर स्थित पर्यटन गांव खिर्सू में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय वन अनुसंधान व शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) के महानिदेशक जगदीश किशवान ने एफआरआई सेंटर का उद्घाटन किया। इस दौरान अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि इस वन अनुसंधान स्टेशन में ग्रामीण अंचलों के लोगों को वानिकी व जड़ी-बूटियों के उपयोग संबंधी रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि फिलहाल स्टेशन में एक वैज्ञानिक और एक रेंजर की नियुक्ति कर दी गई है। जल्दी ही अन्य पदों पर भी नियुक्तियां कर दी जाएंगी। डा. किशवान ने बताया कि इस केंद्र में जड़ी-बूटी, रिंगाल व अन्य औषधीय पादपों पर शोध भी किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्य दो माह शुरू हो जाएगा। जिसमें स्थानीय लोगों को वानिकी से रोजगार जुटाने का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसका प्रशिक्षण लेने के बाद यहां के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल सकेगा। इससे यहां की विलुप्त हो रही जड़ी बूटियों का संरक्षण व संवर्द्धन भी हो सकेगा।
Wednesday, 27 May 2009
बदलेगी बदरीनाथ की तस्वीर
करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र बदरीनाथ धाम की तस्वीर अगली यात्रा तक बदल जाएगी। नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन एनटीपीसी के सहयोग से बदरी-केदार मंदिर समिति मंदिर व इसके आसपास के क्षेत्र के कायाकल्प की योजना बना रही है। इसके तहत मुख्य मंदिर के चारों ओर पत्थर के फर्श को हटाकर वुडन फर्श का निर्माण व अन्य छोटे मंदिरों के सौंदर्यीकरण का काम प्रस्तावित है। इस काम के लिए एनटीपीसी ने करीब पचास लाख रुपये की रकम समिति को आवंटित भी कर दी है। बदरीनाथ धाम में यात्रा सीजन के दौरान भी काफी ठंड रहती है। मंदिर के चारों ओर पहले सीमेंट का फर्श था, जिसे कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान से खास पत्थर मंगाकर दोबारा तैयार किया गया था। इससे मंदिर की सुंदरता तो बढ़ी, लेकिन दर्शन को आने वाले तीर्थयात्रियों को ठंड के चलते पत्थर के फर्श पर घंटों कतार में लगे रहने से खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसे देखते हुए अभी हाल ही में मंदिर समिति ने यहां जनपद में जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करा रही कंपनी एनटीपीसी को फर्श निर्माण व सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव दिया गया था। जानकारी के मुताबिक एनटीपीसी के सीनियर मैनेजर वीपी पांडेय ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 49 लाख 90 हजार 439 रुपये मंजूर होने की जानकारी मंदिर समिति को दे दी है। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी व एसडीएम जोशीमठ प्रवेश चंद्र डंडरियाल ने बताया कि स्वीकृत राशि से मुख्य मंदिर के चारों ओर ट्रीटेट वुडन फर्श का निर्माण कराया जाना प्रस्तावित है। ट्रीटेट बुड की खासियत है कि यह खराब नहीं होती और इसमें कीड़ा लगने की भी संभावना नहीं रहती। साथ ही फर्श दिखने में भी आकर्षक होगा। इसके अलावा व्यास गुफा, गणेश गुफा, वसुधारा, माणा में सरस्वती संगम के सौन्दर्यीकरण, सिंहद्वार के चारों ओर मरम्मत, अणीमठ में वृद्ध बदरी और जोशीमठ में कल्पवृक्ष के चारों ओर सुरक्षा बाड़ के निर्माण किए जाने हैं। श्री डंडरियाल ने बताया कि इस कार्य के लिए विशेषज्ञों की राय व वुडन स्पेशलिस्टों की मदद ली जाएगी। उन्होंने बताया कि मंदिर समिति की बैठक में अनुमोदन के बाद जल्द ही यह कार्य शुरू करा दिया जाएगा।
उपेक्षा, फिर भी खुल रहे संभावनाओं के द्वार
,देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी गीत-संगीत का क्षेत्र आर्थिकी का मजबूत जरिया बनता जा रहा है। शासन स्तर से लगातार हो रही उपेक्षा के बावजूद ऐसा लोक कलाकारों के स्व प्रयासों से ही संभव हो पाया है। इसी का नतीजा है कि वर्तमान में बीस-बाइस हजार उत्तराखंडी युवा गीत-संगीत के क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप में रोजगार हासिल कर रहे हैं। राज्य गठन के बाद उम्मीद जगी थी कि सरकार लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास करेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। फिर भी निजी प्रयासों से गीत-संगीत के क्षेत्र में संभावनाओं के द्वार खुलते चले गए। गायन से लेकर ऑडियो-वीडियो निर्माण तक के क्षेत्र में युवाओं का दखल बढ़ा और स्थिति यह है कि वर्तमान में बीस से बाइस हजार उत्तराखंडी इस क्षेत्र में भविष्य संवारने को प्रयासरत हैं। हालांकि, उत्तराखंड में गीत-संगीत का क्षेत्र अभी तक इंडस्ट्री का आकार नहीं ले पाया है, फिर भी इसमें नए लोगों का तेजी से प्रवेश हो रहा है। पिछले साढ़े आठ सालों में ऑडियो-वीडियो निर्माण को लेकर जिस तरह मारामारी मची है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। हां, यह जरूर है कि भेड़चाल के कारण कई लोग ज्यादा दिन नहीं टिक पाए, लेकिन स्तरीय गीत-संगीत की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ रही है। देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ती राज्य के लोकगायकों की डिमांड इसका प्रमाण है। उत्तराखंड फिल्म आर्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं संगीतकार राजेंद्र चौहान का कहना है कि राज्य गठन के बाद प्रदेश सरकार ने न तो लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किए और न लोक कलाकारों की ही सुध ली। नाम लेने को संस्कृति विभाग जरूर गठित है, लेकिन उसे भी संस्कृति से कोई सरोकार नहीं। वर्तमान में जो कुछ नजर आ रहा है, वह कलाकारों के अपने प्रयासों से ही संभव हुआ है। सरकारों की उपेक्षा के बावजूद गीत-संगीत के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ना भविष्य की उम्मीदें जगाता है। फिर भी यह ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए कि मर्यादाओं का उल्लंघन न हो। कला के संरक्षण को यदि शासन स्तर पर भी पहल हो तो उत्तराखंडी गीत-संगीत देश-दुनिया में पहचान बना सकता है। -नरेंद्र सिंह नेगी, सुप्रसिद्ध लोकगायक यदि सरकार पहल करे तो गीत-संगीत के क्षेत्र में संभावनाओं की कमी नहीं है। अब तक जिन भी लोगों ने इस क्षेत्र में पहचान बनाई है, उसमें सरकार का कोई योगदान नहीं है। संरक्षण तो दूर, सरकार कलाकारों को प्रोत्साहित करने तक का प्रयास नहीं करती। इसके बावजूद कलाकारों के स्वप्रयासों से यह क्षेत्र तेजी से तरक्की कर रहा है। -मंगलेश डंगवाल, लोकगायक राज्य बनने के बावजूद ऑडियो-वीडियो सीडी का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। दिल्ली से काफी लोग इस क्षेत्र में आए हैं। चर्चित गायकों की एलबम की मार्केट में भारी डिमांड है। -आलोक पांडे, सीडी व्यवसायी, देहरादून आंचलिक फिल्मों व लोकगीतों के ऑडियो-वीडियो एलबमों की मार्केट में डिमांड है। प्रवासी ही नहीं स्थानीय लोग भी इनकी खरीद करते हैं। हालांकि, नकली सीडी के कारोबार ने ओरिजनल सीडी कारोबार को प्रभावित किया है।- मनोज कुमार, सीडी व्यवसायी,
इस खली में भी है ,
देहरादून उम्र-दो वर्ष रोजाना खर्च-70-100 रुपये खानपान-सिर्फ ड्राइ फ्रूट और दूध सालाना कमाई- 70 हजार से 1.5 लाख रुपये काम- फाइटिंग यह परिचय रेसलिंग के किसी पहलवान का नहीं, बल्कि एक छोटे से जीव का है, जिसे डेढ़ वर्ष पूर्व उसका मालिक 6,000 रुपये में खरीदकर लाया था। आज कुश्ती के क्षेत्र में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में उसकी तूती बोलती है। इस जीव की पूरी कहानी पढ़कर आप हैरत में पड़ जाएंगे। बात चकराता रोड देहरादून निवासी कमलू (काल्पनिक नाम) के मुर्गे की हो रही है। डेढ़ वर्ष पहले उसने असील प्रजाति के दो मुर्गे 12,000 रुपये में खरीदे थे। इन मुर्गो को कुश्ती के लिए तैयार किया गया। इनमें से एक मुर्गा होनहार निकला और अपने उस्ताद के इशारे पर कुश्ती की कलाबाजियां सीखने लगा। दरअसल, राजा-महाराजाओं के जमाने में मुर्गो की लड़ाई उनके शौक में शुमार हुआ करती थी। आज भी मुर्गो की कुश्ती होती है, लेकिन शौक के लिए नहीं, बल्कि पैसों की शर्त लगाने के लिए। कानून की दृष्टि से जुआ की श्रेणी में आने वाला यह खेल (जिसे पाली कहा जाता है) उत्तराखंड में प्रतिबंधित है, लेकिन उत्तर प्रदेश के कई स्थानों (मेरठ, शाहजहांपुर, सहारनपुर) में चोरी छिपे खेला जाता है। कमलू का मुर्गा भी पाली में शिरकत करने कई बार यूपी जा चुका है। पाली में उसकी कलाबाजियां अन्य राज्यों (खासकर आंध्र प्रदेश, केरल और यूपी) से आए कई मुर्गो को धूल चटा चुकी हैं। एक पाली में लगने वाले रुपये हजार से लाखों तक हो सकते हैं। फिलवक्त इस मुर्गे की कमाई प्रतिवर्ष एक लाख के आसपास है। रेसलिंग के किसी पहलवान की तरह पाले गए इस मुर्गे के नाज-नखरे भी बड़े हैं। सर्दियों में वह सुबह-शाम ड्राइ फ्रूट की गोलियां और रात को दूध पीता है, लेकिन गर्मियों में इसके अतिरिक्त उसे आंवला, मुरब्बा, सौंफ और बड़ी इलायची भी दी जाती है। कमलू रोजाना सुबह शाम सरसों के तेल से उसकी मालिश करता है। अब मुर्गे का वजन 6.7 किलोग्राम हो चुका है। अगले माह जून में पाली खेलने उसे छुटमलपुर यूपी जाना है, लिहाजा उसे कड़ी ट्रेनिंग दी जा रही है। कमलू को विश्वास है कि आने वाले दिनों में उसका मुर्गा पाली का दि ग्रेट खली बन जाएगा।
वरिष्ठपत्रकार ड़ा. उमाशंकर थपलियाल जी के द्वारा रीजनल रिपोर्टर मासिक पत्रिका का प्रकाशन
अंतराष्ट्रीय पटल पर चमका कोटद्वार
कोटद्वार के विशाल सिंह ने अरजबेजान (रूस) में आयोजित सातवीं इंटरनेशनल जूनियर बॉ1िसंग प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन कर कांस्य पदक जीता है। इस शानदार उपल4िध पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम में विशाल को स6मानित किया गया।बीती एक से छह मई तक आयोजित प्रतियोगिता में विशाल ने कई विदेशी बॉ1सरों को पछाड़कर कांस्य पदक जीतने में सफलता हासिल की। यहां राजकीय स्पोट्र्स स्टेडियम का छात्र विशाल इससे पूर्व जूनियर वर्ग में दो बार राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुका है। क्रिश्चियन इवांजलेस्टीक चर्च के तत्वावधान में पालिका सभागार में आयोजित सादे समारोह में विशाल को उसकी उपल4िध पर स6मानित किया गया। पालिकाध्यक्ष शशि नैनवाल की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम का संचालन पास्टर अमित शमुएल ने किया। इस मौके पर विशाल के माता-पिता सहित परिजनों के अलावा डा. अनुज जेपी कैलोग, ईओ जेएल कोटियाल, आसिम अली, मीनू खान, मंगतराम अग्रवाल आदि मौजूद थे।
होनहार को मदद की दरकार
कोटद्वार। यहां अपर कालाबड़ निवासी विजय सिंह का प्रतिभाशाली बालक विशाल भविष्य में ओलंपिक पदक हासिल करने की तमन्ना रखता है। होनहार विशाल अपनी लगातार सफलताओं का श्रेय स्टेडियम के उपक्रीड़ाधिकारी/कोच देवेंद्र चंद्र भट्ट को देता है। विशाल के पिता ट्रक चालक हैं। घर की माली हालत खराब होने के बावजूद सरकारी सहायता के बगैर बेहद सीमित संसाधनों की बदौलत हर प्रतियोगिता में उसने बेहतर प्रदर्शन किया।
पंजाब की आग में 'झुलसा' उत्तराखंड
-बसों में आगजनी व तोडफ़ोड़
चंडीगढ़, अंबाला, जालंधर,
-लुधियाना आदि शहरों को नहीं
जा सके यात्री
,हल्द्वानी
पंजाब में भड़की हिंसा की आग ने उत्तराखंड को भी अपनी चपेट में ले लिया है। राज्य की एक बस वहां जला दी गयी है, जबकि एक के लिए क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। परिणाम स्वरूप परिवहन निगम की बसों को पंजाब भेजना बंद कर दिया गया है।
बीती रात डेरा सचखंड के संत रामदास की वियना में हत्या होने के विरोध में पंजाब के विभिन्न शहरों में हिंसा फैली गई। इसका असर उत्तराखंड पर भी पड़ा है। रविवार को राज्य से पंजाब के विभिन्न शहरों के लिए रवाना बसों में हरिद्वार डिपो की एक बस को जालंधर शहर में आक्रोशित लोगों ने खाली कराकर आग के हवाले कर दिया। जबकि टनकपुर डिपो की बस में जमकर तोड़-फोड़ की गयी।
इसके परिणाम स्वरूप उत्तराखंड से पंजाब के चंडीगढ़, जालंधर, अमृतसर, अंबाला आदि शहरों को करीब 40 बसों का संचालन होता है। जिससे निगम को करीब छह लाख रुपए की रोजाना आय होती है। इनका संचालन बंद कर दिया गया है। निगम के प्रबंधक संचालन मुकुल पंत ने बताया कि चालक-परिचालक सहित यात्री भी सुरक्षित पहुंच गए थे। उन्होंने बताया कि संपत्तियों को बचाना पहली प्राथमिकता है। यात्रियों का भारी दबाव रहने पर सहारनपुर तक बसों को भेजा जा सकता है। पंजाब के लिए बसों का संचालन स्थिति सामान्य होने के बाद ही किया जायेगा।
चुनाव व आर्थिक मंदी पर 'आस्था' भारी
-पूरे उत्साह के साथ बदरी-केदार व गंगोत्री-यमुनोत्री पहुंच रहे हैं श्रद्धालु
-23 मई तक चार पवित्र धामों के दर्शन कर चुके हैं 3 लाख 93 हजार तीर्थयात्री
-रोजाना 54 से 56 हजार श्रद्धालु उमड़ रहे हैं पौराणिक धामों की ओर
-विश्वव्यापी आर्थिक मंदी भी नहीं डिगा पाई श्रद्धालुओं के अटूट विश्वास को
