Tuesday, 17 March 2009

विश्वास की पराकाष्ठा छू गई आस्था की दीवार

Mar 16, देहरादून। चैत्र कृष्ण पंचमी, समय-सायं 3 बजकर 45 मिनट, सूर्य की ढलती हुई रश्मियां दरबार साहिब की मीनारों और गुंबदों पर पड़ रही हैं। सज्जादा नसीन महंत देवेंद्रदास महाराज का आदेश मिलते ही झंडा जी को चढ़ाने की प्रक्रिया आरंभ हुई। धीरे-धीरे हाथों, रस्सों व बल्लियों के सहारे मखमली आवरण ओढ़े झंडे जी ऊपर उठने लगे। समय 4 बजकर 41 मिनट, झंडे जी कैंचियां छोड़कर सीधे हुए और चारों दिशाओं में गूंज उठी श्री गुरु रामराय जी महाराज की जय-जयकार। दूर आकाश में एक बाज आया और झंडे जी की परिक्रमा कर नजरों से ओझल हो गया। यही वह क्षण है, जब आस्था की दीवार भक्तजनों के मन में विश्वास की पराकाष्ठा को छू रही है। पुराने झंडे जी का उतरना और नए झंडे जी का चढ़ाना एक ऐसा पल है, जिसका साक्षी बनने की तमन्ना हर श्रद्धालु के मन में होती है। रविवार की शाम देश-विदेश से दरबार साहिब पहुंचे लाखों श्रद्धालुओं ने इस अलौकिक एवं दिव्य दृश्य को अपने मन-मंदिर में उतारा। सुबह आठ बजे पुराने झंडे जी को उतारने की रस्म आरंभ हुई और एक घंटे तक यह प्रक्रिया चली। इसके बाद करीब 104 फीट ऊंचे झंडे जी को दूध, दही व गंगाजल से स्नान कराया गया और फिर चंदन का लेप कर नए वस्त्र पहनाने क्रम शुरू हुआ। झंडे जी की पूजा के उपरांत उन्हें मारकीन के सादे गिलाफ, फिर शनील के गिलाफ और आखिर में गहरे लाल रंग का मखमली गिलाफ आवरण पहनाया गया। यही दर्शनी गिलाफ है। झंडे जी के शीर्ष पर मोर पंख और चंवर लगाई गई। इसके अलावा श्रद्धालुओं द्वारा रंगीन दुपट्टे, स्कार्फ, रुमाल आदि भी झंडे जी को अर्पित किए गए। जैसे ही झंडे जी अपने राजसी ठाट के साथ खुले आकाश में लहराए, संगतों की परिक्रमा का सिलसिला आरंभ हो गया। हर श्रद्धालु दूसरे से पहले झंडे जी की परिक्रमा कर लेना चाहता था। यह ऐसा मौका है जब हर श्रद्धालु अपने गुरु के प्रति श्रद्धा प्रकट कर वापस यह कहते हुए चला जाता है कि, 'हे गुरु अगर सब-कुछ आपकी

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