Wednesday, 18 March 2009

टूटना तो रहा है उक्रांद का इतिहास

Mar 18, देहरादून। सरकार से समर्थन वापसी का सवाल उक्रांद के गले की हड्डी सा बन गया है। पहले भी दो बार टूट चुके उक्रांद के अंदर इस मुद्दे पर दिख रहा विभाजन एक और टूट की आशंका खड़ी करता है। करीब दो माह पहले संपन्न उक्रांद के महाधिवेशन में आम कार्यकर्ता समर्थन वापसी की मांग करते दिखाई दिए। बड़े नेताओं पर सवाल दागने से भी कार्यकर्ता नहीं चूके। इस पर भाजपा को 10 फरवरी तक का अल्टीमेटम देकर नेताओं ने अपनी जान छुड़ाई। बाद में भाजपा ने उक्रांद के अल्टीमेटम पर ध्यान दिए बिना ही प्रत्याशी घोषित कर दिए। गठबंधन धर्म निभाते हुए उक्रंाद को यह कड़वा घूंट पीना पड़ा पर समर्थन वापसी का सवाल अपनी जगह बना रहा। निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम के साथ बातचीत के बाद समर्थन वापसी का जिन्न एक बार फिर से बोतल से बाहर निकल आया। दरअसल, बेनाम के बहाने समर्थन वापसी का मुद्दा ऐन चुनाव के वक्त सामने लाने में उक्रांद के कई नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इस तरह दल में इस मामले में मत विभाजन साफ तौर पर दिखाई देता है। अब तक बड़ी संख्या में कार्यकर्ता समर्थन वापसी की बात कर रहे थे, अब बड़े नेता भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं। दो मतों में विभाजित दल में एक बार फिर टूट की हद तक पहुंचने की संभावनाएं देखी जाने लगी हैं। दो बार पहले भी उक्रांद इस दौर से गुजर चुका है। उक्रांद के शीर्ष नेता काशी ंिसह ऐरी कहते हैं कि विभाजन जैसी कोई बात नहीं है। दल के मुद्दों पर चर्चा होती रहेगी पर दल कमजोर करने वाले कदम किसी भी हालत में नहीं उठाए जा सकते। कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट कहते हैं कि उक्रांद ने बहुत थपेड़े खाए हैं, अब टूट-फूट के बारे में कोई नहीं सोचता। उक्रांद राज्य के लिए लड़ता रहा है और राज्य को बचाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्हें सत्ता का कोई मोह नहीं है। यदि समर्थन वापसी समेत संगठन का कोई निर्णय होता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी।

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