पिछले डेढ़ माह से भले ही समूचा देश लोकसभा चुनाव की आपाधापी में व्यस्त रहा हो, लेकिन उत्तराखंड के चार पवित्र धामों की तीर्थयात्रा इस चुनावी व्यस्तता में भी चरम पर रही। देश के विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पूरे उत्साह व श्रद्धा के साथ भगवान बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री के पवित्र धामों पर अपने आराध्य देवों के दर्शन के लिए उमड़ रहे हैं। देश-विदेश से पहाड़ी सूबे की नैसर्गिक वादियों की ओर आने वाले पर्यटकों के उत्साह में भी कोई कमी नहीं दिख रही।
एक ओर जहां लोकतंत्र के महाकुंभ का अपना महत्व है, वहीं भगवान बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट आस्था व विश्वास भी है। लोकसभा चुनाव की व्यस्तता के बीच चारधाम यात्रा के शुरूआती दौर में श्रद्धालुओं का उत्साह तो कम से कम यही तस्वीर बयां करता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का हुजूम श्रद्धा के साथ उत्तराखंड में स्थित इन चार पौराणिक धामों की ओर उमड़ रहा हैं। रोजाना करीब 54 से 56 हजार तीर्थयात्री पवित्र धामों का रुख कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 23 मई तक 3 लाख 93 हजार तीर्थयात्री पवित्र धामों के दर्शन कर पुण्य कमा चुके हैं। इनमें से 77514 गंगोत्रीं, 75620 यमुनोत्री व 160522 बदरीनाथ तथा 79406 श्रद्धालु भगवान केदारनाथ दर्शन कर चुके हैं। पिछले दो-तीन वर्षों की तुलना में चारधाम यात्रा के इस रुझाान ने यह साबित कर दिया है, कि श्रद्धालुओं की आस्था व अटूट विश्वास को विश्वव्यापी आर्थिक मंदी भी नहीं डिगा पाई है।
चारधाम यात्रा की तरह सूबे की नैसर्गिक वादियों का लुत्फ उठाने वाले पर्यटकों में भी खासा उत्साह नजर आ रहा है। पहाड़ों की रानी मसूरी, ऋषिकेश, नैनीताल, औली, राजाजी नेशनल पार्क, जिम कार्बेट नेशनल पार्क समेत प्रदेश में मौजूद विभिन्न ट्रेकिंग रूटों पर भी पर्यटकों की खासी आमद दिख रही है। गंगा व यमुना में राफ्टिंग, क्याकिंग व कैंपिंग जैसी साहसिक पर्यटन का आंनद उठाने के लिए भी पर्यटक खासी संख्या में देश-विदेश से पहुंच रहे हैं।
23 मई तक चारधाम यात्रा का रुझाान
धाम यात्रियों की संख्या
गंगोत्री 77514
यमुनोत्री 75620
बदरीनाथ 160522
केदारनाथ 79406
कुल 393062
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सुखद यात्रा को सभी इंतजाम चाक-चौबंद
-जीएमवीएन के 89 पर्यटक आवास गृह आधुनिक यात्री सुविधाओं से लैस
-संयुक्त रोटेशन ने चारधाम यात्रा के लिए 3300 बसों का बेड़ा तैनात किया
देहरादून, चारधाम यात्रा व पर्यटक सीजन के मद्देनजर गढ़वाल मंडल विकास निगम ने जहां अपने पर्यटक आवास गृहों को आधुनिक यात्री सुविधाओं से लैस किया है, वहीं अपने परिवहन बेड़े में दो नई एसी बसें व पांच नए एसी टैम्पो ट्रैवलर्स शामिल किए हैं। वहीं, संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति ने खासतौर पर चारधाम यात्रा के लिए 3300 बसों का बेड़ा तैयार किया है। साथ ही, चालक-परिचालकों को बेहतर यात्री सुविधाएं मुहैया कराने के लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
पहाड़ी सूबे की अर्थव्यवस्था में चारधाम यात्रा व पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है। यही कारण है, कि चारधाम यात्रा व पर्यटन व्यवसाय से जुड़ी संस्थाएं वर्ष भर टूरिस्ट सीजन की तैयारी में जुटी रहती हैं। इसी कवायद के तहत गढ़वाल मंडल विकास निगम ने विभिन्न यात्रा मार्गों पर स्थित अपने 89 पर्यटक आवास गृहों को आधुनिक यात्री सुविधाओं से लैस किया है। निगम के महाप्रबंधक (पर्यटन) योगेश पंत बताते हैं कि इनमें से मुख्य मार्गों पर स्थित 12 आवास गृहों का उच्चीकरण किया गया है।
ऊंचाई वाले स्थानों पर मौजूद आवास गृहों में आक्सीजन सिलेंडर व अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं। देश के विभिन्न शहरों में यात्रा बुकिंग सेंटर खोले गये हैं, जिनमें ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है। निगम के परिवहन बेड़े में अब तक 20 बसें, 10 एसी टाटा सूमो, चार क्वालिस व एक अंबेसडर कार शामिल थी। जबकि इस बार दो एसी बसें व पांच टैम्पो ट्रैवलर्स परिवहन बेड़े में नए शामिल किए गए हैं।
चारधाम यात्रा के संचालन से जुड़ी संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति ने इस बार 3300 बसों का बेड़ा चारधाम यात्रा के लिए तैनात किया है। इनमें 350 पुशबैक डीलक्स बसें व 25 वातानुकूलित बसें भी शामिल हैं। समिति के अध्यक्ष संजय शास्त्री का कहना है कि तीर्थयात्रियों को सुविधाजनक व आरामदेह यात्रा कराना ही समिति का प्रमुख उद्देश्य है। इसके लिए चालक-परिचालकों को बाकायदा नियमित प्रशिक्षण दिया जा रहा है। साथ ही, यात्रा मार्गों पर पडऩे वाले टूरिस्ट स्पॉट व पौराणिक महत्व के स्थानों के बारे में भी यात्रियों को जानकारी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है।
गढ़वाल विवि: अब सीधे नहीं होंगे प्रवेश
-गढ़वाल विवि के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए अब होगी लिखित परीक्षा
-विवि के केंद्रीय विवि बनने पर लिया गया यह निर्णय
-श्रीनगर गढ़वाल, देहरादून व दिल्ली में होंगे परीक्षा केंद्र
श्रीनगर गढ़वाल, जागरण कार्यालय: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि में संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए अब छात्रों को सीधे प्रवेश की सुविधा नहीं मिलेगी। इसकी बजाय अब इन पाठ्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी। गढ़वाल विवि प्रशासन ने विवि को केंद्रीय दर्जा मिलने पर यह निर्णय लिया है। परीक्षा के लिए श्रीनगर गढ़वाल, देहरादून व दिल्ली में परीक्षा केंद्र स्थापित किए जाएंगे।
सोमवार को विवि के कुलपति प्रो. श्रीकृष्ण सिंह की अध्यक्षता में संपन्न हाईपावर कमेटी की बैठक में यह निर्णय लिए गए। कुलसचिव एचबी थपलियाल ने बताया कि केंद्रीय विवि का पहला सत्र जुलाई माह से शुरू हो रहा है। इसके तहत बीए, एमए, बीएससी और एमएससी में विगत सालों की भांति ही प्रवेश प्रक्रिया रहेगी, जबकि मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म, रिमोटसेंसिंग, बीपीएड, योगा, माइक्रोबायोलाजी, इनवायरमेंटल इकोनॉमिक्स, पीजी डिप्लोमा इन टूरिज्म और ह्यूमन राइट्स जैसे पाठ्यक्रमों में लिखित परीक्षा के आधार पर ही प्रवेश दिया जाएगा। अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षार्थी इस लिखित परीक्षा में शामिल हो सकेंगे। इसके लिए आगामी 19 जुलाई को श्रीनगर, देहरादून और दिल्ली में विवि की ओर से बनाए गए परीक्षा केन्द्रों में यह लिखित परीक्षा होगी।
Tuesday, 26 May 2009
कुमाऊं में लोक कला एवं संस्कृति का सुधलेवा कोई नहीं
नैनीताल लोक संस्कृति एवं कला के क्षेत्र में तमाम मंचों पर सफलता के झंडे गाड़ चुके कुमाऊं में लोक कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रति सरकारी उदासीनता लोक कलाकारों का उत्साह ठंडा कर रही है। शासन की उदासीनता का आलम यह है कि बीते वित्तीय वर्ष कुमाऊं मंडल में जिला योजना के तहत अनुमोदित धनराशि में से एक पाई भी आवंटित नहीं हो सका। विभाग के अधिकांश दफ्तर प्रभारी व्यवस्था के कारण संचालित हो रहे हैं। राज्य में कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में असीम संभावनाएं छिपी हैं। प्रख्यात लोक गायक गोपाल बाबू गोस्वामी, हीरा सिंह राणा, कबूतरी देवी, ललित मोहन जोशी, प्रकाश रावत जैसे लोक कलाकार कुमाऊं की संस्कृति के वाहक बने हैं। इन कलाकारों ने अपने दम पर सफलता की इबारत लिखी है। इसके अलावा पंजीकृत व गैर पंजीकृत सांस्कृतिक दल कुमाऊं की विविध सांस्कृतिक छटा का प्रचार कर रहे हैं, लेकिन शासन का लोक संस्कृति एवं कला के संरक्षण व संवर्धन के प्रति रवैया सकारात्मक नहीं दिखाई देता। इसकी बानगी सरकारी आंकड़े बयां कर रहे हैं। मंडल के सभी छह जिलों में वित्तीय वर्ष 2008-09 की जिला योजना के तहत कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा 30.61 लाख की धनराशि अनुमोदित की गई, लेकिन वित्तीय वर्ष खत्म होने के बाद भी यह राशि अवमुक्त नहीं हुई। विभाग के अधीन अभिलेखागार, पुरातत्व, संग्रहालय, संगीत केंद्र व लोक कला संस्थान जैसी इकाईयां कार्यरत हैं। इनके माध्यम से राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय महत्व के अवसरों पर पंजीकृत सांस्कृतिक दलों को कार्यक्रम आवंटित किए जाते हैं। उधर कई नामी सांस्कृतिक दल सरकारी सुविधाओं के बगैर लोक कलाकारों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान कर रहे हैं। तमाम गैर सरकारी संगठन भी संस्कृति एवं लोक कला के क्षेत्र में कार्यरत हैं। बावजूद इसके कुमाऊं में सांस्कृतिक आयोजनों के प्रति उदासीनता बनी है।
Monday, 25 May 2009
फिर वही खेल
भाजपा को उत्तराखंड में सत्तासीन हुए दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन नेतृत्व को लेकर एक गुट ने जो खेल शुरू किया है, वह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। हर बार भाजपा के दिग्गज नये-नये सवालों के साथ दिल्ली दरबार में पहुंच जाते हैं और फिर दिल्ली-देहरादून के बीच दौड़ शुरू हो जाती है। अनुशासन को तार-तार करते हुए गुटीय नेता एक-दूसरे की शिकायत के साथ ही अपने पक्ष से हाईकमान को अवगत कराते हैं। जाने-अनजाने हाईकमान की प्रथम पंक्ति के नेता भी इस खेल का हिस्सा बनते हैैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी वही परिदृश्य उभरा, जिसकी उम्मीद थी। हार के कारणों पर चिंतन-मनन के बजाए नेतृत्व को लेकर पार्टी के एक गुट ने मोर्चा खोल दिया। राष्ट्रीय नेतृत्व का ध्यान देश में मिली करारी हार से हटकर उत्तराखंड पर केंद्रित हो गया। दिल्ली के गलियारों में इस छोटे राज्य का भाजपा दिग्गजों ने खूब उपहास किया। साफ है कि पार्टी के चंद नेताओं की महत्वाकांक्षा अब उत्तराखंड पर भारी पडऩे लगी है। जनता ने सबक सिखाने की कोशिश की, लेकिन भाजपा नेता यह समझाने को तैयार नहीं हैं कि उनकी हार का कारण गुटबाजी रही। भाजपा हाईकमान को यह चिंता भी नहीं है कि उनके नेताओं की अकारण राजनीति के कारण राज्य की जनता को कितना नुकसान उठाना पड़ रहा है। भाजपा दिग्गजों के परिप्रेक्ष्य में किसी भी तरह के निर्णय का अधिकार राष्ट्रीय नेतृत्व को है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उत्तराखंड को भाजपा की गुटबाजी की प्रयोग भूमि बना दिया जाए। वरिष्ठ नेताओं को चाहिए कि गुटबाजी में लिप्त रहकर पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले नेताओं की पहचान करें। चुनाव में भितरघात करने वालों पर अनुशासन का शिकंजा कसे। दिल्ली जाकर कानाफूसी करने वाले नेताओं पर अंकुश लगाएं। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो भाजपा को राज्य में और नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। नेतृत्व परिवर्तन के मसले पर सख्त स्टैंड नहीं लिया गया तो भविष्य में सभी नेता अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए यह रास्ता अख्तियार करते रहेंगे। संभले नहीं तो यह खेल भाजपा को काफी महंगा पड़ेगा।
कुमाऊं में तीन ओपन हार्ट सर्जरी कर रचा इतिहास
-डीना अस्पताल में तीन निर्धनों की नि:शुल्क हुई शल्य क्रिया
-कल की चिंता छोड़ वर्तमान में जीना सीखें, स्वस्थ रहेंगे: डा.यादव
अल्मोड़ा: नगर के डीना अस्पताल में तीन ओपन हार्ट सर्जरी की सफलता ने शनिवार को एक नए इतिहास की रचना कर डाली। यह पहला अवसर है जब उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में पिछड़ा माने जाने वाले नगर के समीपवर्ती डीनापानी ग्राम में बने डीना अस्पताल में चीफ कार्डियक सर्जन डा.ओपी यादव ने तीन निर्धनों की ओपन हार्ट सर्जरी की।
नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट नई दिल्ली व डीना अस्पताल के आपसी सहयोग से निर्धन हृदय रोगियों के लिए शल्य चिकित्सा नि:शुल्क की गई। शुक्रवार व शनिवार को तीन हृदय रोगियों को शल्य चिकित्सा दी गई। जिसमें पिथौरागढ़ जनपद के ग्राम पिल्खा, पोस्ट नैनोली की 20 वर्षीय सोनिया, पिथौरागढ़ की 31 वर्षीय मीना देवी, पिथौरागढ़ सिल्थाम के दुकानदार 36 वर्षीय हेमंत सिंह टोलिया शामिल हैं।
इनमें दो रोगियों के हृदय में पैदायशी छेद व एक का वाल्व खराब था। पैदायशी छेद को भरा गया और खराब वाल्व को बदला गया। उन्होंने बताया कि वाल्व अमेरिका से मंगाया गया था। दिल्ली से आए चीफ कार्डियक सर्जन डा.ओपी यादव ने बताया कि सामान्यत: दिल में छेद की सर्जरी में एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है। अमेरिकन वाल्व लगाने का खर्चा ढाई से तीन लाख आता है। जो एक गरीब साधनहीन के लिए खर्च करना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि दिल्ली से ओपन हार्ट सर्जरी के लिए 12 मशीनें लायी गयी थीं। केवल इस आपरेशन के लिए ही यह मशीनें यहां लायी गयी थीं।
ओपन हार्ट सर्जरी में 4 से साढ़े चार घंटे का समय लगता है। 54 वर्षीय डा.ओपी यादव ने बताया कि अब तक वह 10 हजार ओपन हार्ट सर्जरी कर चुके हैं। आपरेशन से पहले वह इसकी सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को वर्तमान में जीना सीखना चाहिए, गए कल व आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हृदय रोग तनाव, धूम्रपान व नशे जैसी प्रवृत्ति से होता है। इसलिए इनसे दूर रहना चाहिए।
