Thursday, 5 March 2009
टिहरी जिले में बसाए नगर नहीं हो पाए विकसितनई टिहरी।
महाराजा सुदर्शन शाह ने जब टिहरी रियासत की टिहरी में नींव रखी थी, तब ज्योतिषियों ने उस नगर की उम्र दो सौ साल से कम आंकी थी। आखिरकार हुआ भी वही। टिहरी दो सौ वर्ष का जीवन पूरा नहीं कर पाया और बांध की झाील में हमेशा के लिए जलसमाधिस्थ हो गया। टिहरी रियासत के अधीन जितने भी नए शहरों का निर्माण किया गया, आश्चर्यजनक रूप से वह 5ाी बहुत अधिक विकसित नहीं हो पाए।टिहरी के महाराजाओं ने कीर्तिनगर, प्रतापनगर और नरेंद्रनगर में कभी राजसी वैभव की शान रही, लेकिन अब यह नगर अपनी चमक खो गए। कीर्तिनगर समीपवर्ती श्रीनगर की छाया से उभर नहीं पा रहा है, तो टिहरी रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी रहा प्रतापनगर 5ाी लंबगांव से प्रतिस्पद्र्धा नहीं कर पा रहा है। वर्षों तक रियासत की राजधानी और बाद में जिला मु2यालय रहे नरेंद्रगनर की स्थिति भी अलग नहीं है। जिला मु2यालय के नई टिहरी शि3ट होने के बाद यहां 5ाी बाहरी आवाजाही कम हो गई है। सामाजिक अध्येता आरएस रावत कहते हैं कि नरेंद्रनगर, प्रतापनगर और नई टिहरी ऐसे स्थानों पर बसाए गए हैं, जहां निकट में गांवों की मात्रा नगण्य है। किसी भी शहर के विकास के लिए निकटवर्ती क्षेत्रों में ऐसी आबादी होनी जरूरी है, जिसकी निर्भरता उस शहर पर हो, लेकिन टिहरी में बसाए गए शहरों में ऐसा न होने से वह विकास की गति नहीं पकड़ पाए।
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