Sunday, 15 March 2009
दून घाटी के ऐतिहासिक झंडा मेला
दून घाटी के ऐतिहासिक झंडा मेले में रविवार को झंडा आरोहण की अलौकिक घड़ी का साक्षी बनने हजारों संगतें दरबार साहिब पहुंच गई हैं। संगतों के पहुंचने का सिलसिला अभी जारी रहेगा। रविवार को जब झंडा चढ़ाने की रस्म अदा होगी, तब तक देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु दूनघाटी पहुंच चुके होंगे। इधर, संगतों के स्वागत में पूरा झंडा मोहल्ला सतरंगी परिधान ओढ़ चुका है। बाजार सजे हैं और चारों दिशाओं में ढोल-नगाड़ों की गूंज सुनाई दे रही है। शनिवार को दरबार साहिब में अद्भुत नजारा था। संगतों से खचाखच भरे दरबार में पैर रखने तक को जगह नहीं थी। अपराह्न बाद झंडे जी की परिक्रमा करने को संगतों में मची होड़ और सिर पर चढ़ावा लिए दरबार साहिब पहुंच रही संगतें अलौकिक नजारा पेश कर रही थीं। सायंकाल में पूर्वी संगत के मसंदों को महंत देवेंद्रदास महाराज ने आशीर्वाद स्वरूप पगड़ी प्रसाद एवं ताबीज प्रदान किए। रविवार को सुबह आठ बजे झंडे जी को उतारने की प्रक्रिया शुरू होगी, जो एक घंटे चलेगी। इसके बाद ध्वज दंड को दूध, दही, घी व गंगाजल से स्नान कराया जाएगा और फिर नए आकर्षक गिलाफ, आवरण, वस्त्र, दुपट्टे व रुमालों से ध्वज दंड को ढका जाएगा। अंत में गहरे लाल रंग का मखमली गिलाफ आवरण झंडे जी को पहनाया जाएगा। सबसे बाहर दर्शनी गिलाफ होगा, जिसे चढ़ाने का दुर्लभ अवसर मिला है पंजाब के ग्राम जलादोवाला निवासी करतार सिंह को। जब सूर्य की ढलती किरणें दरबार की मीनारों और गुंबदों पर पड़ेंगी, तब श्री महंत जी के इशारे पर झंडा जी के आरोहण की रस्म अदा होगी। यही वह घड़ी है, जब धीरे-धीरे रस्सों-बल्लियों के सहारे झंडा जी ऊपर उठते हैं और जैसे ही वह अपने स्थान पर खड़े होते हैं लाखों श्रद्धालुओं के मुंह से जय गुरु रामराय महाराज के बोल फूट पड़ते हैं। परंपरा के अनुसार झंडे जी के ऊपर मोर पंख और चंवर चढ़ाई जाती है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में गिलाफ, वस्त्र व रुमाल भी चढ़ाए जाते हैं। यह परंपरा माता पंजाब कौर के जमाने से चली आ रही है।
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आपने बहुत अच्छी जानकारी साँझा की है। यह लेख वाकई में जानकारी युक्त है। मेरा यह लेख जरूर पढ़ें झंडा मेला
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