उत्तराखंड को मान्यता न दिए जाने के मामले में महाराष्ट्र सूचना आयोग ने उठाया कदम
बीसीसीआई को सूचना आयोग का नोटिस
-देहरादून निवासी राजू गुसाईं ने बोर्ड से मांगी थी इस संबंध में सूचनाएं
महाराष्ट्र सूचना आयोग ने सूचनाधिकार के एक मामले में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को तलब किया है। दून निवासी राजू गुसाईं की शिकायत पर आयोग ने यह कदम उठाया है। श्री गुसाईं ने शिकायत की थी कि बीसीसीआई ने उन्हें उत्तराखंड को मान्यता को लेकर मांगी गई सूचनाएं मुहैया नहीं कराईं। मामले की सुनवाई एक जून को होगी।
देहरादून के दीपनगर निवासी राजू गुसाईं ने मार्च में सूचनाधिकार कानून के तहत बीसीसीआई से उत्तराखंड को अब तक मान्यता न दिए जाने को लेकर चार बिंदुओं पर सूचनाएं मांगी थीं। बीसीसीआई से एक माह तक कोई जवाब न मिलने पर श्री गुसाईं ने मई के पहले सप्ताह में महाराष्ट्र सूचना आयोग में शिकायत दर्ज कराई। आयोग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए बोर्ड से जवाब तलब किया है।
राजू गुसाईं ने सूचनाधिकार कानून के तहत बीसीसीआई से पूछा था कि बोर्ड ने जब सूबे को मान्यता देने का कार्य वर्किंग कमेटी के सुपुर्द कर दिया था तो कितनी बार कमेटी ने इस विषय पर विचार विमर्श किया?। दूसरा यह कि इस बाबत बोर्ड की टीम ने उत्तराखंड का दौरा कर विभिन्न एसोसिएशनों के बारे में सूचनाएं क्यों नहीं जुटाईं? कितने समय में बीसीसीआई उत्तराखंड को मान्यता देने का मामला फाइनल करेगा और बीसीसीआई ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपने लोक सूचनाधिकारी के बारे में जानकारी क्यों मुहैया नहीं कराई है?।
गौरतलब है विगत वर्ष सितंबर में बीसीसीआई की एजीएम में छत्तीसगढ़ क्रिकेट एसोसिएशन व बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता प्रदान की गई थी। इसके अलावा मेघालय, नागालैंड व अरुणाचल प्रदेश को मान्यता प्राप्त सदस्य बनाया गया था, लेकिन उत्तराखंड में मान्यता प्राप्त करने को कई एसोसिएशनों के बीच चल रही खींचतान के चलते मामला वर्किंग कमेटी के हवाले कर दिया गया। इस कमेटी में बोर्ड के अध्यक्ष शशांक मनोहर, एन. श्रीनिवासन, अरुण जेटली, संजय जगदाले, शिवलाल यादव व ललित मोदी सहित 23 सदस्य है।
-एवरेस्ट दल के सदस्यों व मनीष पांडे को एक-एक लाख
देहरादूनमुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी ने एनआईएम, उत्तरकाशी के एवरेस्ट विजेता दल नायक एमएम मंसूर व उत्तराखंड के नौ सदस्यों को एक-एक लाख रुपये देने की घोषणा की है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल मैच में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले राज्य के उदीयमान क्रिकेटर मनीष पांडे को भी एक लाख रुपये देने की घोषणा की है।
एवरेस्ट अभियान दल नायक एमएम मंसूर को मुख्यमंत्री ने बधाई भी दी। उन्होंने दल में शामिल उत्तराखंड के नौ सदस्यों सूबेदार सतल सिंह, नायब सूबेदार खुशहाल सिंह राणा, नायब सूबेदार दशरथ सिंह रावत, इंस्पेक्टर लवराज सिंह धर्मशक्तू, विशेश्वर सेमवाल, विनोद गुसाईं व कविता बुड़ाकोटी को एक-एक लाख रुपये देने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि एनआईएम के दल ने एवरेस्ट पर विजय हासिल कर राज्य का नाम रोशन किया है। उन्होंने देश के उभरते प्रतिभाशाली क्रिकेटर मनीष पांडे को आईपीएल में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए बधाई दी।
-रिंगाल बचाएगा दुर्लभ कस्तूरी मृगों को
-ओएनजीसी दे रहा तीन करोड़ 72 लाख रुपये की मदद
-अब तक सूबे में 3 लाख 37 हजार 5 सौ रिंगाल के पौधे रोपे गए
विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए राज्य पशु कस्तूरी मृग को रिंगाल के जरिए बचाया जाएगा। उत्तराखंड बैैंबू बोर्ड ने इसके लिए सात संरक्षित क्षेत्रों में अब तक ओएनजीसी की वित्तीय मदद से 3 लाख 37 हजार 5 सौ रिंगाल के पौधे लगाए हैैं। ओएनजीसी इस परियोजना के लिए 3 करोड़ 72 लाख रुपये की मदद दे रहा है।
मालूम हो कि कस्तूरी मृग प्रदेश के सात संरक्षित क्षेत्रों गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद पशु विहार, केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य, नंदादेवी नेशनल पार्क, फूलों की घाटी, बिन्सर अभयारण्य और अस्कोट अभयारण्य में पाया जाता है। केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ धर्मेंद्र पांडे के मुताबिक उत्तराखंड में मात्र 279 कस्तूरी मृग ही बचे हैैं। इनमें से 137 संरक्षित क्षेत्रों में हैैं। 1982 में उप्र शासन के दौर में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए वन विभाग ने चमोली की मंडल घाटी के कांचुला खरक में 20 हेक्टेयर क्षेत्र में तीन नर व चार मादाओं के साथ एक कस्तूरी प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया था। शुरुआत में इसका लाभ भी मिला और कस्तूरी मृगों की संख्या भी बढ़ी। 2004 में यहां से चार कस्तूरी दार्जिलिंग के उच्च शिखरीय चिडिय़ाघर भी भेजे गए। लेकिन बाद में दो दशकों में 42 कस्तूरी मृग अज्ञात वजहों से मौत के शिकार हो गए। पैसे व संसाधन की कमी की वजह से प्रजनन केंद्र भी बंद हो गया। दून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, बरेली के आईवीआरआई और पंतनगर विवि में कस्तूरी मृगों के परीक्षण से पता चला कि ज्यादातर हिरन पेट की बीमारी, निमोनिया और हृदयाघात की वजह से मौत का शिकार बने।
धर्मेंद्र पांडे का कहना है कि बांस की ही प्रजाति रिंगाल कस्तूरी मृगों की रिहाइश का अभिन्न अंग है। जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय की हिमरेखा ऊपर खिसक रही है तो कस्तूरी की रिहाइश से रिंगाल गायब हो रहा है। रिहाइश का मुफीद न रहना कस्तूरी मृगों के लिए मुसीबत बन रहा है। उनके लिए मुफीद रिहाइश बनाने के लिए पांच साल में 730 हेक्टेयर वन भूमि में रिंगाल लगाया जाना है। नंदा देवी बायोस्फेयर में 230 हेक्टेयर, केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग में 250 हेक्टेयर व पिथौरागढ़ वन प्रभाग में 250 हेक्टेयर वनभूमि में रिंगाल लगेगा। पिछले साल तक नंदा देवी बायोस्फेयर में 75 व केदारनाथ वन्य जीव प्र्रभाग में 60 हेक्टेयर मिलाकर कुल 135 हेक्टेयर क्षेत्र में रिंगाल लगाया जा चुका है जबकि लक्ष्य 120 हेक्टेयर का ही था। प्रोजेक्ट में अब पिथौरागढ़ के शंखधुरा, हरकोट, लटि पांगती वन पंचायत और सुरमोली, सुरिंग रिजर्व फॉरेस्ट का 250 हेक्टेयर क्षेत्र और जोड़ा गया है। उत्तराखंड बैैंबू बोर्ड के अध्यक्ष एसटीएस लेप्चा के मुताबिक रिंगाल बहुल क्षेत्र कस्तूरी मृग के लिए ही नहीं मोनाल के लिए बहुत अच्छा प्राकृतिक आवास है।
-ढाई लाख कर चुके बदरी-केदार के दर्शन
-कपाट खुलने के तीन सप्ताह में बदरी-केदार पहुंचे ढाई लाख तीर्थयात्री
-चढ़ावे में मंदिर समिति को प्राप्त हुए डेढ़ करोड़
श्रीनगर गढ़वाल, पाट खुलने के तीन सप्ताह के दौरान अब तक श्री बदरीनाथ व श्री केदारनाथ धामों के दर्शन के लिए कुल ढाई लाख श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। हालांकि, लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार शुरुआती दिनों में तीर्थयात्रियों की आवक में कमी देखी जा रही थी, लेकिन चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद से इसने तेजी पकड़ ली है। अब तक बदरी केदार मंदिर समिति को करीब डेढ़ करोड़ रुपये चढ़ावा राशि के रूप में प्राप्त हो चुके हैं।
यात्रा सीजन के शुरुआती दिनों में तीर्थयात्रियों की कम संख्या के पहुंचने से मंदिर समिति व स्थानीय व्यापारियों को चिंता सताने लगी थी। चुनाव प्रक्रिया को इसकी मुख्य वजह माना जा रहा था। इस बीच केदारनाथ यात्रा रूट पर घोड़े-खच्चरों में फैली महामारी ने भी परेशानी और बढ़ा दी थी, लेकिन धीरे-धीरे तीर्थयात्री इन धामों का रुख करने लगे हैं। बदरी-केदार धामों के कपाट खुले करीब तीन हफ्ते बीत चुके हैं और इतने दिनों में यहां ढाई लाख श्रद्धालु दर्शनों के लाभ ले चुके हैं। बदरीनाथ धाम इस लिहाज से आगे है कि यहां अब तक एक लाख 75 हजार यात्री आ चुके हैं, जबकि केदारनाथ में 75 हजार भक्त पहुंचे। यात्रियों की आवक में आ रही तेजी को देखते हुए मंदिर समति व स्थानीय व्यापारियों की भी बांछें खिल गई हैं। जानकारी के मुताबिक मंदिर समिति को अब तक चढ़ावे के रूप में डेढ़ करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हो चुकी है।
खेतों में खेल कर ही शिखर पर पहुंचा मनीष
शतक वीर मनी के गांव में जश्न का माहौल
बागेश्वर
आईपीएल-टू के 20-20 में दक्षिण अफ्रीका में धूम मचाने वाले एकमात्र भारतीय शतक वीर मनीष पांडेय ने बागेश्वर के दूरस्थ ग्राम भीड़ी (दफौट) के गेहूं के खेतों से ही क्रिकेट का अपना सफर शुरू किया था। बचपन में मनीष गांव के खेतों में क्रिकेट खेला करता था। भीड़ी के इस लाल की सफलता पर पूरे गांव में जश्न का माहौल है।
साथियों के बीच मनी के नाम से मशहूर मनीष को क्रिकेट का जुनून था। मनीष के चाचा पूर्व सैनिक मोहन चंद्र पांडेय व चाची खीमा देवी बताती हैैं कि मनीष बचपन में घर के पास ही गेहूं के खेत में खेला करता था। पुरानी यादों को ताजा करते हुए उन्होंने बताया कि मनीष के पिता कृष्णानंद पांडेय जब अवकाश में घर आते थे तो वह भी बच्चों के साथ ही क्रिकेट खेला करते थे। मनीष के पैतृक मकान में वर्तमान में कोई रहता नहीं है, लेकिन उसके चाचा व ताऊ ने विश्वास व्यक्त किया कि मनीष के पापा आकर जरूर इस मकान की मरम्मत कराएंगे तथा यहीं रहेंगे। मनीष की इस उपलब्धि पर गांव सहित पूरे इलाके में जश्न का माहौल है।
चीड़ के बल्ले से खेलता था मनी
बागेश्वर। क्रिकेट जगत का स्टार मनी बचपन में चीड़ के बल्ले से खेला करता था। मनीष के चाचा माधवानंद पांडे, हीरा बल्लभ पांडे, गिरीश चंद्र, मोहन चंद्र आदि ने बताया कि बचपन में मनीष घर के आस-पास ही घर में ही बनाये गये चीड़ के बल्ले से क्रिकेट खेला करता था। परिजनों ने उन खेतों को दिखाते हुए कहा कि यही वह खेत हैं, जहां से मनीष ने क्रिकेट का सफर शुरू किया था।
Sunday, 24 May 2009
रामपुर तिराहा कांड
सीबीआई को केस चलाने की दी थी अनुमति
विशेष अदालत में गृह सचिव ने की अनुमति देने की पुष्टि
मुजफ्फरनगर, चर्चित रामपुर तिराहा कांड के सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर मामले में तत्कालीन प्रमुख गृह सचिव हरिश्चंद्र गुप्ता की विशेष सीबीआई अदालत में गवाही हुई। उन्होंने अपनी गवाही में सीबीआई को आरोपियों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति देने की पुष्टि की है।
अलग राज्य उत्तराखंड की मांग को लेकर गांधी जयंती पर धरना प्रदर्शन करने जा रहे उत्तराखंडियों को एक अक्टूबर 1994 की रात मुजफ्फरनगर में रामपुर तिराहा के पास स्थानीय प्रशासन ने आगे बढऩे से रोक दिया था। शासन के आदेश पर हुई इस कार्रवाई का बसों में सवार उत्तराखंडियों ने जब विरोध किया तो पुलिस की ओर से जबरदस्त फायरिंग हुई, जिसमें कई उत्तराखंडी मारे गए और कई घायल हुए। मुजफ्फरनगर पुलिस पर उत्तराखंडी महिलाओं के साथ दुराचार करने के भी आरोप लगे थे। इतना ही नहीं, पुलिस ने अपनी कार्रवाई को वैधानिक रूप देने के लिए उत्तराखंडियों के खिलाफ मुजफ्फरनगर के छपार व अन्य थानों में कई धाराओं में मुकदमा भी दर्ज कर दिया था।
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने पूरे प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए 12 जनवरी 1995 को केंद्रीय जांच ब्यूरो को इसकी जांच सौंपी थी। सीबीआई की जांच में उत्तराखंडियों पर लगाए गए तमाम आरोप फर्जी पाए गए। इस संबंध में हाईकोर्ट के आदेश पर मुजफ्फरनगर में विशेष सीबीआई अदालत का गठन हुआ और सीबीआई की ओर से तीन वाद सीबीआई बनाम एससी मिश्रा व अन्य (खतौली के कोतवाल एससी मिश्रा पर उत्तराखंडी युवक राजेश नेगी की लाश छिपाने का आरोप), सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर व अन्य (झिांझााना के एसओ ब्रजकिशोर पर फर्जी मुकदमा दर्ज करने के लिए सरकारी कागजों में हेराफेरी करने व फर्जी शस्त्र बरामदगी के आरोप) और सीबीआई बनाम मोती सिंह (नगर कोतवाली के प्रभारी मोती सिंह पर कागजों में हेराफेरी करने के आरोप) दायर किए गए।
तीनों मामले विशेष सीबीआई अदालत एसीजेएम प्रथम मुजफ्फरनगर की अदालत में विचाराधीन हैं। गुरुवार को सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर मामले में तत्कालीन प्रमुख गृह सचिव हरिश्चंद्र गुप्ता की गवाही हुई। झिांझााना थाने के तत्कालीन एसओ ब्रजकिशोर सहित चार आरोपियों (सभी पुलिसकर्मी) के खिलाफ गृह सचिव ने ही सीबीआई को आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी।
बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि गुरुवार को हुई गवाही में उन्होंने कोर्ट में पूर्व के कागजात का अवलोकन करने के बाद अपने द्वारा दी गई अनुमति की पुष्टि कर दी। अब इस प्रकरण की अगली सुनवाई दो जून को होगी। बाकी दोनों मामलों में 25 मई की तिथि लगी हुई है।
हाजिर रहा प्रशासनिक अमला
