Wednesday, 18 March 2009
सियासत: बदले अपने व पराए के मायने
देहरादून, यह सियासत में ही संभव है कि अपने ही अपनों के खिलाफ काम करें और पराए मदद के लिए अपनों का ही साथ छोड़ने को तैयार हो जाए। हालात ये हैं कि ऐसा करने के लिए विधायकों ने दलीय निष्ठा और अनुशासन को भी तार-तार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले बात सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की। पिछले कई रोज से साफ दिख रहा था कि निर्दलीय व उत्तराखंड क्रांति दल के विधायकों की वजह से सरकार किसी संकट में घिर सकती है। इसके बाद भी भाजपाई विधायक मुन्ना सिंह चौहान चुनावी माहौल में भाजपा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयानबाजी शुरू कर दी। अब बताया जा रहा है कि अंदरखाने पांच और विधायक भी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की तैयारी में हैं। संकट के समय में अपने भी विरोध पर आमादा हो जाए यह तो सियासत में ही संभव है। अब बात उक्रांद की। इस दल के विधायक भले ही सरकार का समर्थन कर रहे हैं पर भाजपा की तुलना में इन्हें गैर ही कहा जाएगा। इस दल में हालात भाजपा से एकदम उलट हैं। उक्रांद नेता कई रोज से सरकार से समर्थन वापसी की बातें कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की राय भी यही है पर इस दल के तीन में से दो विधायक अपने दल की बात सुनने की बजाय सरकार का समर्थन करते रहने के पक्षधर हैं। सूत्रों की मानें तो आने वाले समय में ये दो विधायक (एक काबीना मंत्री समेत) सरकार की खातिर अपने दल को भी छोड़ सकते हैं। है न मजे की बात। सियासत के इस खेल में अपने और पराए के मायने ही बदल दिए हैं। किसी को भी न तो अपनों की परवाह है और न ही अपने दल के प्रति निष्ठा की। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में सियासत में इससे भी ज्यादा दिखाई देने वाला है।
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