मुजफ्फरनगर : हरिश्चंद्र गुप्ता फरवरी 1995 से नवंबर 1995 तक उत्तर प्रदेश सरकार में प्रमुख सचिव गृह के पद पर तैनात रहे। उसके बाद उनकी केंद्रीय नियुक्त हुई और वे भारत सरकार के कोयला विभाग में सचिव के पद पर पहुंच गए। सूत्रों के अनुसार अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैैं। गुरुवार को मुजफ्फरनगर में आगमन के दौरान प्रशासन के कुछ अधिकारी उनके स्वागत में लगे रहे।
Thursday, 21 May 2009
फूलों की घाटी में खिल उठे फूल
एक जून से पर्यटक कर सकेंगे इस घाटी के दीदार
-घाटी से एक किमी पहले ग्लेशियर से क्षतिग्र्रस्त है मार्ग
बदरीनाथ, जागरण कार्यालय: विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी में विभिन्न किस्म के फूल खिलने लगे हैं। पर्यटक एक जून से इस घाटी के दीदार कर सकेंगे।
विश्व धरोहर फूलों की घाटी में सैकड़ों किस्म के फूलों की प्रजातियां प्रकृति की अनूठी देन हैं। हर वर्ष हजारों की संख्या में देश और विदेश से पर्यटक फूलों की घाटी में पहुंचकर प्राकृतिक फूलों को देख प्रकृति के इस अनमोल उपहार का आंनद उठाते हैं। इस क्षेत्र में कई दुर्लभ जीव जन्तु भी विचरण करते रहते हैं। इनमें मुख्य रूप से थार, गुरड़, रैडथोप्स, लैपर्ड, नीलगाय, भालू, कस्तूरा मृग सहित कई दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियां भी शामिल हैं। वन क्षेत्राधिकारी थान सिंह राणा ने बताया कि अभी फूलों की घाटी से एक किलोमीटर पहले ग्लेशियर से मार्ग टूटा है। इसे ठीक करने के लिए कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। राष्ट्रीय पार्क फूलों की घाटी के लिए विभागीय अग्रिम दल इस सप्ताह भेजा जाएगा, जो घांघरिया में कैंप करेगा। गोविन्द घाट से घांघरिया तक 13 किलोमीटर की यात्रा पैदल, घोड़े तथा पालकी, कंडी आदि साधनों से भी की जा सकती है। इसके आगे फूलों की घाटी में घोड़, खच्चर या किसी भी प्रकार के पालतू जानवरों के जाने पर वर्षों पहले से ही पूर्ण रूप से प्रतिबंध है।का कद अगर बड़ा है तो उसे राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बना दिया जाता है।
अब मुद्दा 'सत्ता की कुर्सी' का
उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर कांग्र्रेसियों की जीत के बाद उठा अहम सवाल
हरीश, सतपाल और बहुगुणा के बीच कड़ा मुकाबला
दस जनपथ तक पंहुच बनाने की कवायदें हुईं तेज
पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की राय भी निभाएगी अहम रोल
देवभूमि उत्तराखंड में इस बार लोकसभा की पांचों सीटें जीत कर कांग्र्रेस अपना परचम लहरा चुकी है। अब मुद्दा 'सत्ता की कुर्सी' का उठ रहा है। चुनाव में दूसरों को पटखनी देकर सीट कब्जा ली। अब कुर्सी के लिए अपनों से ही मुकाबला करना पड़ रहा है। माना यही जा रहा है कि दस जनपथ तक पहुंच बनाने में सफल होने वाले के हिस्से में ही मंत्री पद जाएगा।
दो माह की मशक्कत के बाद कांग्र्रेसी दिग्गजों ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को पटखनी देने में सफलता हासिल कर ली पर अब नई जंग अपनों से ही करनी पड़ रही है। दरअसल, मामला केंद्र सरकार में मंत्री पद का जो है। कांग्र्रेस के प्रदर्शन से यह तो साफ हो गया है कि इस बार देवभूमि की उपेक्षा पार्टी हाईकमान शायद ही कर पाए। पार्टी सूत्रों की मानें को सूबे के हिस्से में एक मंत्री पद आ सकता है।
अब पद एक है तो दावेदार चार। इनमें हरीश रावत, केसी सिंह बाबा, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा शामिल है। पांचवें सांसद प्रदीप टम्टा केंद्र की राजनीति के लिहाज से अभी पके नहीं है। बात दावेदारी की करें तो हरीश रावत का सियासी कद खासा बड़ा है। इस बार भी उन्होंने हरिद्वार सीट पर रिकार्ड मतों से कब्जा किया है। 1991 से पहले वे तीन बार सांसद रह चुके हैैं। पांच साल तक सेवादल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहने के दौरान केंद्रीय नेताओं से उनके संपर्क और भी गहरे रहे। बताया जा रहा है कि दिल्ली में उनके संपर्क दस जनपथ तक पैरवी में जुटे हैैं। केसी बाबा दो बार विधायक रह चुके हैैं और केसी पंत के बाद वे पहले सांसद हैैं, जो नैनीताल सीट से लगातार दूसरी बार जीते हैैं। यह बात उनके पक्ष में जाती है। टिहरी से जीते विजय बहुगुणा ने पहले तो उप चुनाव जीता और अब दूसरी बार सांसद बने हैं। स्व.हेमवती नंदन बहुगुणा का पुत्र होने का उन्हें लाभ मिल सकता है तो बहन यूपी कांग्र्रेस की अध्यक्षा रीता बहुगुणा उनके लिए दस जनपथ के चक्कर लगा रही हैैं।
सतपाल महाराज ने भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी पौड़ी संसदीय सीट जीती है। दस जनपथ के साथ उनके संपर्क किसी से छिपे नहीं हैैं। फिर 1996 में वे केंद्र सरकार में राज्य मंत्री रह भी चुके हैैं।
एक बात और, कुर्सी का यह खेल भले ही दिल्ली में खेला जा रहा है पर इसमें प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका भी अहम रहने वाली है। सूबे की सभी पांच सीटों पर पार्टी का परचम फहरा कर प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने दिल्ली दरबार में अपने नंबर बढ़ा लिए हैैं। ऐसे में सूबे के मामल में उनकी राय को भी अहमियत दिया जाना तय माना जा रहा है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चुनाव जीते दिग्गज इस समय भी एक जंग लड़ रहे हैैं। खास बात यह है कि इस बार यह जंग 'कुर्सी' के लिए है और मुकाबले में अपने ही हैैं। देखना होगा कि केंद्र की सत्ता का सुख किसे नसीब होता है।
इंसेट
पहली बार तो राज्य मंत्री ही
देहरादून: कांग्र्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पार्टी की परंपरा है कि सांसद को पहली बार राज्य मंत्री ही बनाया जाता है। गांधी परिवार की बात छोड़ दी जाए तो शायद ही कोई ऐसा इतिहास मिले जिसमें किसी को पहली बार ही कैबिनेट में शामिल किया गया हो। हां, नेता का कद अगर बड़ा है तो उसे राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बना दिया जाता है।
Wednesday, 20 May 2009
इस चुनाऊ में देखकर ,
इस चुनाऊ में देखकर , समझ में है आता
पड़े है जिसपर जिसे जूते , है वही जीता
अडवानी पर पडा न जूता, पडा है खडाऊ
इसीलिए तो जीत न पाया पी एम् वेटिग बुडाऊ !
परशरर गौड़
Tuesday, 19 May 2009
प्रबंधन कोटे की मेडिकल प्रवेश परीक्षा २३ मई को
एमबीबीएस ६५, बीडीएस १२० और बीएएमएस की ६० सीटें
देहरादून।
उ8ाराखंड के विभिन्न मेडिकल संस्थानों की मैनेजमेंट कोटे की सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा २३ मई को अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जा रही है। इस परीक्षा में तकरीबन ५००० अ5यर्थी शामिल हो रहे हैं। उ8ाराखंड के साथ ही देश के कई और राज्यों में भी इस परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है।परीक्षा के केंद्र चंडीगढ़, देहरादून, दिल्ली, जयपुर, लखनऊ एवं वाराणसी में निर्धारित किए गए हैं। भोपाल और लुधियाना में भी केंद्र बनाया गया था, लेकिन परीक्षार्थी कम होने के कारण उन्हें दिल्ली केंद्र दे दिया गया है। इस परीक्षा के माध्यम से श्री गुरु राम राय मेडिकल कालेज की एमबीबीएस की ६५ सीटों, सीमा डेंटल कालेज, ऋषिकेश की बीडीएस की ६०, नारायण स्वामी डेंटल कालेज की बीडीएस की ३०, उ8ारांचल डेंटल कालेज की बीडीएस की ३०, उ8ारांचल आयुर्वेदिक कालेज की बीएएमएस की ३० और हिमालयी आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज, ऋषिकेश की बीएएमएस की ३० सीटों के साथ ही चंदोला हो6योपैथी मेडिकल कालेज रुद्रपुर की बीएचएमएस की ३० सीटों पर प्रवेश किया जाना है।
इसके अतिरि1त पातंजलि योग पीठ, हरिद्वार द्वारा स्थापित आयुवेर्दिक कालेज को भी मान्यता उपरांत शामिल करने पर आयुर्वेद पाठ्यक्रम की ३० सीटें और बढ़ सकती हैं। उ8ारांचल काउंसिल ऑफ एंट्रेंस एग्जामिनेशन के अध्यक्ष डॉ. एके कांबोज के मुताबिक सभी परीक्षार्थियों को प्रवेश पत्र भेज दिया गया है। जिन छात्रों को प्रवेश पत्र प्राप्त नहीं हुए हैं, वे ड4लूड4लूड4लू.यूसीईईइंडिया.ओआरजी से डाउनलोड कर सकते हैं।
विशेष औद्योगिक पैकेज न बढऩे से अटके ४० हजार करोड़
पैसा नहीं लगा रहे हैं उद्यमी देहरादून।- प्रदेश में नए उद्योगों के लिए पैसा लगाने वालों की सं2या में इजाफा हुआ है। अब ईओआई (निवेश की इच्छा) ४० हजार करोड़ तक जा पहुंची है, पर निवेश को लेकर अभी संशय है। कारण विशेष औद्योगिक पैकेज की समय सीमा २०१० तक है जिसमें केवल दस माह ही बचे हैं।विशेष औद्योगिक पैकेज की समय सीमा दस माह मेें ही समाप्प्त हो जाने की आशंका का असर अब उद्योगों पर दिखने लगा है। औद्योगिक निवेश की इच्छा रखने वालों की सं2या में इजाफा हुआ है, पर उद्यमी अब आगे नहीं आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक अभी तक ईआईओ करीब ४० हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। पर परेशानी यह है कि पूंजी का निवेश नहीं हो रहा है। कहा जा रहा है कि केंद्र के विशेष पैकेज की समय सीमा समाप्त जल्द समाप्त होने की आशंका के कारण उद्यमियों की ओर से नए निवेश से बचा जा रहा है। इस मामले को लेकर अब प्रदेश के उद्यमियों की निगाह दिल्ली सरकार पर भी है। उाराखंड के पांच सांसद होने के कारण देवभूमि का वेटेज बढ़ा है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगले दो माह के अंदर आने वाले बजट में ही इस पर तस्वीर साफ हो जाएगी।
सांसदों की साख का भी सवाल- -चुनाव के दौरान लगभग सभी नवनिर्वाचित सांसदों ने प्रदेश के लिए विशेष औद्योगिक पैकेज की समय सीमा बढ़ाने के लिए प्रयास करने का आश्वासन दिया हुआ है। ऐसे में उद्यमियों की निगाह सांसदों पर भी है। सांसद भी इस दबाव को महसूस कर रहे हैं। एक सांसद के मुताबिक सरकार के गठन की औपचारिकता पूरी होने के तुरंत बाद पैकेज बढ़ाने के लिए प्रयास भी शुरू कर दिया जाएगा।
कहां है समस्या--मुसीबत यह है कि पर्वतीय राज्यों को विशेष औद्योगिक पैकेज देने का विरोध यूपी, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्य भी कर रहे हैं। इनका आरोप है कि इस पैकेज के कारण उनकेयहां से उद्योगों का पलायन हो रहा है।
भागीरथी पर बन रही परियोजनाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई
वशेषज्ञों की रिपोर्ट तैयार कराए गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी
-भागीरथी पर बन रही परियोजनाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई
,नैनीताल: भागीरथी नदी पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं के संबंध में दायर जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए हाईकोर्ट ने इस सम्बंध में राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथारिटी को यह मामला संदर्भित करे। अथारिटी इस मामले मेें विशेषज्ञों की रिपोर्ट तैयार कराए कि उक्त जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण कार्य जनहित में जारी रखा जाए अथवा नहीं।
लोहारीनाग पाला व भैरव घाटी स्टेज प्रथम व द्वितीय जल विद्युत परियोजना को लेकर रिलैक द्वारा जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई की। याचिका में कहा गया कि लोहारीनाग पाला जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य से पर्यावरण को खतरा पहुंच रहा है। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके गुप्ता की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथारिटी को इस संवेदनशील मामले को तय करने के लिये संदर्भित करे कि उक्त परियोजनाओं का निर्माण कार्य आगे जारी रखा जाए या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री गुप्ता व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने नेशनल गंगा रिवर बेसिन ऑथोरिटी को भी निर्देश दिए हैं कि वह विशेषज्ञों की रिपोर्ट तैयार करते समय यथासंभव सभी पक्षों को शामिल करे तथा पक्षकारों को भी पक्ष रखने का मौका दे। अथारिटी से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट 4 सप्ताह में राज्य सरकार को देने को कहा गया है।
Monday, 18 May 2009
कांग्रेस को रास आया परिसीमन का गणित
कांग्रेस की जीत के भले ही कई कारण हो, पर एक बड़ा कारण नया परिसीमन भी रहा। नए परिसीमन की तस्वीर कांग्रेस के लिए मुफीद साबित रही। नए परिसीमन में मुस्लिम और दलित मतदाता बाहुल्य सीट रही हरिद्वार में इस बार देहरादून की पर्वतीय मतदाता बाहुल्य विधानसभा जुडऩे से समीकरण बदले है। पौड़ी सीट पर भाजपा का वोट बैंक माना जाने वाला देहरादून नगर हटकर नरेंद्रनगर, देवप्रयाग और नैनीताल जिले से रामनगर विधानसभा जुडऩे से इसका सियासी स्वरूप भी बदल गया है। वहीं टिहरी सीट पर देहरादून नगर का हिस्सा जुडऩे और टिहरी जिले की दो विधानसभा कटने से यहां का सियासी मिजाज भी बदल चुका है। परिसीमन की इस तस्वीर के बाद लोकसभा सीटों का जो नजारा बना है, वह हर तरह से कांग्रेस उ6मीदवारों के पक्ष में रहा है।नतीजों पर गौर करें, तो हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के उ6मीदवार ने हालांकि हरिद्वार में भी काफी बढ़त ली, लेकिन इस सीट पर जुड़े नए हिस्से से उनको भारी वोट मिले। पर्वतीय मूल का उ6मीदवार होने का सीधा लाभ उन्हें इन सीटों से मिला। पौड़ी सीट पर देहरादून महानगर का हिस्सा कटने का आशातीत लाभ सतपाल महाराज को पौड़ी सीट पर मिला, इतिहास गवाह रहा है कि सतपाल महाराज हमेशा देहरादून में पिछड़ते रहे हैं। उन्हें भी सबसे बड़ा लाभ इस सीट पर रामनगर विधानसभा जुडऩे का मिला। रामनगर में मुस्लिम मतदाताओं का एकतरफा वोट उनके पक्ष में रहा। टिहरी सीट पर इस बार देहरादून का हिस्सा जुडऩा विजय बहुगुणा के लिए वरदान रहा। टिहरी और उ8ारकाशी में वोट के लिहाज से नुकसान में रहे बहुगुणा को देहरादून नगर में हर क्षेत्र में बढ़त मिली। इसी बढ़त के चलते वह उ8ारकाशी और टिहरी के अंतर को पाट पाए। कुल मिलाकर परिसीमन का पूरा गणित कम से इस बार, तो कांग्रेस के पक्ष में रहा है।
Sunday, 17 May 2009
नैनीताल से बाबा ने बचदा को हराकर फिर पकड़ी दिल्ली की राह
-अल्मोड़ा में प्रदीप टम्टा ने ढहाया भाजपा का 18 साल पुराना किला
कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कुमाऊं की दोनों सीटें अपनी झाोली में डाल ली हैं। नैनीताल से केसी सिंह बाबा लगातार दूसरी बार विजयी रहे हैं, जबकि अल्मोड़ा सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीनी है। यहां से प्रदीप टम्टा ने बाजी मार ली है। बसपा को तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा, जबकि शेष प्रत्याशियों को जमानतें तक बचाने के लाले पड़ गए। यहां अंतिम चरण में 13 मई को मतदान हुआ था।
नैनीताल सीट के लिए हल्द्वानी और रुद्रपुर में मतों की गिनती की गई, जबकि अल्मोड़ा सीट की मतगणना संबंधित चारों जिला मुख्यालयों पर की गई। शनिवार को सुबह आठ बजे मतगणना शुरू होने के कुछ देर बाद ही देश के साथ कुमाऊं में भी हवा कांग्रेस की महक देने लगी। नौ बजते-बजते दोनों सीटों पर पहले चरण की गिनती पूरी होते ही कांग्रेस प्रत्याशियों के बढ़त लेने की खबरें आने लगीं। लेकिन शुरुआती कई चरणों में भाजपा व कांग्रेस के मामूली अंतर से आगे-पीछे रहने का भी सिलसिला चला। बाद में तस्वीर साफ होती गई और अंतत: कांग्रेस ने मैदान जीत लिया।
नैनीताल सीट से कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के बची सिंह रावत को 88 हजार 412 मतों से शिकस्त दी। केसी सिंह बाबा को 321377 और बची सिंह रावत को 232965 मत मिले। बसपा प्रत्याशी नारायण पाल 143515 मत पाकर तीसरे और समाजवादी पार्टी के प्रेम प्रकाश सिंह चौथे स्थान पर रहे। उन्हें 20455 वोट मिले। उक्रांद के नरायण सिंह जंतवाल मात्र 9319 मतों पर ही सिमट गए। इस सीट से कुल 14 उम्मीदवार मैदान में थे।
अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के प्रदीप टम्टा ने अप्रत्याशित रूप अजय टम्टा को पराजित कर भाजपा का 18 साल पुराना किला खण्डहर में तब्दील कर दिया। प्रदीप टम्टा ने भाजपा के अजय टम्टा को 6950 वोटों से पराजित किया। यह सीट पिछले चार लोस चुनाव से भाजपा के बची सिंह रावत के पास थी। परिसीमन के बाद यह सीट आरक्षित घोषित कर दी गई तो बची सिंह रावत चुनाव लडऩे नैनीताल आ पहुंचे, जहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। अल्मोड़ा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा को 200824 और भाजपा के अजय टम्टा को 193874 मत हासिल हुए। अजय टम्टा प्रदेश भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। बसपा के बीआर धौनी 44492 वोट पाकर तीसरे और निर्दलीय हरीराम 11718 मतों के साथ चौथे नंबर पर रहे। इस सीट पर उक्रांद उम्मीदवार पांचवें पायदान पर खिसक गया। उसके प्रत्याशी रणजीत विश्वकर्मा को मात्र 11659 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। अल्मोड़ा सीट से 10 उम्मीदवार मैदान में थे। यह सीट मंडल के चार अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत जनपदों को मिलाकर बनी है। इस संसदीय चुनाव में बागेश्वर जिले में ही कुछ लाज बचाने में सफल रही। शेष तीनों जिलों में उसे पराजय का सामना करना पड़ा। दोनों लोकसभा सीटों के लिए 13 मई को मतदान हुआ था।
देवभूमि में कांग्र्रेस का परचम
भाजपा का सूपड़ा साफ, सूबे की पांचों लोकसभा सीटों पर किया कब्जा
कांग्र्रेस ने उत्तराखंड में लोकसभा की सभी पांच सीटों पर जीत का परचम फहराकर सूबे की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को नेपथ्य में धकेल दिया है। सबसे नजदीकी मुकाबला अल्मोड़ा संसदीय सीट पर रहा तो हरिद्वार सीट पर कांग्र्रेस ने सर्वाधिक मतों के अंतर जीत हासिल की।
पहले बात पौड़ी संसदीय सीट की। सीएम की प्रतिष्ठा का सवाल बनी इस सीट पर कांग्र्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज ने भारतीय जनता पार्टी के टीपीएस रावत को 18,656 मतों के अंतर से पराजित किया। महाराज को 2,19,593 और टीपीएस को 2,00,937 मत मिले। कांग्र्रेस को सालों बाद यह सीट भारतीय जनता पार्टी से छीनने में सफलता हासिल हुई है।
टिहरी संसदीय सीट पर भाजपा के टिकट पर लड़े निशानेबाज जसपाल राणा यहां तो कांग्र्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा की सियासत के सामने फेल हो गए। यहां कांग्र्रेस को 2,62,616 और भाजपा को 2,08,593 मत मिले। इस प्रकार कांग्र्रेस ने 54,023 मतों के अंतर से जीत हासिल की। कांग्र्रेस ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा।
इस बार सामान्य श्रेणी में आई हरिद्वार संसदीय सीट पर कांग्र्रेस के हरीश रावत ने तमाम समीकरणों को ध्वस्त करते हुए 1,27,542 मतों से जीत हासिल की। यहां दूसरे स्थान पर रहे भारतीय जनता पार्टी के स्वामी यतींद्रानंद को 2,04,516 वोट और हरीश को 3,32,055 वोट मिले। कांग्र्रेस ने यह सीट समाजवादी पार्टी से छीनी है। इस बार सपा का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा।
नैनीताल संसदीय सीट पर कांग्र्रेस का कब्जा बरकरार रहा। यहां कांग्र्रेस के केसी सिंह बाबा ने भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बची सिंह रावत को 84,512 मतों से पराजित किया। यहां कांग्र्रेस को 3,21,205 और भाजपा को 2,36,693 मत मिले। यहां समाजवादी पार्टी पार्टी का प्रदर्शन बेहद लचर रहा।
कांग्र्रेस ने इस बार अल्मोड़ा संसदीय भी भाजपा से छीन ली। 1991 से इस सीट पर भाजपा काबिज थी। इस बार कांग्र्रेस के प्रदीप टम्टा को भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े सूबाई सरकार में काबीना मंत्री अजय टम्टा ने कड़ी टक्कर दी पर अंत में 7,323 मतों के अंतर से परिणाम कांग्र्रेस के पक्ष में गया। यहां कांग्र्रेस को 2,00310 और भाजपा को 1,92,987 मत मिले। खास बात यह है कि इस सीट पर सत्ता में सहयोगी उक्रांद को सभी अन्य सीटों से ज्यादा वोट मिले।
Thursday, 14 May 2009
अब तुंगनाथ धाम के तीर्थयात्री भी हुए पैदल
चोपता घोड़ा पड़ाव में दर्जनों घोड़े पड़े बीमार, कई की हालत चिंताजनक बनी
ऊखीमठ/रुद्रप्रयाग।
गौरीकुड में घोड़ों में फैली कॉलिक बीमारी से घोड़ों के मरने का सिलसिला
अभी थमा भी नहीं कि अब प्रसिद्ध तुंगनाथ धाम की यात्रा के लिए चोपता घोड़ा पड़ाव में दर्जनों घोड़े बीमार पड़ गए हैं। यहां कई घोड़ों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। वहीं, गौरीकुंड में अभी तक घोड़ों के मरने की सं2या २४ तक पहुंच गई है। वहीं, एक घोड़े की सोनप्रयाग में सड़क से नीचे गिरने से मृत्यु हो गई है।देश-विदेश से आए तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को प्रसिद्ध तुंगनाथ धाम की यात्रा के लिए चोपता में स्थित लगभग पांच दर्जन घोड़े कॉलिक बीमारी की चपेट में आ गए हैं। यहां मौजूद घोड़ों का उपचार न होने से कइयों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। घोड़ा मालिक अवतार सिंह चौहान का कहना है कि घोड़ों को तेज बुखार के साथ लगातार खांसी हो रही है। वहीं, केदारनाथ विधायक श्रीमती आशा नौटियाल ने डीएम को टेलीफोन पर उ1त जानकारी देते हुए शीघ्र घोड़ों के उपचार को पशु चिकित्सकों की टीम भेजने को कहा। इधर, सीबीओ आरके वर्मा का कहना है कि गुरुवार को चिकित्सकों की टीम चोपता के लिए रवाना कर दी जाएगी। गौरीकुंड में घोड़ों की स्थिति में सुधार हो रहा है।
गड्वाली किताबे व लेखक कब /किसने /लिखी
संग्रहकर्ता ; पराशर गौड़
सम्बत /सन किताबों नौ लेखक बिषय
९६ गड्वाली पवण सल्किरम वैष्णव गड्वाली मैण/अखण
१९५२ जैनंद गरुव गान शान्ति प्रकाश गुण गान
१९५३ नौबत चक्क्र्धर बहुगुणा गीत/मंगल
१९६५ बुरांस गणेश शर्मा कविता
१९७३ दो नाटक अबोधबंधू बहुगुणा नाटक
१९७४ गड्वाली लोक न्रत्य डा सिबानंद नौटियाल गीत/ न्रत्य
१९७६ घोल अबोधबंधू बहुगुणा पुराने गीत /मंगल
१९७६ गाद मेटी गंगा अबोधबंधू बहुगुणा ड्वाली लेख
१९७७ फंची लोकेसा नवानी कविता
" बटोई को रैबार पूरनचंद पथिक कविता
१९७८ हिमाला को देश दीनदयाल बन्दुनी "
" अन्ज्वाल स्व कनह्यालाल डन्ड्रियल "
१९८० ` धै ७ कबियो की रचना
( पराशर/नेत्र सिंह/ उनियाल "
कनह्यालाल डन्ड्रियल आदि )
" वीरबधू देवकी भजनसिंह "
१९८१ शैलवाणी (१७५० से लेकर आज तक कबियो की रचना) कबिता
" गारी दुर्गेश घिदियाल कहानी
१९८२ खिल्दा फूल -हंसदा पात ललित केसवान कबिता
" रमछोल चंदरसिंह राही "
१९८३ बुग्याल सरस्वती शर्मा मैगजीन
" गुठ्यार रघुबिरसिंह अयाल कबिता
" धुयाल अबोधबंधू बहुगुणा गीत /मंगाल
" जग्वाल पराशर गौड़ फ़िल्मी कहानी /पटकथा
" जंगलमाँ -मंगल भवान सिंह अकेला कबिता
१९८४ कांठा माँ आन से पैली देवेंदर जोशी "
'' गद्गुन्जन संकलन "
१९८५ इल्मातुदादा जीवानंद खुगशाल "
" गायत्री की बोई सुदामा प्रसाद प्रेमी कहानी
१९८६ हरी हिन्द्वान ललित केसवान नाटक
" शेरू भीमराज कटैत उपनयास
नोट : छापने से पहले संग्रहकर्ता से अनुमति लेनी आवश्यक है. या नाम देना जरुरी है
उत्तराखंड में 52.24 फीसदी मतदान
पौड़ी संसदीय सीट के तेरह केंद्रों पर लोगों ने किया बहिष्कार
हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा और चंपावत जिले में सबसे कम मतदान
कुछ जगह ईवीएम खराब होने मतदाता सूचियों से नाम गायब होने से लोग रहे परेशान
दून में फौजियों के वोट डालने पर कांग्र्रेस ने मचाया शोर
सूबे की पांच लोकसभा सीटों के लिए मतदान प्रक्रिया आज शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गई। आज कुल 52.24 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सबसे अधिक मतदान हरिद्वार जिले में 65 फीसदी और सबसे कम चंपावत जिले में 40 फीसदी रहा। खास बात यह रही है कि पौड़ी संसदीय सीट में तेरह स्थानों पर लोगों ने विकास के मुद्दे पर मतदान प्रक्रिया का बहिष्कार किया। देहरादून में वर्दी में वोट डालने आए फौजियों को लेकर कांग्र्रेस ने खासा हंगामा किया।
आज मौसम अपेक्षाकृत ठंडा होने की वजह से मतदान में सुबह से ही तेजी आ गई थी। राज्य निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार सूबे में मतदान का प्रतिशत रहा। कई दूरस्थ इलाकों से देर रात कर अधिकृत सूचना न पहुंच पाने के कारण इस प्रतिशत में मामूली कमी-वेशी की संभावना है।
सभी सीटों में कई स्थानों पर ईवीएम में खराबी के चलते मतदान प्रक्रिया बाधित रहने की खबर है। साथ ही मतदाता सूचियों से नाम गायब होने की शिकायतें आम रहीं। अलबत्ता कहीं से भी किसी अप्रिय वारदात की खबर नहीं है।
खास बात यह रही कि पौड़ी संसदीय सीट में तेरह स्थानों पर ग्र्रामीणों ने विकास के मुद्दे पर मतदान प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया। पौड़ी जनपद में खड़कोली और गड़ीगांव, रुद्रप्रयाग जिले में जखोली विकास खंड के बासी नामक स्थानों पर लोगों ने मतदान नहीं किया। चमोली जिले की बदरीनाथ विधानसभा क्षेत्र में भेमरू, भरकी, खौ-स्यूण, थैैंग, कलकोट, डुमक, कर्णप्रयाग विधानसभा के पजियाणा, छिमला और थराली के धारकोट व बलाण में भी लोगों मतदान प्रक्रिया का बहिष्कार किया।
राज्य निर्वाचन अधिकारी राधा रतूड़ी ने बताया कि सूबे में मतदान पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा। चमोली, पिथौरागढ़, पौड़ी और उत्तरकाशी से ईवीएम खराब होने की सुबह शिकायतें मिली थीं। इन्हें तत्काल ही बदल दिया गया। ऐसे में मतदान का समय बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी।
मतदान का जिलेवार प्रतिशत
जिला प्रतिशत
पौड़ी 48
चमोली 48
रुद्रप्रयाग 57
टिहरी 41
उत्तरकाशी 55
देहरादून 52
हरिद्वार 65
नैनीताल 54
अल्मोड़ा 45
ऊधमसिंह नगर 62
चंपावत 40
बागेश्वर 51
पिथौरागढ़ 48
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संसदीय सीट फीसदी (लगभग)
पौड़ी 49.44
टिहरी 50.16
हरिद्वार 57.81
नैनीताल 57.82
अल्मोड़ा 46.45
उदक कुंड का जल ग्रहण करने से मिलता है मोक्ष
करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र केदारनाथ धाम को मोक्ष का धाम भी कहा जाता है। यहां स्थित प्रत्येक वस्तु शिव तत्व से जुड़ी है। इन्हीं में से एक है उदक कुंड। किवदंती है कि केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में शिव भोले का अभिषेक किया पानी इस कुंड में जमा होता है। इस कारण उदक कुंड का पानी हमेशा मैला ही रहता है। देश-विदेश से आए तीर्थयात्री इस कुंड के पानी को अपने साथ ले जाते हैं। कहा जाता है कि उदक कुंड के जल के छिड़काव मात्र से स्थान शुद्ध हो जाता है। मंदिर परिसर से मात्र पचास मीटर की दूरी पर स्थित उदक कुंड का अपने में अलग ही महत्व है।इस कुंड में मौजूद पारे को जल अपने साथ बहा कर ले जाता है, जबकि अन्य सामान्य जल में पारा ऊपर की ओर आता है। तीर्थपुरोहित जय प्रकाश शु1ला का कहना है कि उदक कुंड के जल का विशेष महत्व है। उदक कुंड के बारे में केदारखंड में वर्णित है कि केदार उदकम पित्वा, पुनर्जन्म न विद्यते। अर्थात उदक कुंड के जल को ग्रहण कर मनुष्य जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त करता है।
सिस्टर ललिता राष्ट्रीय लोरेंस नाईटिंगल पुरस्कार से सम्मानित
नैनीताल।त्याग, तपस्या और सेवा भावना के क्षेत्र नर्सिंग में उल्लेखनीय योगदान के लिए बीडी पांडे जिला अस्पताल में तैनात और नैनीताल निवासी सिस्टर ललिता बिष्ट को मंगलवार को राष्ट्रीय लोरेंस नाईटिंगल पुरस्कार प्रदान किया गया। श्रीमती बिष्ट ने अपनी इस उपलब्धि का श्रेय उन सैकड़ों मरीजों को दिया जिनकी सेवा करने का मौका उन्हें मिला।उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर आज देशभर की २९ नर्सेज को दिल्ली में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रीय 3लोरेंस नाईटिंगल पुरस्कार प्रदान किए। इनमें बीडी पांडे अस्पताल की सिस्टर ललिता बिष्ट भी शामिल हैं, जो यह पुरस्कार पाने वाली उत्तराखंड की इकलौती सिस्टर हैं। जनपद के कोटाबाग निवासी शिक्षक अमर सिंह बिष्ट की पुत्री ललिता बिष्ट यहां स्टोनले कंपाउंड की निवासी हैं। आज श्रीमती बिष्ट पुरस्कार लेने दिल्ली गई थीं। अमर उजाला से दूरभाष पर हुई वार्ता में श्रीमती बिष्ट ने बताया कि स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने बीडी पांडे अस्पताल नैनीताल से तीन वर्षीय जनरल नर्सिंग कोर्स किया। उसके बाद कानपुर विश्वविद्यालय से छह माह का कालेज आफ नर्सिंग कोर्स पूरा किया। कानपुर विश्वविद्यालय से ही उन्होंने बीएससी नर्सिंग की डिग्री ली। उसके बाद वह १८ साल तक यहां नर्सिंग कालेज में बतौर शिक्षिका कार्यरत रहीं। नर्सिंग स्कूल बंद होने के बाद उन्हें १९८१ में बीडी पांडे अस्पताल में स्टाफ नर्स के रूप में नियु1ित मिली। १९९६ में वह सिस्टर के पद पर प्रोन्नत हुईं। श्रीमती बिष्ट के पति पीसी बिष्ट यहां एडवोकेट हैं। बेटी अपर्णा दिल्ली में बीएससी आनर्स और बेटा हर्ष नैनीताल में इंटरमीडिएट में अध्ययनरत है। श्रीमती बिष्ट कहती हैं कि प्रत्येक व्य1ित को अपना काम बिना किसी फल की इच्छा किए निष्ठा और लगन से करना चाहिए। यह ईश्वर की कृपा ही है कि उनका चयन इस पुरस्कार के लिए हुआ।
Wednesday, 13 May 2009
भारत में लुप्त होता .. लोक साहित्य
लेखक- पराशर गौड(कनाड़ा से)राष्ट्रीय कवि स्वर्गीय दिनकर जी ने ठीक ही कहा था ! सभ्यत्ता जब जब अत्यन्त सभ्य हुई तो वो नपुंसक हो जाती है और जब जब सभ्यत्ता नपुंसक या बीमार हुई तब तब साहित्य शैली जीने पर मजबूर हुई ! आज का बीमार साहित्य और नपुसक सभ्यत्ता दोनों एक ही शैली में जी रही है ! देखा जाया तो मनुष्या की मजबूरी है जीना इसीलिये आनेवाले समय में ना तो मनुष्या ही मरेगा और नही साहित्य ! सुनने में
आया ह कि हर शत्ताब्दी एक नई सभ्यत्ता जन्म लाती है या जन्म लेन का इंतज़ार करती है ! आलम ये है कि बिना सोचे समझे इस सभ्यत्ता कि दौड़ में हम दौडे जा रहे है और पीछे छोडे जा रहे है अपनी लोक संस्कृति , लोक साहित्य जो हमरी आने वाली पीड़ी उनके और हमारे सामाजिक समंधो के लिए बहुत आवश्यक है ! आज जब हम अपनी परम्परा अपनी संस्कृति , अपनी बोली , अपना लोक साहित्य को अनदेखा कर नई संस्कृति नई
परम्परो को अपनाकर इस से मुह मुड़कर आगे जाते है तो हम अपनी भाबी पीडी के साथ अन्या कर रहे है ! कल आने वाली पीड़ी हमें इसके लिए अवशय कोशेगी इ हमने अपने युग कि धरोहर को दूसरे युग के उत्तराधिकारी को देने अपने कर्तब्य का पालन नही किया !
किसी भी देश का मूल्यांकन करना हो, या उसके बारे में जानना हो तो उसके पीछे उसके लोक संस्कृति व लोक साहित्य को देखना होगा ! जितना समर्ध उसका साहित्य अवम लोक संस्कृति होगी वो उतना ही समर्ध होगा ! भारत जिसमे लोक साहित्य अवम लोक संस्कृति का अपार भण्डार है जिसके अंग अंग में लोक संस्कृति का वास है ! जिसमे बिभिन प्रकार कि बोली भाषाऐ बोली जाती है जो भारत की आन बाण व शान में अपना
सहयोग दे रही है भले ही यहा सहयोग मौखिक रहा हो , लिखित नही ! ब़स यही पर मार खा गए ! काश आज वो लिखित होता तो हमें ये सब लिखने और उसकी वकालत करने कि कोई ज़रूरत नही आन पड़ती !
स्वतंत्रता प्राप्ती की बाद लोक साहित्य व संस्कृति प्रति विद्वानों ,सामाजिक , कार्यकर्ताओं, राजनैतिक पार्टियो व राज नेताओं का ध्यान अवशय गया लेकिन हुआ क्या ? इसके नाम पर कमेटिया अवशय बनाई गयी जिसमे उसमे अपने चहेते व चाहनेवालों को इसका अध्यक्ष बनाकर उनको कार ,कोठी ,बँगला, नौकर चाकर देकर इसकी इती श्री कर दी गई, ! नतीजा ये हुआ जो काम हो भी रहा था वह रोक गया ! लुप्त होत
लोकसंस्कृति , साहित्य को अंधेरे के गुमनामो के ओर धकेल दिया गया !
आज आलम ये है सरकारे चाहे वो केंदर की हो या प्रान्तों की वो लोक गीतों व लोकसंस्कृति के नामों पर केवल सांस्कृतिक या मनोरंजन तमाशों का आयोजन करती आ रही है ! लोक गीत व लोक संस्कृति दूर दूर तक तो दिखाई नही देती हां अलबता मुम्ब्या फिल्मी डांस और आइटम डसो के सिवा कुछ भी नजार नही आता ! एक और बात जब सरकार ही जिसके आधीन रख रखावा के साधन है जैसे आकाशवाणी दूरदर्शन विश्व विद्यालय
तथा साहितिक संस्थाए होने के बाबजूद वो उसको रखने अथुवा सँभालने में असमर्थ है तो वहा चाँद एक व्यक्ति kese rakh payegaa !
लोक तंत्र में वर्गगत अहम का अंत नहीं जिसका परिणाम यह होवा की लोक संकृति उनकी नजरो में गंवारों की भाषा मणि जाने लगी और लोकगीत और लोकसाहित्य का मजाक उडाया जाने लगा ! समाज में समय समय पर बदलाव आया प्रगति और उन्नति नई दिशाए खुली ! समाज और व्यक्ति विकास की ओर अग्रसर हुआ ! नई और ऊँची संस्कृति ने जनाम लिया पर ध्यान रहे ऊँची संस्कृति भी नीची कहा जाने वाली संस्कृति से ही पैदा
होती है ! और जो अपने को उच्च वर्ग बतलाने की कोशिश करते वे यह क्यूँ भूल जाते है की वो भी इसी निम्न वर्ग की दें है ! सचाई तो ये है की सहर का सहरी और ग्राम का ग्रामीण संस्कृति की नजर में दोनों एक दुसरे के पूरक है ! कोइ छोटा बड़ा नहीं है !
हमारी संस्कृति व सभ्यता आज दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है क्यो की समाज का पडा लिखा वर्ग वो अपनी लोक साहित्य , लोक संस्कृति से अपना पीछा छोड़ता जा रहा है ! अपनी आँखों में पासचता की संस्कृति का आएना लगाकर अपने अपनी संस्कृति को अनदेखा कर रहा है ! अखीर संस्किति क्या है वो किसी एक व्यक्ति की भी हो सकती और एक समाज की भी ! आवश्कता इस बात की है की सब मिलकर चले , अपने विचारो
का आदान प्रदान करे जिस से उनका ही नहीं बल्कि राष्ट्र का चौमुखी विकाश हो सके ! लेखक- पराशर गौड(कनाड़ा से)
केदारनाथ के लिए हवाई सेवा शुरू
पंद्रह मई से एक और हेलीकाप्टर देगा अपनी सेवा -गरीब व असहाय यात्रियों को भी मिलेगी छूट
रुद्रप्रयाग : प्रभातम एविएशन ने विश्व प्रसिद्ध धाम भगवान केदारनाथ के लिए फाटा से अपनी हवाई सेवा मंगलवार से शुरू कर दी है। फिलहाल कंपनी एक ही हेलीकाप्टर से सेवाएं दे रही है, शुक्रवार से तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए कंपनी का एक और हेलीकाप्टर अपनी सेवाएं देगा।
विगत चार वर्ष से फाटा से भगवान केदारनाथ के लिए प्रभातम एविएशन अपनी सेवाएं देती आ रही है। इससे यहां पहुंचने वाले यात्रियों में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इस वर्ष भी तीर्थयात्रियों को भगवान केदारनाथ की सुगम यात्रा कराने के लिए प्रभातम एविएशन ने मंगलवार से एक हेलीकाप्टर के साथ अपनी सेवाएं शुरू कर दी है। कंपनी के उत्तराखंड प्रबंधक बृजमोहन बिष्ट ने बताया कि फिलहाल एक ही हेलीकाप्टर तीर्थयात्रियों की सेवा के लिए मौजूद है। पंद्रह मई से एक और हेलीकाप्टर यात्रियों को भगवान केदारनाथ की यात्रा कराने को लगाया जाएगा। उन्होंने बताया कि फाटा से केदारनाथ तक आने जाने का किराया 6,990 रुपये तथा पूजा का 1100 रुपये अतिरिक्त देना होगा। एक ओर का किराया 3,990 रुपये निर्धारित है। वहीं कंपनी के कै.भूपेंद्र ने बताया कि कंपनी असमर्थ यात्रियों को किराए में छूट भी देगी।
Tuesday, 12 May 2009
पौड़ी -महारथियों की साख दाव पर
इस सीट पर वैसे तो 13 उम्मीदवार हैं, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है। बसपा, उक्रांद व वामपंथी केवल इन दोनों दलों के मत काटने तक ही सिमटते दिखाई दे रहे हैं। इस सीट पर सियासी समीकरण फिट करने के लिए पिछले दो महीने में खूब उठा-पटक रही है। भाजपा सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम ने पाला बदलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सरकार में शामिल उक्रांद के एकमात्र कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट ने पद से इस्तीफा तो दिया, लेकिन समर्थन वापसी पर पार्टी खामोश है। राज्य की सियासत में आए इस बदलाव को सभी की चुनावी जरूरत ही माना जा रहा है। उत्तराखंड में हाट सीट बने पौड़ी गढ़वाल में भाजपा व कांग्रेस के बीच रोचक मुकाबला है। भाजपा ने मौजूदा सांसद ले. जनरल टीपीएस रावत को उतारा है तो कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज पर दांव लगाया है। यह सीट मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा से जुड़ी है, लिहाजा भाजपा किसी भी मामले में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। देहरादून से मनमोहन शर्मा की रिपोर्ट: पौड़ी: महारथियों की अग्निपरीक्षा दिग्गजों का इम्तिहान राजनीतिक ताकत के पैमाने पर देखें तो मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी, कैबिनेट मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, मातबर सिंह कंडारी, राजेंद्र भंडारी व विधानसभा उपाध्यक्ष विजया बड़थ्वाल का यह गृह क्षेत्र है। मंत्री पद छोड़ने वाले उक्रांद के दिवाकर भट्ट भी इसी क्षेत्र से हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता हरक सिंह रावत व पूर्व ऊर्जा राज्य मंत्री अमृता रावत भी यहीं से हैं। ऐसे में दोनों दलों के महारथियों के प्रभाव की परीक्षा भी चुनाव में होनी है। इतिहास का आईना पौड़ी लोकसभा सीट को देश में तब पहचान मिली, जबकि 1981 में स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को चुनौती देते हुए यहां से चुनावी मोर्चे पर फतह हासिल की। 1991 से इस सीट पर भाजपा का ही दबदबा रहा। केवल एक बार 1996 में यह सीट कांग्रेस की झोली में गई। प्रदेश के मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी चार बार इस क्षेत्र से सांसद रहे। वर्ष 2008 के उपचुनाव में कांटे की टक्कर में भाजपा के टीपीएस रावत ने सर्विस मतों के आधार पर जीत दर्ज की। सीएम ने संभाला मोर्चा, कांग्रेस ने भी झोंकी ताकत
कांग्रेस के संत के मुकाबले में भाजपा के जनरल कांटे की टक्कर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी क्षेत्र में जनसभा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री ने भी तूफानी सभाएं की हैं। कांग्रेस के लिए युवराज राहुल गांधी ने जनसभा की।
जसपाल के निशाने पर बहुगुणा की विरासत
देहरादून बे अरसे तक राजघराने के पास रही टिहरी संसदीय सीट की तस्वीर इस चुनाव में एकदम अलग है। भौगोलिक व सांस्कृतिक विविधताओं के साथ ही जातिगत आंकड़ों में उलझी इस सीट पर दल अथवा प्रत्याशी विशेष के पक्ष में कोई हवा नहीं है। दावेदारों के पास ठोस मुद्दों की भी कमी है। यहां एक तरफ कांग्रेस के सिटिंग एमपी विजय बहुगुणा हैं, जो राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। दूसरी तरफ भाजपा के रथ पर सवार अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी जसपाल राणा हैं, जो निशानेबाजी के चैंपियन हैं। इन दो खिलाडि़यों के बीच बसपा के मुन्ना सिंह चौहान हैं, जो समीकरण बनाने-बिगाड़ने का दावा कर रहे हैं। हर सूरमा जनता की नब्ज टटोलने को बेताब है। जोड़तोड़ ही नहीं, हर हथकंडा अपनाया जा रहा है। आंकड़ों का गणित इस कदर उलझ गया है कि कौन बाजी मार ले जाए, कहना मुश्किल है। इस सीट पर 18 प्रत्याशी खम ठोक रहे हैं, लेकिन तीन को छोड़कर बाकी प्रत्याशियों की कोई अहमियत नहीं है। 2007 के उपचुनाव में राजघराने का तिलिस्म टूटने के बाद भाजपा ने पहली बार इस परिवार को सीधे दंगल से दूर कर जसपाल पर भरोसा जताया है। प्रसिद्धि के शिखर पर चढ़े जसपाल का भले ही राजनीति में यह पहला इम्तिहान हो, लेकिन खिलाड़ी के रूप में उन्हें हर कोई जानता है। उनकी असल टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी और सिटिंग एमपी विजय बहुगुणा से है। बहुगुणा के पास लोस चुनाव लड़ने का लंबा-चौड़ा अनुभव है। राज परिवार से उनकी खूब भिड़ंत हुई और आखिरकार नए महाराज को पटखनी देने में सफल भी रहे। दिवंगत हेमवती नंदन बहुगुणा का नाम भी उनके साथ चल रहा है। उनका बाकी परिवार भी सक्रिय राजनीति में है। विजय बहुगुणा के सामने जहां अपनी सीट को बचाने की चुनौती है, वहीं जसपाल राणा को अंतरराष्ट्रीय फलक पर मिली ख्याति को बरकरार रखने के लिए दमदार प्रदर्शन की दरकार है। ऐसे में दोनों सूरमाओं के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है। जसपाल राणा विजय बहुगुणा कांटे की टक्कर टिहरी सीट की दास्तान काफी रोचक है। दल कोई भी रहा हो, अवाम का भरोसा हमेशा राज परिवार पर ही रहा। 1952 से शुरू हुआ राज परिवार का संसदीय सफर इन छह दशकों में एकाध चुनावों को छोड़कर 2007 तक चला। अलबत्ता, विकल्प के रूप में वामदलों ने भी यहां दावेदारी की, पर जनमत जुटाने में हमेशा ही असफल रहे।
कागजों में चलता है उत्तराखण्ड फिल्म बोर्ड
हल्द्वानी राज्य गठन के नौ वर्ष बाद भी उत्तराखण्ड का फिल्म व्यवसाय पनप नहीं पाया है। तत्कालीन सरकार ने जैसे-तैसे फिल्म बोर्ड बनाया भी तो वह आज तक कागजों में ही चल रहा है। इसी कारण सब्सिडी नहीं मिल पा रही है। इसका खामियाजा कुमाऊंनी फिल्म निर्माता-निर्देशकों को उठाना पड़ रहा है। यह लोग सब्सिडी न मिलने से फिल्म निर्माण जैसा बड़ा और रिस्क वाला कदम नहीं उठा पा रहे हैं। लेकिन शौक पूरा करने के साथ-साथ पेट तो भरना ही है, इसलिए फिल्मों के स्थान पर वीडियों एल्बम का निर्माण का ही सहारा ले रहे हैं। हर साल राज्य में सैकड़ों वीडियों एलबम रिलीज होती हैं, तो एक दर्जन फिल्मों का निमार्ण भी नहीं हो पाता है। आज जहां भोजपुरी, असमी, तमिल, पंजाबी भाषाओं में बनने वाली फिल्में देश भर में अपनी पहचान बनाती जा रही हैं। तो कुमांऊनी व गढ़वाली अपने राज्य में ही जूझ रहीं हैं। तेरी सौं व चेली के अलावा के अलावा कोई स्थानीय फिल्म सफलता को सोपान नहीं छू सकी है। लेकिन हैरत की बात यह है कि किसी राजनीतिक दल का ध्यान इनकी ओर नहीं है। इस बाबत कुमाऊंनी फिल्म निर्माता निर्देशक व वैष्णो माता प्रोडक्शन हाउस के प्रमुख विनोद जोशी कहते हैं छह वर्ष पूर्व कांग्रेस के कार्यकाल में फिल्म बोर्ड का गठन हुआ। एक कैबिनेट मंत्री बोर्ड का अध्यक्ष भी रहा। लेकिन सत्ता बदलते ही इसका वजूद भी खत्म हो गया। आज एक कुमाऊंनी फिल्म करीब बीस लाख की बनती है, अगर बोर्ड होता तो सब्सिडी मिलती। बोर्ड न होने से कोई निर्माता रिस्क नहीं लेना चा रहा है। वह राज्य में सेंसर बोर्ड की मांग करते है।
साल भर में तैयार हो जाएगा गढ़वाली-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश
प्रदेश के संस्कृति विभाग के पास होगा जिम्मा
देहरादून।
एक साल के भीतर गढ़वाली-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश तैयार कराने की योजना है। शासन की ओर से संस्कृति विभाग को यह जिम्मा सौंपा गया है। यह भी निर्णय हुआ है कि शब्दकोश की गुणवत्ता और प्रमाणिकता के लिए इसमें विशेषज्ञों को शामिल किया जाए। गढ़वाल विश्वविद्यालय के भाषाविदों की समिति को श4दकोश का पर्यवेक्षण और समीक्षा का जि6मा सौंपा जाएगा।गढ़वाली-हिंदी श4दकोश तैयार कराने की कवायद काफी समय से चल रही है। लेकिन इस कवायद को बल उस व1त मिला जब प्रदेश सरकार इस दिशा में गंभीर हुई। इसके लिए शासन स्तर से बजट की अलग से व्यवस्था कर दी गई है। विभाग को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि इसके निर्माण में विशेषज्ञों को शामिल किया जाए। साथ ही, इसके निर्माण में गुणव8ाा, स्पष्टता और प्रमाणिकता का विशेष ध्यान रखने के निर्देश दिये गए है। प्रकाशित श4दकोश का सर्वाधिकार संस्कृति विभाग के पास रहेगा। योजना यह है कि गढ़वाली मुहावरे और लोको1ितयों का संकलन भी इस श4दकोश में किया जाएगा। शासनादेश पर होने वाले व्यय की लेखा परीक्षा अखिल गढ़वाल सभा से कराई जाएगी। इस बाबत हुए शासनादेश के मुतबिक एक साल के अंदर यह कार्य अनिवार्य रूप से पूरा करना होगा।
बदरीनाथ: नहीं गूंजी सहस्रनाम की सदाएं
-एक साधु की शिकायत पर लिया गया निर्णय
-शिकायतकर्ता ने दिया सुप्रीम व हाईकोर्ट के निर्देश का हवाला
गोपेश्वर (चमोली): हिंदुओं की आस्था के प्रतीक बदरीधाम में इस बार आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करने का माध्यम माने जाने वाले विष्णु सहस्रनाम पाठ के श्लोक व मंत्रों की आवाजें सुनाई नहीं दीं। कपाट खुलने से पूर्व श्री बदरीनाथ मंदिर में ध्वनिविस्तारक के प्रयोग पर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के हवाले के आधार पर की गई एक साधु की शिकायत पर मंदिर समिति ने मंदिर परिसर में माइक व लाउडस्पीकर का प्रयोग बंद कर दिया। हालांकि, मंदिर के भीतर पाठ अब भी जारी है।
बदरीनाथ धाम में परंपरा के अनुरूप हर रोज सुबह कपाट खुलने से पूर्व व दोपहर में बदरीनाथ मंदिर से विष्णुसहस्त्रनाम पाठ होता था। यह ध्वनि मंदिर में लगे माइक व लाउडस्पीकरों के जरिए पूरी बदरीशपुरी में सुनाई देती थी। यही नहीं, स्थानीय व्यवसायी भी अपने प्रतिष्ठानों में सहस्त्रनाम पाठ की कैसेट, सीडी आदि चलाया कतरे थे। यह परंपरा पिछले कई वर्षों से अनवरत जारी थी, लेकिन इस बार कपाट खुलने से पूर्व एक विवाद के चलते सहस्त्रनाम पाठ बंद कर दिया गया। जानकारी के मुताबिक बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को सूचना के अधिकार के तहत मातृ सदन के एक साधु निगमानंद सरस्वती ने लाउडस्पीकर के प्रयोग की अनुमति के बारे में पूछा था। साधु ने तर्क दिया कि जब हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने ध्वनि विस्तारक यंत्रों के प्रयोग पर रोक के निर्देश दिए हैं, तो बदरीनाथ मंदिर में इनका प्रयोग कैसे किया जा रहा है। इसके बाद मंदिर समिति ने विवाद बढ़ता देख माइक हटा दिए।
मंदिर समिति के इस निर्णय से स्थानीय संत समाज में तीव्र आक्रोश है। बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल बद्रीप्रसाद नंबुदरी ने कहा कि भगवान बदरी विशाल की नगरी में भगवान विष्णु का नाम नहीं गूंजेगा, तो क्या गूंजेगा। उन्होंने मंदिर समिति के निर्णय पर नाराजगी जताई। वहीं, पंडा पंचायत के बालकराम ध्यानी ने कहा कि बदरीशपुरी में मंदिर की परंपराओं से छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। साधु समाज के शिवानंद सरस्वती ने कहा कि श्रद्धालु भगवान बदरीनारायण के जप के लिए ही बदरीनाथ आते हैं। ऐसे में यहां ध्वनि को बंद कराना अधार्मिक है। दूसरी ओर, बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अनुसूया प्रसाद भट्ट ने बताया कि मंदिर के बाहर हालांकि विष्णुसहस्त्रनाम पाठ की ध्वनि नहीं सुनायी दे रही है, लेकिन मंदिर के भीतर यह पाठ बराबर चल रहा है।
Monday, 11 May 2009
Special Issue on Garrhwali language Stage Plays by Hamari Chitthi
a Garhwali language Magazine and Brahman Vad
You will be pleased to know that a much waited special issue on Garhwali Rangmanch by Hamari Chitthi is now available at stands.
This special issue is dedicated to various aspects of Garhwali Drama or stage play. The brief about the is as follows:
Editorial: Madan Duklan the editor in chief of Hamari Chitthi
explained in his editorial about the need of special issue for Hamari Chitthi. He also offered some glimpse of historical aspects of modern Garhwali drama, the evolution of Garhwali drama from folk drama to drama like Ardh Grameshwar and Khadu Lapata.
in his editorial, Madan Duklan pinned point the reasons behind the present depression in the Garhwali drama world and urged the Garhwali society and Uttarakhand goverment to come forward for adapting necessary actions to protect the declining staging of garhwali plays.
Folk dramas by Badis and Garhwali women in perspective of Bharat Natya Shashtra (badyun swang ar jannyanyun swang ar Bharat ku Natya Shastra): Bhishma kukreti offered well researched commentary on the Gadhwali fok drama created by badis and women folks of garhwal from the point of view of Natya Shashtra of Bharat a sanskrit classic created before 3000 years back. In his brilliant discussion, Bhishma Kukreti judged Garhwali folk drama from the perspective of raptures, story, origin of plot, plot dimensions, dailogues, characterization of characters, importance of inspirational subjects and the reality, make ups, stage arrangement, dreasses, ornaments, training of artists in Garhwali folk dramas performed by badis and women folks of garhwal area. Each aspect is analysed by example and that is the sepciality of this article.
Bhawani Datt Thapaliyal-the first Garhwali dramtist: the famous Hindi and Garhwali dramatist of Lucknow Urmil Kumar Thapliyal threw light on the garhwali drama works of his grand father Bhawani Datt Thapliyal and other historical aspects of Garhwali drama from the begining of last century till date. Urmil Kumar opened many new aspects and subjects of garhwali drama in this article
Garhwali lok natya: Parampara and survexan by Dr nand Kishore Dhoundiyal: in this intellectual discussion Dr Dhaoundiyal , first analysed the panorama of folk dramas and then he judged the garhwali folk dras from the point of views of various aspects of drama, poetry and games. he gave region wise details of Garhwali folk plays or dramas. Well researched work and valluable for the future research scholars to get reference from the article.
Garhwali loknatya ki Sameeksha by Dr Rajeshwar Uniyal: The expert of Garhwali folk literature Dr Rajeshwar Uniyal analysed the Garhwali folk drama from many angles. first he divide the folk drama into---Gadyatmak, Padyatmak and champoo aspect. He then analysed garhwali folk drama from Lokik natak, Dharmik natak point of views. he also judged garhwali drama from the angle of age i.e. Prachin and Adhulik yugin lok natak. Lastly, Dr Rajeshwar investigated garhwali folk drama from the story direction---lok sahitya par adharit and kalpana par adharit. This well written article for research scholars
Garhwali Rangmanc or History of Gadhwali stage plays by Dr Sudharani (translated by Bhishma Kukreti) : Dr sudharani provided minute historical details of Garhwali stage plyas played in various places of India in her article garhwali Rangmanch.She gave details of all Garhwali dramas staged from 1913 till 1988.
We shall always obliged for her research works on this subject.
Parvatiyaa Lok Natya: Bhramit Nepathya (Confused back ground of hill Dramas): In this brilliant article , dr Urmil Thapaliyal exposed the weaknesses of less attention on garhwali dramas and the fuure aspects for developing the culture of Garhwali drama and its popularization. he gave many examples of various dramas of Garhwali.
Garhwali natak by Kula nand Ghansala: Kula nand ghansala is garhwali drama activist, writer and performer too. With offering examples, Ghansala analyzed the problems and solutions of garhwali stage playing in Dehradun and garhwl territories.
Dehradun man rangamnch/hindi Garhwali: In this well reasearched article we get historical details of garhwali and hindi stage plays performed in Dehradun. This article is treasurer for our literature history.
Garhwali swang (natak) man has (humour in Garhwali drama) - a discussion between Bhishma Kukreti and late Abodh bandhu Bahuguna: in this discussion the dues explain various aspects of humour in garhwali dramas and importance of popularizing garhwali dramas.
As whole the issue will be called collector issue.
However, as a part time convener, I aplogize from Shrimati Vijaya P.Dobriyal and Shri Rama Kant Dyama (Mumbai) that your views could not be published in this issue of Garhwali drama. Your views are very vital and utter importance for developing culture of Garhwali dramas in Mumbai and other Indian cities. Shri Duklan has promised that in next issue, your views on garhwali dramas in Mumbai will be published.
Brahman vad in this issue: Whether madan Duklan likes it or not but it is atruth that hamari chitthi has shown inclination on supporting Brahman Vad. None of rajput and Arya writer could write articles for this special issue of vital subject. Madan duklan can only explain about the reason behind no contribution of rajput and Arya writers for the subject
JANMBHOOMI UTTARANCHAL is organizing one day “Seminar
JANMBHOOMI UTTARANCHAL is organizing one day “Seminar for Uttrakhandi Youth & Social Workers” on 31st May, 2009 at community centre of Bhaba Automic Research Centre (BARC) will be a unique platform for sharing views on uttrakhandi art, culture and heritage and defining path towards developments with audio visual support.
Interested may contact followings with brief profile –
(1) Sh. Keshar Singh Bisht M- 09833613038 kesharsingh.bist@gmail.com
(2) Sh. Khushal Singh Rawat M- 09833200120 rawat.khushal@rediffmail.com
Valuable contribution from Uttrakhandi Mumbaikar is expected by encouraging their younger generation to be a part of this movement
With warm wishes,
Dr. Ashok (Mumbai)
M- 09819125106
विकलांग बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय
-100 से अधिक विद्यार्थियों के लिए सभी सुविधाएं होंगी
-25 बीघा जमीन पर विद्यालय बनाने में डेढ़ करोड़ खर्च
-गढ़वाल के हरिद्वार, कुमाऊं के पिथौरागढ़ में बना विद्यालय
प्रदेश में पहली बार विकलांगों के लिए आवासीय विद्यालय खुलने जा रहे हैं। विद्यालय तैयार हो चुके हैं। बस, सरकार किसी एनजीओ को देकर विद्यालयों का संचालन कराना चाहती है। दरअसल सर्व शिक्षा अभियान के तहत शासन द्वारा गढ़वाल व कुमाऊं में एक-एक विकलांग छात्रावास को पिछले दिनों मंजूरी दी गई थी। एक विद्यालय को बनाने में करीब डेढ़ करोड़ का खर्च आया है। करीब 25 बीघा भूमि पर आवासीय विद्यालय बहादराबाद ब्लाक में बनाया गया है। इसमें 100 से अधिक विद्यार्थियों के रहने व भोजन की व्यवस्था होगी।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत बनाया गया यह आवासीय विद्यालय हरिद्वार के बहादराबाद ब्लाक के अलीपुर क्षेत्र में है। आवासीय विद्यालय का सत्र जुलाई से शुरू होने की संभावना है। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी किसी निजी संस्था के हाथ सौंपने पर प्रदेश सरकार विचार कर रही है। अलीपुर में बने आवासीय विद्यालय में सौ से अधिक बच्चों के पढऩे व रहने की सुविधा उपलब्ध है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें हर प्रकार के विकलांग बच्चों के लिए विशेष सुविधा उपलब्ध रहेगी। सरकार ने इसमें मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के ऊपर अधिक ध्यान देने की योजना बनाई है। इसमें बच्चों के लिए आधुनिक सुविधाओं से युक्त सभी यंत्र भी उपलब्ध रहेंगे। उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक ने केंद्र सरकार को देशभर में कक्षा एक से आठ तक के विकलांग बच्चों के आवासीय विद्यालय की स्थापना को लेकर अनुदान राशि आवंटित की थी। वर्ष 2005-06 में केंद्र सरकार द्वारा जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तराखंड को भी चुना गया। गढ़वाल की तरह कुमाऊं के पिथौरागढ़ में भी इसका निर्माण कराया गया है। इसमें छह से 18 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं के साथ स्टाफ के लिए भी सभी सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी। अपर जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक केके वाष्र्णेय ने बताया कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश के दो जनपदों में इसे पिछले दिनों मंजूरी दी गई थी। प्रदेश सरकार एनजीओ के तहत इस विद्यालय को संचालित कराना चाहती है। एनजीओ से करार होने के तुरंत बाद इसे शुरू कर दिया जाएगा।
केदारनाथ यात्रा के पड़ाव गौरीकुंड से हटे चार हजार घोड़े
रुद्रप्रयाग, : गौरीकुंड से केदारनाथ तक पैदल न चल सकने वाले यात्रियों को ले जाने वाले घोड़ों में अज्ञात बीमारी के कारण चार हजार घोड़ों को इस काम हटा लिया गया है। केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को अब चौदह किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ रहा है।
केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को गौरीकुंड से पैदल जाना पड़ता है। यहां जिला पंचायत में सत्रह सौ घोड़े- खच्चरों का रजिस्ट्रेशन है। जबकि हर साल हजारों की संख्या में घोड़े-खच्चर यात्रियों की सुविधा के लिए उपलब्ध रहते हैं। यात्रा सीजन की शुरुआत होते ही इस बार भी यहां सैकड़ों पशुपालक पांच हजार के करीब घोड़े-खच्चर लेकर पहुंच गए थे, लेकिन यहां आते ही घोड़ों को अज्ञात संक्रामक बीमारी ने चपेट में ले लिया। अब तक एक दर्जन घोड़ों की मौत हो चुकी है। वर्तमान में यहां महज पांच से सात सौ घोड़े, खच्चर ही शेष रह गए हैं। यात्रा मार्ग से घोड़ों के हटने से यात्रा पर विपरीत प्रभाव पडऩे की आशंका बढ़ गई है। इसके चलते केदार यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों को खासी दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। मुख्य विकास अधिकारी एमएस कुटियाल का कहना है कि गौरीकुंड में विशेषज्ञों की टीम पहुंच गई है और बीमारी की जांच शुरू कर दी गई है।
अपनी सस्कृति को बचाने के लिए सीख ऱहे है ढोल और संगीत के गुर
गढ़वाल विवि के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र द्वारा संचालित लोक संगीत डिप्लोमा पाठ्यक्रम के छात्र ढोल आदि संगीत विधाओं के पारंगत पारंपरिक लोक कलाकारों से गुर सीख रहे हैं। लोक कला को संरक्षित रखने के लिए उन्होंने उ8ारकाशी में ढोल प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग की है।नए जमाने की चकाचौंध और डीजे संस्कृति द्वारा ढोल, दमाऊं, मसकबीन आदि पारंपरिक वाद्य यंत्रों वाले लोक संगीत को पीछे धकेल दिए जाने से इस कला के पारंगत कलाकार भी सिमटते जा रहे हैं। गढ़वाल विवि के सेंटर फॉर फोक परफार्मिंग आर्ट एंड कल्चर विभाग द्वारा संचालित लोक संगीत डिप्लोमा पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्र अब इसके संरक्षण के लिए आगे आए हैं। ढोल, मसकबीन और लोकनृत्य की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों ने कंकराड़ी पहुंच कर इन विधाओं के जानकार बचनदास, हुकमदास आदि पारंपरिक कलाकारों को गुरु बनाकर शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की है। जयप्रकाश, दिनेश, सुरेंद्र, गणेश आदि छात्रों ने कहा अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए लोक विधाओं का संरक्षण और कलाकारों का स6मान जरूरी है। उन्होंने इस पाठ्यक्रम को अकादमी स्तर पर मान्यता देकर हर महाविद्यालय में शुरू करने तथा राज्य के हर जनपद में प्रशिक्षण केंद्र खोलकर स्थानीय लोक कलाकारों के माध्यम से लोक संगीत को आगे बढ़ाने की आवश्यकता जताई।
पारंपरिक कलाकार साबित होंगे अच्छे गुरु
उ8ारकाशी। गढ़वाल विवि में लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के निदेशक डा. डीआर. पुरोहित का कहना है कि लोक संगीत एवं वाद्य यंत्रों के पारंपरिक कलाकार ही अच्छे गुरु साबित हो सकते हैं। इनसे जहां छात्रों को संगीत की अच्छी शिक्षा मिल रही है, वहीं कलाकारों को स6मान एवं रोजगार मिलने के साथ ही लोक संस्कृति के संरक्षण में भी मदद मिल रही है।
गुरु का दर्जा मिलने से गदगद हैं कलाकार
उ8ारकाशी। गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्रों को ढोल, लोकगायन एवं मसकबीन का प्रशिक्षण दे रहे कंकराड़ी गांव के बचन दास और धौंतरी के हुकम दास गुरु का स6मानित दर्जा मिलने से गदगद हैं। उन्होंने कहा यूं तो लोग शादी 4याह में उन्हें बुलाते हैं, किंतु वहां कला का पूरा स6मान नहीं होता। छात्रों को सिखाने के लिए उन्होंने अपने पुराने गीतों व ज्ञान को खंगालना शुरू कर दिया है।
पर्यटन विभाग का पांच सितारा होटल अधर में
दो साल से मौके पर शुरू नहीं हो पाया निर्माण कार्य
देहरादून।
पर्यटन विभाग की देहरादून में पांच सितारा होटल बनाने की योजना फिलव1त अधर में है। तकरीबन दो साल पूर्व हुए एमओयू के मुताबिक अभी तक होटल का निर्माण शुरू नहीं हो पाया है। भू उपयोग को लेकर तकनीकी पेच के कारण लंबे समय तक शासन में फंसने के बाद अब होटल के न1शे भी शासन में फंसे हैं। हालांकि, मु2यमंत्री के पर्यटन सलाहकार का कहना है कि इस मसले को सुलझाा लिया गया है।देहरादून में पांच सितारा होटल बनाने की योजना के लिए सरकार की ओर से ईएमआर नाम की प्राइवेट कंपनी के साथ करार किया जा चुका है। सरकार की ओर से इसके लिए गढ़ी कैंट में भूमि भी उपल4ध क रा दी गई। एमओयू के मुताबिक इस स्थान पर पांच सितारा होटल के साथ ही एक व्यावसायिक कांप्लै1स भी बनाया जाना है। होटल का निर्माण कर निर्धारित अवधि तक होटल का संचालन भी इसी कंपनी द्वारा किया जाना है। पीपीपी मोड पर बनने वाले इस होटल का निर्माण दो साल में पूरा होना था। लेकिन अभी तक होटल की नींव भी नहीं रखी गई है। लंबे समय पर्यटन विभाग द्वारा दी गई इस भूमि के भू उपयोग को लेकर विवाद की स्थिति बनी रही।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक नए मास्टर प्लान में यह विवाद सुलझा गया है इसके बावजूद होटल के निर्माण की राह अभी आसान नहीं हुई। कंपनी के प्रतिनिधियों के अनुसार होटल का न1शा तैयार कर काफी समय पूर्व जमा कराया जा चुका है, लेकिन अभी तक मंजूरी नही दी गई है। मु2यमंत्री के पर्यटन सलाहकार प्रकाश सुमन ध्यानी के अनुसार कंपनी को शासन द्वारा एनओसी दिलाई जानी थी। इस कारण लंबे समय से इस मामले में पेच फंसा था। अब शासन स्तर पर निर्णय हो चुका है। चुनाव के बाद इस संबंध में पर्यटन विभाग और कंपनी के बीच नया एमओयू होना है।
बीएड काउंसलिंग : १९ को होगी स्थिति स्पष्ट
नालंदा कालेज ऑफ एजुकेशन ने कोर्ट में दायर की याचिका
स्टेट कोटे के लिए विश्वविद्यालय से काउंसलिंग कराने की मांग
देहरादून।
बीएड में एडमिशन को लेकर १९ मई को स्थिति स्पष्ट हो पाएगी। नालंदा कालेज ऑफ एजुकेशन ने स्टेट कोटे पर एडमिशन को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसमें मांग की गई है कि सेल्फ फाइनांस बीएड कालेजों के स्टेट कोटे के लिए विश्वविद्यालय काउंसलिंग कराए। उधर, सेल्फ फाइनांस बीएड एसोसिएशन भी मैनेजमेंट कोटे पर एडमिशन के लिए संयु1त काउंसलिंग पर विचार कर रहा है।इस बार बीएड में एडमिशन को लेकर विचित्र स्थिति पैदा हो गई है। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद कुछ बीएड संस्थानों ने स्टेट एवं मैनेजमेंट कोटे पर छात्रों को एडमिशन दे दिया है। लेकिन हाई मेरिट वाले बहुत से छात्रों ने इस संभावना में एडमिशन नहीं लिया कि जब काउंसलिंग के जरिए एडमिशन होगा तो उनका एडमिशन स्टेट कोटे में हो जाएगा। लेकिन अभी इस संबंध में स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है। 1योंकि गढ़वाल विश्वविद्यालय काउंसलिंग कराने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। वहीं सेल्फ फाइनांस बीएड एसोसिएशन ने कुछ तकनीकी दि1कतों के कारण काउंसलिंग कराने में अपने को असमर्थ पा रहा है। सेल्फ फाइनांस बीएड एसोसिएशन के सचिव सुनील अग्रवाल ने कहा कि काउंसलिंग को लेकर नालंदा कालेज ऑफ एजुकेशन ने कोर्ट में याचिका दायर किया है जिसमें मांग की गई है कि गढ़वाल विवि को स्टेट कोटे पर काउंसलिंग के लिए आदेश दी जाए। कोर्ट ने सुनवाई के लिए १९ मई की तारीख तय की है। कोर्ट के आदेश के बाद ही एसोसिएशन काउंसलिंग को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकेगा। उन्होंने कहा कि अगर विवि के पक्ष में आदेश हो जाता है तो एसोसिएशन की कोशिश होगी कि मैनेजमेंट कोटे पर भी काउंसलिंग के जरिए छात्रों को एडमिशन दिया जाए।
समुद्री लुटेरों ने ले ली दून के सुमन की जान
सोमालिया में अपहृत जहाज पर ऑर्डिनरी सीमन पद पर तैनात था
कंपनी की ओर से सकुशल वापसी के लगातार दिए जा रहे थे आश्वासन
देहरादून।रविवार को आई मनहूस खबर ने दूनवासियों को गमजदा कर दिया। उ8ाराखंड का एक लाल सोमालियाई समुद्री लुटेरों की दरिंदगी का शिकार बन गया। जनवरी में यमन के पास हाईजैक पोत एमटी सी प्रिंसेस टू में दून निवासी सुधीर सुमन की समुद्री डाकुओं ने गोली मारकर हत्या कर दी। सुमन की बॉडी को साढ़े चार महीने से ज्यादा समय तक फ्रिज में रखने के बाद समुद्र में फेंक दिया गया। डायरे1ट्रेट ऑफ शिपिंग की ओर से जारी सूचना में यह जानकारी दी गई है। दून के अधोईवाला में रहने वाले परिजनों को पोत के हाईजैक होने और मौत की दुखद घटना की सूचना रविवार को मिली तो उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
सोमालियाई लुटेरों ने इस बार दून को बड़ा ज2म दे ही दिया। इससे पहले पिछले वर्ष भी सोमालियाई लुटेरों द्वारा अपहृत शिप में दून निवासी कैप्टन प्रभात गोयल फंसे थे। करीब ७२ दिनों बाद उनकी रिहाई हो सकी थी। इस बार बुरी खबर अधोईवाला निवासी सुधीर सुमन की मौत के रूप में मिली। ऑर्डिनरी सीमेन के पद पर कार्यरत सुधीर जिस पोत एमटी सी प्रिंसेस टू में सवार थे, वह एक जनवरी को यमन से चला था। इस पोत में २२ लोग सवार थे, जिसमें १८ भारतीय थे।
पोत को सोमालिया के समुद्री डाकुओं ने दो जनवरी को हाईजैक कर लिया था। विरोध करने पर सुधीर को समुद्री डाकुओं ने गोली मार दी और उसके शव को फ्रीजर में रख दिया। पोत में सवार अन्य लोगों को कड़ी चेतावनी दी कि यदि किसी ने भी इसकी खबर यहां से बाहर पहुंचाई तो उसका भी यही हश्र किया जाएगा। चेतावनी के बाद मामला जहाज तक ही सीमित रह गया। तकरीबन साढ़े चार महीने बाद समुद्री लुटेरों ने २६ अप्रैल को शव समुद्र में फेंक दिया।
पोत में ही सवार दून निवासी सेकेंड ऑफिसर अनुपम भट्टाचार्य के पिता कर्नल दिलीप कुमार ने बताया कि बेटे से बातचीत के दौरान इस घटनाक्रम का पता चला है। कंपनी ने पोत के हाईजैक की सूचना तक परिजनों को नहीं दी थी। पहली बार रविवार को कंपनी की ओर से परिजनों को सुधीर सुमन की मौत की खबर दी गई। यह जानते ही घर में मातम छा गया। देर शाम गमगीन बड़े भाई सुनील सुमन कंपनी से काफी नाराज दिखे। उन्होंने बताया कि कंपनी से बार-बार बातचीत के बावजूद उन्हें इस दुखद घटना की जानकारी नहीं दी गई। बल्कि, अधिकारी यही कहते रहे कि पोत में तकनीकी खराबी की वजह से बातचीत कराना मुमकिन नहीं है। साथ ही आश्वासन देते रहे कि सुधीर ठीक है और जल्द ही सकुशल घर वापस आ जाएगा।
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